एक दुल्हन, दो दूल्हे : हिमाचल में जीवित है महाभारत जैसी बहुपति परंपरा 'जोड़ीदारा'

हिमाचल (Himachal) के सिरमौर ज़िले में हट्टी समुदाय की सुनीता चौहान ने दो भाइयों से विवाह कर सदियों पुरानी "जोड़ीदारा" (JodiDara) प्रथा को जीवित रखा। यह बहुपति परंपरा न केवल भूमि की सुरक्षा करती है, बल्कि पारिवारिक एकता और सांस्कृतिक विरासत को भी मजबूत करती है।
 जोड़ीदारा हिमाचल प्रदेश की एक पारंपरिक बहुपति प्रथा है, जिसमें एक महिला दो या अधिक भाइयों से विवाह करती है।         (Sora AI)
जोड़ीदारा हिमाचल प्रदेश की एक पारंपरिक बहुपति प्रथा है, जिसमें एक महिला दो या अधिक भाइयों से विवाह करती है। (Sora AI)
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हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के सिरमौर जिले के कुन्हाट गांव में हाल ही में एक ऐसा विवाह हुआ जिसने पूरे इलाके का ध्यान आकर्षित कर लिया। सुनीता चौहान नामक युवती ने शिलाई के रहने वाले दो सगे भाइयों, प्रदीप और कपिल नेगी से पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ शादी की। यह विवाह समारोह तीन दिन चला और इसमें हज़ारों स्थानीय लोग शामिल हुए। यह शादी हट्टी समुदाय की सदियों पुरानी बहुपति प्रथा "जोड़ीदारा" (JodiDara) के अंतर्गत हुई, जो आज भी कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में जीवित है।

क्या है जोड़ीदारा (JodiDara) प्रथा ?

जोड़ीदारा, जिसे स्थानीय रूप से "जोड़ीदारन" (JodiDara) या "द्रौपदी प्रथा" भी कहा जाता है, भ्रातृ-बहुपति (fraternal polyandry) का एक रूप है। इस प्रथा में एक महिला एक से अधिक भाइयों से विवाह करती है और वे सभी मिलकर एक ही परिवार का हिस्सा रहते हैं। यह परंपरा मुख्य रूप से सिरमौर जिले के ट्रांस-गिरि क्षेत्र में हट्टी समुदाय के बीच प्रचलित है। इस परंपरा को महाभारत से जोड़ा जाता है, जहाँ पांचाल की राजकुमारी द्रौपदी ने पाँच पांडव भाइयों से विवाह किया था।

इस प्रथा के पीछे सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कारण हैं। हिमाचल के पहाड़ी इलाकों में जमीन की मात्रा सीमित होती है और अधिकांश परिवारों की आजीविका खेती पर निर्भर करती है। अगर हर बेटे की अलग शादी हो और संपत्ति बाँटी जाए, तो भूमि का विखंडन हो जाएगा, जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर हो सकती है। ऐसे में जोड़ीदारा व्यवस्था इस संकट से बचने का एक उपाय बन जाती है।

यह प्रथा संपत्ति के बंटवारे को रोकने और पारिवारिक एकता बनाए रखने के लिए अपनाई जाती है। (Sora AI)
यह प्रथा संपत्ति के बंटवारे को रोकने और पारिवारिक एकता बनाए रखने के लिए अपनाई जाती है। (Sora AI)

एक महिला का विवाह सभी भाइयों से करवाकर, जमीन को अविभाजित रखा जाता है। यह व्यवस्था न सिर्फ पारिवारिक एकता बनाए रखती है बल्कि आर्थिक मजबूती भी देती है। सभी भाई-बहन, एक ही पत्नी के साथ पारिवारिक जिम्मेदारियाँ साझा करते हैं।

इस प्रकार के विवाह पूरी तरह से पारंपरिक और आपसी सहमति से होते हैं। सुनीता चौहान ने खुद बताया कि यह निर्णय उसने बिना किसी सामाजिक दबाव के लिया और वह इन दोनों भाइयों के साथ अपने भविष्य को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है। शादी के दौरान पूरे गांव ने इस प्रथा को उत्सव की तरह मनाया, जिसमें पारंपरिक गीत, नृत्य और रीति-रिवाज शामिल थे। इस प्रथा में यह तय होता है कि पत्नी किस भाई के साथ कब समय बिताएगी। यह व्यवस्था आपसी समझदारी से तय होती है और समय के अनुसार बदलती रहती है। बच्चों के मामले में, कानूनन सबसे बड़े भाई को पिता माना जाता है, लेकिन पालन-पोषण की जिम्मेदारी सभी भाई मिलकर निभाते हैं।

इस व्यवस्था में सभी भाइयों के बीच आपसी विश्वास और समझदारी की बहुत अहम भूमिका होती है। एक ही पत्नी को साझा करने के बावजूद, पारिवारिक कलह या ईर्ष्या जैसी समस्याएं बहुत कम देखने को मिलती हैं, क्योंकि इस व्यवस्था में पारिवारिक एकता और आर्थिक मजबूती को प्राथमिकता दी जाती है। इतना ही नहीं, इस परंपरा के चलते गांवों में संयुक्त परिवार प्रणाली मजबूत रहती है। यह देखा गया है कि जहाँ जोड़ीदारा जैसी परंपराएँ प्रचलित हैं, वहाँ परिवारों में बंटवारे और विवाद की घटनाएं कम होती हैं। सभी सदस्य मिलकर खेती, पशुपालन और अन्य कार्यों में सहयोग करते हैं, जिससे सामूहिक जीवनशैली को बढ़ावा मिलता है।

महाभारत की द्रौपदी से प्रेरित, इसे हट्टी समुदाय में "द्रौपदी प्रथा" या "उजला पक्ष" भी कहा जाता है।     (Sora AI)
महाभारत की द्रौपदी से प्रेरित, इसे हट्टी समुदाय में "द्रौपदी प्रथा" या "उजला पक्ष" भी कहा जाता है। (Sora AI)

कानूनी मान्यता और विवाद

हालाँकि भारतीय कानून में बहुपति प्रथा की अनुमति नहीं है, लेकिन हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) उच्च न्यायालय ने स्थानीय परंपरा और सांस्कृतिक विशिष्टता को ध्यान में रखते हुए जोड़ीदारा प्रथा को सीमित कानूनी मान्यता दी है। इसे हट्टी समुदाय की पारंपरिक पहचान का हिस्सा मानते हुए संरक्षण दिया गया है। हट्टी समुदाय को हाल ही में अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिया गया है, जिसमें उनकी विशिष्ट सांस्कृतिक परंपराएँ, जैसे कि जोड़ीदारन, महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अदालतों ने भी यह माना है कि जब तक यह प्रथा आपसी सहमति और समाज के भीतर मर्यादाओं में बनी रहती है, तब तक इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।

हालांकि आधुनिक सोच और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नजरिए से इस प्रथा पर सवाल भी उठते हैं। महिलाओं की स्वायत्तता, उनकी मर्जी, और भावनात्मक स्थिति को लेकर कुछ मानवाधिकार संगठनों ने चिंता जताई है। लेकिन जिन क्षेत्रों में यह प्रथा अभी भी जीवित है, वहाँ की महिलाएं इसे सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा का ज़रिया मानती हैं।

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जोड़ीदारा प्रथा अब धीरे-धीरे कम होती जा रही है, खासकर नई पीढ़ी के बीच। शिक्षा, शहरीकरण और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बढ़ते प्रभाव के चलते अब युवा इस व्यवस्था को अपनाने में झिझकते हैं। फिर भी, सिरमौर जिले के ट्रांस-गिरि क्षेत्र के लगभग 450 गांवों में अभी भी यह प्रथा कहीं-कहीं जीवित है। पिछले छह वर्षों में ऐसे पाँच बहुपति विवाह दर्ज किए गए हैं। ये आंकड़े इस बात का प्रमाण हैं कि यह प्रथा पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है और अब भी कुछ परिवार इसे मानते हैं।

कानूनी प्रतिबंधों के बावजूद, हिमाचल हाई कोर्ट ने इस प्रथा को सांस्कृतिक मान्यता दी है और यह आज भी सीमित क्षेत्रों में जीवित है।     (Sora AI)
कानूनी प्रतिबंधों के बावजूद, हिमाचल हाई कोर्ट ने इस प्रथा को सांस्कृतिक मान्यता दी है और यह आज भी सीमित क्षेत्रों में जीवित है। (Sora AI)

निष्कर्ष

जोड़ीदारा (JodiDara) प्रथा हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के कुछ विशेष क्षेत्रों की एक अनोखी और प्राचीन सामाजिक व्यवस्था है। यह ना केवल विवाह की पारंपरिक परिभाषा को चुनौती देती है, बल्कि समाज के आर्थिक और पारिवारिक ढांचे को भी एक नया दृष्टिकोण देती है। हालांकि आधुनिक समय में यह प्रथा कम होती जा रही है, फिर भी यह हिमाचल की सांस्कृतिक विविधता और ग्रामीण जीवन के अनोखे संतुलन को दर्शाती है। [Rh/PS]

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