कोहिनूर का खौफनाक इतिहास: हर शासक की हार की कहानी से जुड़ा है ये हीरा!

एक ऐसा हीरा इसके बारे में कहा जाता है कि यह जिसके पास भी रहा वह दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान रहा साथ ही साथ दुनिया भर की सारी बदनसीबी उस इंसान को मिली।
कुछ लोग इसे Curse यानी अभिशाप भी मानते हैं [Pixabay] [सांकेतिक चित्र]
कुछ लोग इसे Curse यानी अभिशाप भी मानते हैं [Pixabay] [सांकेतिक चित्र]
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एक ऐसा हीरा इसके बारे में कहा जाता है कि यह जिसके पास भी रहा वह दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान रहा साथ ही साथ दुनिया भर की सारी बदनसीबी उस इंसान को मिली। हम बात कर रहे हैं भारत की शान कहे जाने वाले कोहिनूर की, जिसकी शुरुआत को लेकर कई मतभेद हैं लेकिन सबसे ज्यादा यदि इसकी चर्चा होती है तो वह इसके नकारात्मक प्रभाव पर होती है। कुछ लोग इसे Curse यानी अभिशाप भी मानते हैं, ऐसा इसलिए है की इतिहास के पन्नों में देखा गया है कि जब-जब कोहिनूर जिस किसी भी इंसान के पास रहा है उसकी जिंदगी खून, खराबा और धोखे से भरी हुई रही है। कोहिनूर की कहानी भारत से लेकर इंग्लैंड तक बड़ी ही रोचक है साथ ही कई सवाल खड़ी करती है। तो चलिए जानतें कोहिनूर की रोचक कहानी।

कहां पाया गया था कोहिनूर?

कुछ इतिहासकार कोहिनूर को भगवान श्री कृष्ण के समय का मानते हैं तो कुछ का मानना है कि कोहिनूर आंध्र प्रदेश के गोलकुंडा खान से निकली गई थी। कोहिनूर की खोज किसने की? सबसे पहले किसके पास पाया गया? इसके बारे में कोई स्पष्ट जानकारी अब तक नहीं पाई गई है लेकिन आपको बता दें की सबसे पहले 1526 में मुगल बादशाह बाबर के किताब बाबर नामा में कोहिनूर हीरे की जानकारी मिलती है।

1526 में मुगल बादशाह बाबर के किताब बाबर नामा में कोहिनूर हीरे की जानकारी मिलती है। [Wikimedoa Commons] [सांकेतिक चित्र]
1526 में मुगल बादशाह बाबर के किताब बाबर नामा में कोहिनूर हीरे की जानकारी मिलती है। [Wikimedoa Commons] [सांकेतिक चित्र]

बाबरनामा में यह लिखा हुआ है कि इस हीरे की कीमत पूरी दुनिया के एक दिन के खर्चे के आधे के बराबर है। इसके साथ ही कोहिनूर के बारे में यह भी प्रचलित है कि इसे हमेशा जीत कर ही पाया गया है यानि पहले के राजा जब कोई जंग जीतते थे तो उसके पुरस्कार के तौर पर उन्हें कोहिनूर मिलता था, और शायद बाबर को भी कुछ इसी प्रकार से कोहिनूर की प्राप्ति हुई। दूसरी बार शाहजहां के किताब में कोहिनूर के बारे में बताया गया है यानी इससे हम यह कह सकते हैं कि मुगलों के पास कोहिनूर काफी लंबे समय तक रहा। यहां एक दिलचस्प बात यह है कि अब तक हीरे का कोई नाम नहीं था जहां कहीं भी कोहिनूर के बारे में बताया गया है उसे एक चमकीले पत्थर, चमकती हुई चीज या काफी मूल्यवान कहकर ही संबोधित किया गया है।


कैसे पड़ा हीरे का नाम कोहिनूर?

1739 में मुगलों की गद्दी पर मोहम्मद शाह का राज था इस समय तक मुगल काफी अमीर और खजाने से भरपूर थे जिसे देखकर पर्शिया के राजा नादिर शाह को काफी लालच हुआ और उन्होंने दिल्ली पर इनवेंशन कर दिया। नादिर शाह को उनके एक अधिकारी से पता चला की मुगलों के पास एक हीरा है जो बहुत ही खूबसूरत है और काफी महंगा भी उसे मोहम्मद शाह अपनी पगड़ी के नीचे छुपा कर रखते हैं।

नादिर शाह ने बड़ी चालाकी के साथ मोहम्मद शाह से पगड़ी बदलने के लिए कहा [Wikimedia Commons]
नादिर शाह ने बड़ी चालाकी के साथ मोहम्मद शाह से पगड़ी बदलने के लिए कहा [Wikimedia Commons]

ऐसा कहा जाता है कि हीरे के बारे में जानकारी पाकर नादिर शाह को उसे पाने की इच्छा हुई। पहले के समय में युद्ध जीतने के बाद पगड़ी बदलने की एक प्रथा होती थी तो नादिर शाह ने बड़ी चालाकी के साथ मोहम्मद शाह से पगड़ी बदलने के लिए कहा जैसे ही मोहम्मद शाह नेअपनी पगड़ी उतारी उसमें से हीरा नीचे गिरा इसकी रोशनी इतनी तेज थी कि उसे देखते ही नादिर शाह के मुंह से निकला कोहिनूर और तब से इस हीरे को कोहिनूर हीरा कहा जाने लगा। नादिर शाह के पास जाने के लगभग 70 सालों तक कोहिनूर अफगानिस्तान के पास ही रहा।



क्यों है कोहिनूर एक अभिशाप?

कोहिनूर के बारे में यह काफी प्रचलित है कि यह जिसके पास भी रहा है उसने पूरी दुनिया जीती है और साथ ही साथ पूरी दुनिया की बदकिस्मती भी उसके साथ रही है। कोहिनूर को अभिशाप कहने के कई कारण है सबसे पहले तो जब नादिर शाह कोहिनूर जीत कर अफगानिस्तान गए तो उनके ही सेना के एक व्यक्ति ने उन्हें धोखे से मार डाला और फिर शुरू होती है नादिर शाह की गद्दी पर उनके उतराधिकारियों के बैठने की लड़ाई। कई समय तक नादिरशाह के बेटे और पोते में गद्दी को लेकर लड़ाई चली। सुजा शाह दुर्रानी को गद्दी मिली लेकिन कुछ समय के बाद ही उसे राजगद्दी छोड़नी पड़ी। अंत में परेशान होकर 1809 में सुजा शाह दुर्रानी कोहिनूर हीरा को लेकर भाग गया और महाराजा रणजीत सिंह से मदद मांगी।

1809 में सुजा शाह दुर्रानी कोहिनूर हीरा को लेकर भाग गया और महाराजा रणजीत सिंह से मदद मांगी। [Wikimedia Commons]
1809 में सुजा शाह दुर्रानी कोहिनूर हीरा को लेकर भाग गया और महाराजा रणजीत सिंह से मदद मांगी। [Wikimedia Commons]

रणजीत सिंह ने बदले में कोहिनूर ले लिया। वहीं दूसरी तरफ कोहिनूर पर अंग्रेजों की कड़ी नजर थी, और वे इसे लगातार ट्रैक कर रहे थे। 1839 रणजीत सिंह की मौत हो गई तब पंजाब काफी कमजोर पढ़ने लगा और ब्रिटिश काफी मजबूत। 1849 में जब रानी जिंदल और रणजीत सिंह के बेटे दिलीप सिंह केवल यही दो लोग सिख अंपायर को चला रहे थे तब अंग्रेजों ने तरकीब लगाई और दिलीप सिंह से लाहौर की संधि करवाई गई जिसमें यह साफ-साफ लिखा था कि कोहिनूर हीरा अब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के पास रहेगा और इस तरह से गोलकुंडा के खान से निकलकर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के पास तक कोहिनूर भटकती रही।

जब रानी विक्टोरिया को मिला कोहिनूर

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के पास कोहिनूर पहुंचने के बाद कोहिनूर को रानी विक्टोरिया को सौंप दिया गया। ऐसा कहा जाता है कि कोहिनूर केवल एक महिला या फिर भगवान ही पहन सकते हैं इसके अलावा जो भी व्यक्ति कोहिनूर को पहनेगी उसका अंत तय है। ब्रिटेन के एक म्यूजियम में कोहिनूर को काफी समय तक लोगों के लिए रखा गया। इन सबके बीच ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को भी कोहिनूर के अभिशाप की बात सता रही थी। उन्होंने तय किया कि कोहिनूर किसी पुरुष को नहीं दिया जाएगा इसलिए इंग्लैंड की रानियौ को ही थ्रोन पहनाया जाता था जिसमें कोहिनूर लगा था।

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के पास कोहिनूर पहुंचने के बाद कोहिनूर को रानी विक्टोरिया को सौंप दिया गया। [Wikimedia Commons]
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के पास कोहिनूर पहुंचने के बाद कोहिनूर को रानी विक्टोरिया को सौंप दिया गया। [Wikimedia Commons]

आज के समय में कोहिनूर Tower of London के एक ज्वेल हाउस में रखा गया है। इसी तरह पिछले 800 सालों से कोहिनूर इंग्लैंड के पास रखा हुआ है हालांकि भारत के द्वारा कई बार ऐसे प्रयास किए गए हैं कि कोहिनूर को वापस भारत ले आया जाए लेकिन सभी प्रयास विफल रहे।

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इसी तरह भारत के आंध्र प्रदेश के गोलकुंडा से निकलकर कोहिनूर ने इंग्लैंड तक का सफर किया हैं। कोहिनूर की खूबसूरती उसकी चमक से आज भी लोग मोहित हो जाते हैं लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जब सबसे पहली बार इंग्लैंड के एक म्यूजियम में कोहिनूर को रखा गया तो वहां के लोगों ने उसे एक मामूली पत्थर समझा। ऐसा कहा जाता है कि मूल रूप से यह लगभग 793 कैरेट का था और अब यह 105.6 कैरेट का रह गया है। आज कोहिनूर अपनी असली ऊर्जा और असली खूबसूरती को खोता जा रहा है। [Rh/SP]

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