![1947 वह साल, जिसने भारत के इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया। [Sora Ai]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-08-14%2Fds8t7gaz%2Fassetstask01k2marv3hftmtwn17gk6wmbng1755176708img0.webp?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
1947 वह साल, जिसने भारत के इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया। अंग्रेज़ों से आज़ादी पाने के लिए करोड़ों लोगों ने संघर्ष किया, अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए। लेकिन आज़ादी के साथ ही धर्म के आधार पर दो देश बने भारत और पाकिस्तान(India And Pakistan)। उस समय लोगों को उम्मीद थी कि अब हम स्वतंत्र होंगे, अपने धर्म और संस्कृति के साथ शांति से रहेंगे। आज, उसी ऐतिहासिक क्षण को गुज़रे 79 साल हो चुके हैं और हम गर्व से अपना स्वतंत्रता दिवस (79th Independence Day) मना रहे हैं।
लेकिन मन के कोने में एक सवाल आज भी दस्तक देता है, क्या यह आज़ादी सिर्फ राजनीतिक है या धार्मिक दृष्टि से भी हमें सच्ची स्वतंत्रता मिली है? धर्म के नाम पर विभाजन का घाव आज भी कई जगह हरा क्यों है? क्या इन 79 वर्षों में दोनों देशों ने धार्मिक सौहार्द और भाईचारा कायम किया, या फिर नफ़रत और अविश्वास ने हमारी सीमाओं के साथ-साथ हमारे दिलों को भी बाँट दिया? तो आइए, इतिहास और वर्तमान की परतें खोलकर देखें क्या 1947 में हुए धार्मिक बंटवारे (Religious Divisions) का सपना आज सच हो पाया है, या फिर हम अब भी उसी सवाल से जूझ रहे हैं: धार्मिक शांति कहाँ है? और क्या यह कभी संभव हो पाएगी?
जब धर्म बना बंटवारें का कारण
भारत की आज़ादी की लड़ाई में जहाँ एक ओर महात्मा गांधी(Mahatma Gandhi) और कांग्रेस एकता पर ज़ोर दे रहे थे, वहीं दूसरी ओर मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना (Mohammad Ali Jinnah) ने एक अलग रास्ता अपनाया। जिन्ना का मानना था कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग "क़ौमें" हैं, जिनकी संस्कृति, परंपरा, और धार्मिक मान्यताएँ पूरी तरह भिन्न हैं। उन्होंने “Two Nation Theory” (दो-राष्ट्र सिद्धांत) के तहत यह तर्क दिया कि मुसलमानों को अपना अलग राष्ट्र चाहिए, जहाँ वे अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के साथ सुरक्षित रह सकें।
जिन्ना का दावा था कि एक ही देश में हिंदू और मुस्लिम (Hindu And Muslim) का शांतिपूर्वक रहना संभव नहीं होगा, और मुस्लिम समुदाय (Muslim Community) की राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक स्वतंत्रता ख़तरे में पड़ सकती है। यही सोच 1940 के लाहौर प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से सामने आई, जिसमें मुस्लिम बहुल इलाकों को अलग देश बनाने की मांग रखी गई। 1947 में ब्रिटिश सरकार ने इस मांग को मान लिया और भारत-पाकिस्तान का जन्म हुआ। यह विभाजन पूरी तरह धर्म आधारित था, भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में और पाकिस्तान को इस्लामी राष्ट्र के रूप में स्थापित किया गया। लेकिन इस धार्मिक बंटवारे ने लाखों लोगों के जीवन को हिंसा, विस्थापन और अविश्वास के साए में धकेल दिया।
क्या जिन्ना का सपना हो पाया पूरा?
जिन्ना ने बंटवारे की मांग इस सोच के साथ की थी कि मुसलमानों को एक ऐसा राष्ट्र मिले, जहाँ वे अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के साथ सुरक्षित और सम्मानित रह सकें। पाकिस्तान को इस्लामी राष्ट्र के रूप में बनाना इसी दृष्टि का हिस्सा था। लेकिन आज, लगभग आठ दशक बाद, हालात बताते हैं कि यह सपना पूरी तरह सच नहीं हुआ। पाकिस्तान को मुस्लिम समुदाय का देश तो बन गया मुस्लिम धर्म तो वे कट्टरता के साथ अपनाते हैं लेकिन साथ ही साथ आतंकवाद के दिशा में भी पाकिस्तान बड़ी तेजी के साथ बढ़ने लगा।
धर्म के नाम पर हिंसा महिलाओं पर उत्पीड़न जैसे मामले तो आम बातें हैं। जिन्ना का दावा था कि अलग देश बनाकर मुसलमानों को सुरक्षित और स्वतंत्र जीवन मिलेगा। लेकिन पाकिस्तान आज आतंकवाद, धार्मिक उग्रवाद और आर्थिक संकट से जूझ रहा है। दूसरी तरफ, भारत में भी अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के बीच विश्वास की खाई पूरी तरह पाटी नहीं जा सकी। सोशल मीडिया और राजनीति ने इस खाई को और चौड़ा कर दिया है।
क्या भारत में अब धार्मिक शांति है?
1947 में दो देश धर्म के नाम पर अलग तो हो गए लेकिन वहीं धर्म उन्हें आज भी बंधक बनाए हुए है। भारत में धार्मिक हिंसा रुकी नही, बल्कि कुछ पिछले वर्षों में यह काफी बढ़ गई है। 2024 में धार्मिक उन्माद के आधार पर देश में 59 सांप्रदायिक दंगों की घटना दर्ज की गई, जो 2023 की तुलना में लगभग 84% अधिक थे। इन हिंसाओं में दस में से सोलह पीड़ित मुस्लिम समुदाय से थे, और तीन हिंदू थे। अधिकांश घटनाएँ भाजपा शासित राज्यों में हुईं, जैसे महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बिहार।
इसके अलावा, हालिया नागपुर हिंसा (17 मार्च 2025) में मधलीवादी संगठनों ने औरंगज़ेब का मकबरा हटाने की मांग कर धार्मिक भावनाएँ भड़काईं, जो सांप्रदायिक टकराव को और तेज़ करने वाली घटना साबित हुए।
भारत ने संविधान में धर्मनिरपेक्षता को अपनाया, लेकिन फिर भी धार्मिक हिंसा की घटनाएं समय-समय पर सामने आती हैं। 1950 के दशक से अब तक हज़ारों सांप्रदायिक दंगे हो चुके हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, हर साल औसतन 700 से अधिक साम्प्रदायिक घटनाएं दर्ज होती हैं।
हिंदू बहुसंख्यक होने के बावजूद, कई बार मंदिर तोड़ने, धार्मिक जुलूसों पर पथराव और भड़काऊ भाषण जैसी घटनाएं सामने आती हैं। यह साबित करता है कि बंटवारा हिंदू-मुस्लिम तनाव को खत्म नहीं कर सका, बल्कि यह विभाजन मानसिकता और गहरी हो गई।
क्या पाकिस्तान अपने धार्मिक सपनों को पूरा कर पाया है?
1947 में पाकिस्तान का निर्माण इस वादे के साथ हुआ था कि यह एक ऐसा इस्लामी राष्ट्र होगा, जहाँ मुसलमान सुरक्षित और धार्मिक स्वतंत्रता के साथ रह सकेंगे। लेकिन आज हकीकत कुछ और ही है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय, हिंदू, सिख, ईसाई और अहमदी, लगातार उत्पीड़न, ज़बरन धर्म परिवर्तन और हिंसा का शिकार होते हैं। यहां तक कि खुद मुस्लिम समाज के भीतर भी शिया और सुन्नी के बीच कट्टरता और आतंकी हमले आम हो गए हैं।
2024 में पाकिस्तान में धार्मिक उग्रवाद से जुड़ी 160 से अधिक घटनाएं दर्ज हुईं, जिनमें सैकड़ों लोग मारे गए। आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और आतंकवाद ने उस "धार्मिक आदर्श राष्ट्र" की परिकल्पना को कमजोर कर दिया है, जिसके लिए यह देश बना था। नतीजा यह है कि पाकिस्तान न केवल अपने धार्मिक सपनों को पूरा करने में नाकाम रहा है, बल्कि खुद अपने ही लोगों के लिए असुरक्षा का गढ़ बन चुका है।
Also Read
सीमा पार रिश्तों में तनाव
भारत-पाक बंटवारे के बाद दोनों देशों के रिश्ते कभी सामान्य नहीं रहे।
1947, 1965, 1971 और 1999 में युद्ध हुए।
सीमा पर आए दिन गोलीबारी होती है।
आतंकवाद और घुसपैठ की घटनाएं संबंधों को और बिगाड़ देती हैं।
शांति की कोशिशें हुईं, लेकिन अविश्वास और राजनीतिक फायदे के लिए धार्मिक मुद्दों को हवा देना जारी रहा।
कई इतिहासकार मानते हैं कि बंटवारा अगर न हुआ होता, तो शायद धार्मिक तनाव उतना बड़ा मुद्दा न बनता जितना आज है। वहीं कुछ लोग कहते हैं कि यह टकराव पहले से मौजूद था, और बंटवारा न होता तो हिंसा और भी ज्यादा होती। लेकिन सच यह है कि बंटवारा नफरत की जड़ों को काटने के बजाय उन्हें और गहरा कर गया।79 साल बाद भी, बंटवारे का मकसद अधूरा है। न पाकिस्तान अपने धार्मिक सपनों को पूरा कर पाया, न भारत पूरी तरह साम्प्रदायिक शांति ला सका। बंटवारा सिर्फ भौगोलिक नहीं था, यह दिलों का भी था, और यह खाई आज भी पाटी नहीं जा सकी है। [Rh/SP]