अक्सर हमने फिल्मों में देखा है कि विलन प्लास्टिक सर्जरी (Plastic Surgery) करवाकर हीरो का चेहरा लगवा कर सभी को चकमा देता है। लेकिन यह सिर्फ फिल्मों में ही नहीं है असल जिंदगी में भी ऐसा संभव है। चाहे शौक हो या फिर मजबूरी हर कोई खूबसूरत दिखना चाहता है और अपनी इसी खूबसूरती के लिए आज बॉलीवुड हो या हॉलीवुड भारत हो या कोरिया हर जगह प्लास्टिक सर्जरी (Plastic Surgery) एक बड़ी ही आम बात हो गई है। किसी को आंखें बड़ी करवानी है तो कोई अपने नाक से खुश नहीं है और तब वह लाखों खर्च करके प्लास्टिक सर्जरी (Plastic Surgery) का विकल्प चुनते हैं। लोगों के अनुसार यह आजकल के फैशन का हिस्सा है लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्लास्टिक सर्जरी की शुरुआत प्राचीन भारत से हुई थी और पहला प्लास्टिक सर्जन जिसे फादर ऑफ प्लास्टिक सर्जरी भी कहा जाता है वह भी भारत के ही थे।
कब हुई थी प्लास्टिक सर्जरी की शुरुआत?
आज से तकरीबन 2500 साल पहले बनारस (Banaras) की गलियों में रहने वाले एक महर्षि ने प्लास्टिक सर्जरी (Plastic Surgery) की शुरुआत की थी। इस महान महर्षि का नाम था सुश्रुत (Sushruta) । सुश्रुत के प्लास्टिक सर्जरी से जुड़ी पूरी जानकारी उनके द्वारा लिखी गई किताब सुश्रुत संहिता (Sushruta Samhita) में मिलता है, जिसमें घाव को भरने के 60 तरीकों के बारे में बताया गया है।
इसके अलावा 121 प्रकार के सर्जरी करने के औजारों (Instruments) के बारे में बताया गया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि सुश्रुत संहिता (Sushruta Samhita) में लगभग 300 तरह के सर्जरी करने के तरीकों के बारे में भी बात की गई है, जिसे 8 खंडों में बांटा गया है। इसमें ब्लैडर स्टोन निकालना, कैटरेक्ट, हर्निया और यहां तक कि सर्जरी के जरिए प्रसव करवाए जाने का भी जिक्र दिया हुआ है। किसी भी सर्जन ( Surgeon) के लिए उनके टूल्स सबसे महत्वपूर्ण होते हैं, सुश्रुत ने भी 121 प्रकार के सर्जरी टूल्स का आविष्कार किया था, और सबसे मजेदार बात यह है कि सारे औजार का प्रकृति से गहरा संबंध था।
1100 बीमारियों की जानकारी देता है सुश्रुत संहिता
सुश्रुत संहिता (Sushruta Samhita) में सर्जरी के ग्यारह सौ बीमारियों का भी जिक्र किया गया है, और उनके इलाज के लिए 650 तरह की दवाओं का भी उल्लेख है। चाहे फिर, चोट लगने पर खून के बहाव को रोकने की बात हो, या टूटी हड्डियां को जोड़ने का विषय। आपको जान कर हैरानी होगी कि प्रचीन भारत में कटे हुए पार्ट की सिलाई करने के लिए टांकों की जगह चींटियों के इस्तेमाल का भी उल्लेख मिलता है, उनके जबड़े घाव को क्लिप करने का काम करते थे।
इन कारणों से होती थी सर्जरियां
बनारस के एक छोटे से कमरे में बैठे सुश्रुत उन सभी लोगों की मुसीबत का हाल निकाल देते थे जो अत्यंत पीड़ा में है। पहले के समय में कोई भी अपराध के लिए नाक और कान काट दिए जाते थे। जिनके नाक या कान कटे हैं वे मोरीज अपनी नाक लेकर सुश्रुत के पास आते और सुश्रुत उनके चेहरे की मांस को काटकर नाक पर लगा देते थें। चेहरे की कटी हुई मांस की जगह पर कुछ लेप और औषधी लगाकर उसे ठीक किया जाता था। सुश्रुत के पास आधुनिक तकनीक और तरीका हुआ करता था, जिसका इस्तेमाल वह इन सर्जरी में करते थें।
जब भारत से विदेश पहुंची सुश्रुत संहिता
आठवीं शताब्दी में अरबी भाषा में सुश्रुत संहिता का अनुवाद होने के बाद भारत की यह अनमोल चीज पश्चिमी देशों तक भी पहुंच गए। ऐसा कहा जाता है कि 1793 में दो अंग्रेज सर्जन भारत आए और उन्होंने अपनी आंखों से प्लास्टिक सर्जरी की पूरी प्रक्रिया को देखा और इन प्रक्रियाओं को जानने समझने के बाद वे लगभग 20 वर्षों तक लाशों के साथ इन प्रक्रियाओं का अभ्यास करते रहे और 20 साल के बाद उन्होंने भी एक परफेक्ट सर्जरी की।
बनारस के एक छोटे से कमरे में बैठे सुश्रुत ने कभी नहीं सोचा होगा कि उनके द्वारा शुरू की गई प्लास्टिक सर्जरी आज दुनिया में करोड़ों का कारोबार करेगी। प्लास्टिक सर्जरी के जनक कहे जाने वाले सुश्रुत ने इस सर्जरी की शुरुआत कर कई लोगों की समस्याओं और परेशानियों का हाल निकाल दिया। आज खूबसूरत बनने का दबाव हर एक मनुष्य पर है किसी को अपनी नाक नहीं पसंद तो किसी को अपने होंठ ऐसे में प्लास्टिक सर्जरी करा कर लोग अपना मन चाहा चेहरा और शरीर पा रहे हैं। [Rh/SP]
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