गाज़ा में बारूद से भी ज़्यादा जानलेवा हुई भूख! बंदूक की गोलियों से नहीं भूख से मर रहें है लोग!

कभी धमाकों से दहलता था गाज़ा (Gaza), अब वहां बड़ी खामोशी के साथ एक और जंग लड़ी जा रही है। इस बार दुश्मन बारूद या बम नहीं, बल्कि भूख है। खाली पेट, सूनी रसोई, और बिलखते बच्चे, ये अब गाज़ा (Gaza) की असली तस्वीर बन चुके हैं। जिन गलियों में पहले धमाकों की आवाज़ गूंजती थी, अब वहां सिर्फ भूखे बच्चों की रोती चीखें सुनाई देती हैं।
 इस बार दुश्मन बारूद या बम नहीं, बल्कि भूख है। [Sora Ai]
इस बार दुश्मन बारूद या बम नहीं, बल्कि भूख है। [Sora Ai]
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कभी धमाकों से दहलता था गाज़ा (Gaza), अब वहां बड़ी खामोशी के साथ एक और जंग लड़ी जा रही है। इस बार दुश्मन बारूद या बम नहीं, बल्कि भूख है। खाली पेट, सूनी रसोई, और बिलखते बच्चे, ये अब गाज़ा (Gaza) की असली तस्वीर बन चुके हैं। जिन गलियों में पहले धमाकों की आवाज़ गूंजती थी, अब वहां सिर्फ भूखे बच्चों की रोती चीखें सुनाई देती हैं। युद्ध ने जो छोड़ा, उसे अब भूख निगल रही है। यहां लोग मर रहे हैं, लेकिन गोली से नहीं, रोटी की तलाश में। हालात इतने बदतर हैं कि कई परिवारों ने घास, जानवरों का चारा और यहां तक कि प्लास्टिक तक उबालकर खाने की कोशिश की।

यह दर्द है उन माओं का जिनके स्तन में दूध नहीं आ रहा, क्योंकि उन्हें खुद कुछ खाने को नहीं मिल रहा। [X]
यह दर्द है उन माओं का जिनके स्तन में दूध नहीं आ रहा, क्योंकि उन्हें खुद कुछ खाने को नहीं मिल रहा। [X]

यह दर्द है उन माओं का जिनके स्तन में दूध नहीं आ रहा, क्योंकि उन्हें खुद कुछ खाने को नहीं मिल रहा। यह टीस है उन दादियों की जो मरी हुई माओं के नवजात बच्चों को मजबूरन काबुली चना पीसकर खिलाने की कोशिश कर रही हैं। वो पिता जिसके आंखों के सामने बच्चों को जानवरों का चारा खिलाया जा रहा, आटे में रेत पीसकर रोटी बनाई जा रही। गाज़ा में अब कोई जंग नहीं है, सिर्फ एक इंतज़ार है, खाना मिलने का, ज़िंदा रहने का, और दुनिया की नज़रों में आने का।

गाज़ा में अब कोई जंग नहीं है, सिर्फ एक इंतज़ार है, खाना मिलने का, ज़िंदा रहने का, और दुनिया की नज़रों में आने का। [X]
गाज़ा में अब कोई जंग नहीं है, सिर्फ एक इंतज़ार है, खाना मिलने का, ज़िंदा रहने का, और दुनिया की नज़रों में आने का। [X]

गाज़ा में भूख की जंग: जब रोटी हथियार से भी ज़्यादा जरूरी हो गई

गाज़ा (Gaza) की जंग अब सिर्फ मिसाइलों और ड्रोन से नहीं लड़ी जा रही, यहां एक अदृश्य दुश्मन हर घर में घुस चुका है: भूख (Gaza is Starving For Food)। युद्ध के कारण तबाह हुई सप्लाई चेन, बंद पड़े बाजार और सीमाओं पर लगी रोक ने हालात इस कदर बिगाड़ दिए हैं कि इंसानियत कराह उठी है। 14 साल की फातिमा, जो कभी स्कूल में टॉप किया करती थी, अब अपने छोटे भाई को खिलाने के लिए सड़क पर पड़ी सूखी रोटियां बटोरती है। “कभी सपने थे डॉक्टर बनने के,” वह कहती है, “अब सपना सिर्फ इतना है कि कल कुछ खाने को मिल जाए।”

गाज़ा के उत्तरी हिस्से में रहने वाला 62 वर्षीय अबू हमज़ा, जो पहले एक दर्जी था, अब अपनी दुकान के जले हुए मलबे के बीच बैठा बस यही सोचता है, क्या भूख से पहले मरेगा या कोई और बम गिर पड़ेगा? गाजा के एक अस्थायी तंबू में, तीन महीने की मुंताहा अपनी दादी की गोद में लेटी हुई है। दादी उसे खिलाने के लिए काबूली चने को पीसकर उसका पेस्ट बना रही है, यह जानते हुए कि यह पेस्ट मासूम बच्ची के मुंह में डालते ही वह दर्द से रोने लगेगी। लेकिन बच्चे को भूख से मरने से बचाने की कोशिश में दादी बेबस है।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गाज़ा में 10 में से 9 परिवारों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा। [X]
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गाज़ा में 10 में से 9 परिवारों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा। [X]

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गाज़ा में 10 में से 9 परिवारों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा। हालात इतने खराब हैं कि कुछ इलाकों में लोग जानवरों का खाना खाने को मजबूर हैं। यह सिर्फ एक मानवीय संकट नहीं, एक सामूहिक असफलता है, जहां दुनिया चुप है, और गाज़ा के लोग चिल्ला भी नहीं पा रहे... क्योंकि पेट खाली है और आवाज़ें भी थम चुकी हैं।

क्यों नहीं मिल रही है मदद?

गाज़ा की सरकार, जिसे हमास चलाता है, इस समय बेहद जटिल परिस्थितियों में काम कर रही है, लेकिन आम लोगों तक भोजन और मदद न पहुँच पाने की जिम्मेदारी से वह पूरी तरह बरी नहीं हो सकती। युद्ध के चलते गाज़ा में ज़रूरी सामानों की आपूर्ति लगभग पूरी तरह बंद हो चुकी है। इज़राइल और मिस्र द्वारा लगाई गई घेराबंदी की वजह से न तो पर्याप्त मात्रा में खाना अंदर पहुँच पा रहा है और न ही बाहर से सहायता ठीक से बंट रही है। लेकिन इससे बड़ी चिंता की बात यह है कि जो थोड़ी बहुत मानवीय मदद गाज़ा में पहुँचती भी है, वह भी आम लोगों तक पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से नहीं पहुँच रही। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों का आरोप है कि हमास इन राहत सामग्रियों का एक हिस्सा अपने लड़ाकों या राजनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल करता है, जिससे आम नागरिकों तक मदद पहुँचने में रुकावट होती है।

इसके अलावा, सरकारी संस्थाएं जैसे खाद्य वितरण केंद्र, अस्पताल और प्रशासनिक तंत्र या तो बमबारी में नष्ट हो चुके हैं या काम करने की स्थिति में नहीं हैं। बिजली और इंटरनेट की कमी ने हालात और बिगाड़ दिए हैं। कहने को तो हमास खुद को अपने लोगों का रक्षक कहता है, लेकिन युद्ध की स्थिति में उसकी प्राथमिकता लड़ाई और राजनीतिक प्रभाव में अधिक दिखती है, न कि भूखे बच्चों और पीड़ित परिवारों की सेवा में। यही कारण है कि गाज़ा की सड़कों पर भूख से तड़पते लोग हैं, लेकिन सरकार की तरफ से कोई ठोस, व्यवस्थित राहत दिखाई नहीं देती।

गाज़ा की सड़कों पर भूख से तड़पते लोग [X]
गाज़ा की सड़कों पर भूख से तड़पते लोग [X]

9 लाख से ज्यादा बच्चे भूख से बेहाल

गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 900,000 बच्चे भूखे हैं और 70,000 से ज्‍यादा बच्चे पहले से ही कुपोषण के लक्षण दिखा रहे हैं। डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने बताया है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों में गंभीर कुपोषण में सिर्फ दो हफ्तों में तीन गुना इजाफा हुआ है। भोजन की कमी के दीर्घकालिक प्रभाव होते हैं- डॉक्टरों का कहना है कि कई बच्चों के मस्तिष्क के विकास और इम्‍यून सिस्‍टम को पूरी तरह से नुकसान पहुंचा है।

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इस संकट से भले ही बच जाएं लेकिन उनका जीवन व्‍यर्थ रह जाएगा। संयुक्त राष्‍ट्र के अनुसार, गाजा की पूरी आबादी अब खाद्य असुरक्षा की श्रेणी में है। विवादास्पद गाजा ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन के जरिये से भोजन पहुंचाने के इजरायल और अमेरिका के प्रयासों की वजह से हिंसा हुई है। वहीं इस बीच, इजरायल ने यह मानने से ही इनकार कर दिया है कि लोग भूखमरी का सामना कर रहे हैं। [Rh/SP]

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