न्यूजग्राम हिंदी: भारत (India) में लोग जब भी कोई काम करवाने किसी दफ्तर जाते हैं तो उन्हें अक्सर यह सुनने को मिलता है कि कल आईए या कल आना। शायद आपमें से भी कुछ लोगों ने यह सुना हो। वैसे तो भारत में बहुत सी योजनाएं हैं लेकिन इनके लिए लंबी कतार में लग संघर्ष करना पड़ता है और कई बार उस लंबी कतार में लगने के बाद भी यह सुनने को मिलता है कि कल आना। लोग इस कल आना से परेशान होकर जाना ही बंद कर देते हैं। ऐसा करे भी क्यों ना जब कोई दस्तावेज सरकारी दफ्तर में जमा करने के लिए, कभी ना अंत होने वाली प्रतीक्षा कर अपना नंबर आता है तो ऐसी कानूनी भाषा का इस्तेमाल कर (जो आम आदमी के लिए समझ पाना भी संभव नहीं है) आपको कल आने के लिए कह दिया जाए तो व्यक्ति के सब्र का बांध टूट ही जाता है। लेकिन क्या आपने सोचा है कि इस कल आना के विषय में कानून क्या कहता है? आज के इस लेख में हम आपको यही बताएंगे।
• दिल्ली (Delhi) में एक ऐसा कानून बनाया गया है जो बाबू की समय सीमा को तय करता है।
• सच तो यह है कि 2010 के बाद से अब तक 22 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ऐसे बहुत से कानून बना चुके हैं। लेकिन दुख इस बात का भी है कि भारत के पास अब तक इससे जुड़ा कोई केंद्रीय कानून नहीं है।
• और इस तथ्य से कोई अंजान नहीं है कि राज्य द्वारा बनाए गए ज्यादातर कानून अपर्याप्त होते हैं।
चलिए जानते हैं कि राज्य द्वारा बनाए गए अधिकतर कानून अपर्याप्त क्यों होते हैं?
• क्योंकि राज्य द्वारा बनाए गए कानून सभी सरकारी सेवाओं पर लागू नहीं होते हैं।
• जिन 22 राज्यों ने इस मुद्दे से जुड़े कानून बनाए हैं, उनमें से कुल 13 राज्य ऐसे हैं जो डिजिटल सेवा पर भरोसा करते हैं और उनका उपयोग करते हैं। जी हां, बाकि के राज्य अभी भी अलमारी, फाइल और दफ्तरों में अटके हुए हैं।
भारत को इस मुद्दे से निपटने एक लिए एक अच्छे कानून की जरूरत है।
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