एक महान लेखक होने के बाद भी विवादों से पीछा नहीं छुड़ा पाए थे प्रेमचंद!

प्रेमचंद (Premchand) की खासियत यह थी कि उन्होंने साहित्य को बुद्धिजीवी (Elite) वर्ग की चीज़ नहीं रहने दिया। उन्होंने हिंदी को गाँव, खेत, मज़दूर, किसान और साधारण इंसान की भाषा बना दिया।
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) की तस्वीर
मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand)[Sora Ai]
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अगर हिंदी साहित्य का कोई “Father of Modern Hindi Literature” कहा जाता है, तो वो हैं मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand)। उन्होंने न केवल कहानियाँ लिखीं बल्कि अपने लेखन से समाज के दोहरे चेहरे को उजागर किया। उनके शब्द तलवार की तरह थे कभी चुभते, कभी जगाते, लेकिन हमेशा सच बोलते। प्रेमचंद (Premchand) की खासियत यह थी कि उन्होंने साहित्य को बुद्धिजीवी (Elite) वर्ग की चीज़ नहीं रहने दिया। उन्होंने हिंदी को गाँव, खेत, मज़दूर, किसान और साधारण इंसान की भाषा बना दिया। उनकी कहानियाँ सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि लोगों के दिल और दिमाग में उतर गईं।

Munshi Premchand की तस्वीर
Father of Modern Hindi Literature [X]

उनका सबसे बड़ा योगदान यही रहा कि उन्होंने साहित्य को सिर्फ मनोरंजन का साधन न बनाकर सामाजिक बदलाव (Social Reform) का हथियार (Powerful Tool) बना दिया। यही वजह है कि आज भी जब हम “Hindi Literature” की बात करते हैं, तो प्रेमचंद का नाम सबसे पहले आता है।

एक लेखक से प्रेमचंद बनने का सफ़र

प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय (Dhanpat Rai Shrivastava) था। प्रेमचंद का बचपन गरीबी और संघर्ष में बीता, लेकिन पढ़ाई-लिखाई के प्रति उनका झुकाव बचपन से ही था। उन्होंने शुरुआती दौर में उर्दू में “Nawab Rai” नाम से लेखन शुरू किया। 1908 में उनकी पहली कहानी संग्रह “सोज़-ए-वतन” (“Soz-e-Watan”) छपी, जिसने उन्हें पहचान दिलाई, लेकिन साथ ही विवादों में भी डाल दिया। सरकार ने इसे “अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ विद्रोही साहित्य” मानकर बैन कर दिया।

प्रेमचंद अपनी पत्नी के साथ
“Upanyas Samrat” [Wikimedia Commons]

इसके बाद उन्होंने अपना कलम नाम बदलकर प्रेमचंद (“Premchand”) रख लिया। यहीं से एक सामान्य लेखक का सफर महानायक (Premchand) बनने की ओर बढ़ा। उन्होंने जीवन भर साधारण लोगों की समस्याओं को अपने लेखन का केंद्र बनाया, किसान, स्त्रियाँ, गरीब मजदूर, और छोटे कर्मचारी उनके पात्र बनकर समाज का सच्चा आईना दिखाते रहे। उनकी रचनाओं ने पाठकों को यह एहसास कराया कि साहित्य सिर्फ राजा-रानियों और वीरगाथाओं का नहीं, बल्कि आम आदमी के जीवन का भी हो सकता है। यही सोच प्रेमचंद को उनके समय के बाकी लेखकों से अलग बनाती है और उन्हें “Upanyas Samrat” का दर्जा दिलाती है।

जब प्रेमचंद का हुआ विरोध

प्रेमचंद के जीवन का सबसे विवादित दौर उनकी पहली कहानी संग्रह “Soz-e-Watan” (1908) से जुड़ी है। इसमें लिखी गई कहानियाँ भारतीय समाज में आज़ादी की चिंगारी जगाने वाली थीं। अंग्रेज़ सरकार को यह खतरनाक लगा और उन्होंने किताब को तुरंत बैन कर दिया। सरकार ने प्रेमचंद को चेतावनी दी कि अगर वो ऐसे लेखन जारी रखते हैं तो नौकरी और आज़ादी दोनों छिन जाएँगे।

Soz-e-Watan की तस्वीर
Soz-e-Watan 1908 [X]

मजबूरी में उन्होंने “Nawab Rai” नाम छोड़कर “Premchand” नाम अपनाया। यही विवाद उनके करियर का (turning point) साबित हुआ। सोचा गया था कि इस बैन से वो टूट जाएँगे, लेकिन हुआ उल्टा। इसके बाद प्रेमचंद और भी ज्यादा धारदार लेखन करने लगे। उन्होंने “सेवासदन”, “निर्मला”, “गोदान”, और “कफन” जैसे उपन्यास लिखकर समाज के असली मुद्दों को सामने रखा। यह हिस्सा प्रेमचंद की जिंदगी का सबसे मुश्किल लेकिन सबसे अहम समय रहा। इसने उन्हें एक आम लेखक से राष्ट्रीय लेखक बना दिया।

हिंदी भाषा के विकास में प्रेमचंद का योगदान

प्रेमचंद का योगदान सिर्फ कहानियों और उपन्यासों तक सीमित नहीं था। उन्होंने हिंदी भाषा को जनभाषा और आगे चलकर राष्ट्रभाषा बनाने की दिशा में भी अहम भूमिका निभाई। उनके समय में उर्दू और अंग्रेज़ी का ज्यादा प्रभाव था, लेकिन प्रेमचंद ने साधारण और बोलचाल की हिंदी में लिखना शुरू किया।

निर्मला उपन्यास की किताब
Premchand का योगदान सिर्फ कहानियों और उपन्यासों तक सीमित नहीं था। [X]

उनका मानना था कि “साहित्य वही है जिसे हर वर्ग का इंसान समझ सके।” उनकी रचनाएँ किसानों, मजदूरों और महिलाओं की पीड़ा को इतनी सहज हिंदी में प्रस्तुत करती थीं कि गाँव-गाँव तक लोग उनसे जुड़ गए। “गोदान” जैसे उपन्यास और “कफन” जैसी कहानियाँ इस बात का उदाहरण हैं कि उन्होंने हिंदी को सच में जनसामान्य की भाषा बना दिया। सिर्फ इतना ही नहीं, Premchand ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की वकालत की। उनका कहना था कि अगर भारत को एकजुट रहना है, तो उसे एक साझा भाषा चाहिए, और हिंदी इस भूमिका के लिए सबसे उपयुक्त है।

गोदान उपन्यास की किताब
गोदान [X]


क्यों है प्रेमचंद इतने महान?

प्रेमचंद को हिंदी साहित्य का “उपन्यास सम्राट” कहा जाता है। सवाल उठता है आख़िर ऐसा क्या था उनकी लेखनी में कि वे अपने समय के सभी लेखकों से अलग और महान माने गए? सबसे पहली बात, प्रेमचंद ने साहित्य को मनोरंजन से निकालकर समाज का आईना बना दिया। उस दौर में जहाँ कहानियों और उपन्यासों में राजकुमार-राजकुमारियों की कल्पना भरी होती थी, वहीं प्रेमचंद ने किसान, मज़दूर, स्त्रियाँ और समाज के दबे-कुचले लोगों को अपनी रचनाओं का नायक बनाया।उनकी कहानियाँ जैसे “ईदगाह”, “पूस की रात”, और “कफन” आम आदमी की पीड़ा और संघर्ष को इतनी सच्चाई से दिखाती हैं कि पाठक आज भी उन्हें पढ़कर हिल जाते हैं। वहीं “गोदान” जैसा उपन्यास न सिर्फ हिंदी बल्कि विश्व साहित्य में ग्रामीण जीवन और शोषण की सबसे गहरी तस्वीर प्रस्तुत करता है।

प्रेमचंद को हिंदी साहित्य का “उपन्यास सम्राट” कहा जाता है।
प्रेमचंद को हिंदी साहित्य का “उपन्यास सम्राट” कहा जाता है। [Sora Ai]


दूसरी बड़ी बात, प्रेमचंद ने कभी सच बोलने से डर महसूस नहीं किया। चाहे अंग्रेज़ों का ज़ुल्म हो या समाज की कुरीतियाँ उनकी कलम ने हर जगह प्रहार किया। यही वजह थी कि उनकी रचनाएँ सिर्फ किताबें नहीं रहीं, बल्कि बदलाव का आह्वान बन गईं। इसलिए प्रेमचंद सिर्फ लेखक नहीं, बल्कि एक युगद्रष्टा और सामाजिक क्रांतिकारी माने जाते हैं। उनकी महानता इस बात में है कि उन्होंने साहित्य को जनता की आवाज़ बना दिया।


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प्रेमचंद (Premchand) सिर्फ एक लेखक नहीं थे, बल्कि समाज के सच को सामने लाने वाले क्रांतिकारी विचारक थे। उन्होंने हिंदी को नई पहचान दी और साहित्य को आम आदमी तक पहुँचाया। आज भी उनका लेखन हमें यही याद दिलाता है कि “साहित्य का मकसद सिर्फ सुंदरता नहीं, बल्कि सच और बदलाव है। [Rh/SP]

मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) की तस्वीर
हिंदी साहित्य की एक ऐसी लेखिका जिनपर लगे अश्लीलता के आरोप!

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