एआई और भविष्य: नौकरियां, असमानता और चुनौतियाँ

एआई हमारे समय की सबसे बड़ी ताकत भी है और सबसे बड़ी चुनौती भी। यह अमीरों को और अमीर बना सकता है और गरीबों को और गरीब, जैसा इतिहास में बार-बार हुआ है। सवाल यह है कि इंसान इस बदलाव से कैसे निपटेगा।
एआई और भविष्य
एआई और भविष्यAI Generated
Published on
3 min read

आज की दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence) सिर्फ एक तकनीक या टेक्नोलॉजी (Technology) नहीं बल्कि एक क्रांति है। लेकिन इस क्रांति का सबसे बड़ा असर यह है कि यह अमीर और गरीब के बीच के भेद भाव को और बढ़ा रहा है। जो कंपनियां और लोग एआई (AI) को अपनाते हैं, वे और ज़्यादा मुनाफा कमा रहे हैं। लेकिन साधारण नौकरी करने वाले लोग अपनी जगह मशीनों की वजह से खो रहे हैं। यही कारण है कि विशेषज्ञों का मानना है कि एआई का असली खतरा बेरोज़गारी और बढ़ती गरीबी है।

उदाहरण

18वीं और 19वीं सदी की औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। जब मशीनें आईं तो कारख़ानों में काम करने वाले लाखों मज़दूर बेरोज़गार हो गए। कपड़ा मिलों और फैक्ट्रियों में इंसानी हाथों की जगह मशीनों ने ले ली। फैक्ट्री मालिकों और उद्योगपतियों (Businessmen) ने खूब पैसा कमाया, लेकिन आम मजदूर या तो बेरोज़गार हुए या बहुत कम मज़दूरी पर कठिन हालात में काम करने को मजबूर हो गए।

20वीं सदी में भी यही हुआ। 1970–80 के दशक में जब फैक्ट्रियों में ऑटोमेशन आया तो असेंबली लाइन पर काम करने वाले लाखों लोग बेरोज़गार हो गए। मालिकों की कमाई बढ़ी लेकिन कामगारों की हालत और बिगड़ गई। 1990 और 2000 के दशक की टेक्नोलॉजी बूम (Technology Boom) ने कई अरबपति बनाए, लेकिन उसी दौरान लाखों लोगों की पारंपरिक नौकरियाँ छिन गईं।

आज एआई (AI) के दौर में इतिहास फिर खुद को दोहरा रहा है। कुछ कंपनियाँ और बड़े कारोबारी अरबों डॉलर कमा रहे हैं, जबकि आम लोग अपनी नौकरी खोने के डर से जूझ रहे हैं।

यूनिवर्सल बेसिक इनकम

कुछ लोग कहते हैं कि यूनिवर्सल बेसिक इनकम (Universal Basic Income) यानी सरकार की तरफ से हर नागरिक को एक तय राशि देना इस समस्या का हल हो सकता है। लेकिन सवाल सिर्फ पैसो का नहीं है। असली चुनौती यह है कि जब लोगों के पास करने के लिए काम नहीं होगा, तो वे अपनी पहचान और उद्देश्य खो देते है? काम सिर्फ पैसे कमाने का ज़रिया नहीं है, बल्कि इंसान की इज़्ज़त और आत्मसम्मान भी उसी से जुड़ा होता है।

एआई: वरदान या अभिशाप?
एआई: वरदान या अभिशाप?AI Generated

मानसिक और सामाजिक असर

अगर करोड़ों लोग बेरोज़गार हो जाएंगे, तो समाज पर इसका गहरा असर पड़ेगा। बेरोज़गारी से सिर्फ गरीबी नहीं बढ़ेगी, बल्कि गुस्सा (Anger), तनाव (Stress) और मानसिक बीमारियां (Mental Health problems) भी बढ़ेंगी। इतिहास में हमने देखा है कि आर्थिक असमानता (Income Inequality) अक्सर अशांति और संघर्ष को जन्म देती है इसकी वजह से राजनितिक अस्थिरता आती है और कई बार हमने सत्ता पलट होते भी देखा है। अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो एआई (AI) इंसानों के बीच दूरी और तनाव बढ़ा देगा।

Also Read: कैसे होते हैं लोग 'Sextortion' का शिकार? जानें बढ़ते मामलों की पूरी कहानी!

एआई: वरदान या अभिशाप?

एआई सिर्फ खतरा नहीं है, यह कई मौके भी लेकर आया है। स्वास्थ्य (Health), शिक्षा (Education) और जलवायु संकट (Water Scarcity) जैसी समस्याओं को हल करने में एआई मदद कर सकता है। लेकिन यह तभी होगा जब इसे सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए। अगर इसका फायदा सिर्फ चंद बड़ी कंपनियों और अमीरों तक सीमित रहा, तो यह एक अभिशाप बन जाएगा। लेकिन अगर इसे समाज के हर वर्ग की भलाई के लिए इस्तेमाल किया जाए, तो यह इंसानियत के लिए वरदान भी बन सकता है।

निष्कर्ष

एआई (AI) के दौर में असली चुनौती मशीनों से नहीं बल्कि उस असमानता से है जो यह पैदा कर रहा है। जैसे औद्योगिक क्रांति में हुआ, वैसे ही आज भी अमीर और अमीर हो रहे हैं और गरीब पीछे छूट रहे हैं। जरुरत है कि सरकारें, कंपनियां और समाज मिलकर इस बदलाव का समाधान ढूंढें। वरना आने वाला समय केवल अमीरों का होगा और गरीब और ज़्यादा कमजोर हो जाएंगे।

(Rh/Eth/BA)

एआई और भविष्य
मोबाइल की गिरफ्त में बच्चपन: बच्चो के स्वास्थ्य और मन पर बढ़ता खतरा

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com