
आजकल हमारी ज़िंदगी में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence AI) बहुत ही आम हो चुका है। चाहे गूगल पर कुछ सर्च करना हो, या कोई ईमेल लिखना हो, गाना सुनना हो या ऑनलाइन शॉपिंग करनी हो, हर जगह एआई हमारी मदद कर रहा है। यह टेक्नोलॉजी हमारी ज़िंदगी को आसान बनाती है, लेकिन क्या यह हमारी सोचने की क्षमता को भी कमज़ोर कर रही है? कई प्रकार के शोध बताते हैं कि हम जितना ज़्यादा एआई पर निर्भर होते जा रहे हैं, उतना ही हम अपने दिमाग़ का इस्तेमाल कम कर रहे हैं, खासकर क्रिटिकल थिंकिंग (Critical Thinking) यानी किसी बात को गहराई से सोचने और परखने की क्षमता।
क्या है क्रिटिकल थिंकिंग (Critical Thinking) और क्यों ज़रूरी है ?
क्रिटिकल थिंकिंग का मतलब होता है किसी भी विषय या जानकारी को तटस्थ होकर समझना, उसके सभी पक्षों पर विचार करना और फिर निष्कर्ष निकालना। यह क्षमता हमें समस्याओं को हल करने और सही निर्णय लेने में मदद करती है। डॉ. डैनियल विलींगहैम, जो अमेरिका की वर्जीनिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं, वो कहते हैं कि हम में से ज़्यादातर लोग अक्सर निर्णय लेने के लिए अपनी याददाश्त का सहारा लेते हैं, जबकि नई समस्याएं तब सामने आती हैं जब पहले का कोई अनुभव काम नहीं आता। ऐसे में क्रिटिकल थिंकिंग (Critical Thinking) ही मददगार साबित होती है।
जब हम किसी समस्या को हल कर लेते हैं तो वह अनुभव हमारी याददाश्त में दर्ज हो जाता है। अगली बार हम वैसी ही समस्या उसी अनुभव के आधार पर हल कर लेते हैं। इस आदत से हमारी सोचने की नई क्षमता कमज़ोर हो जाती है। असल में, दिमाग़ का जो हिस्सा सोचने का काम करता है, प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स, वह जल्दी थकता है। इसलिए हम आसान रास्ता चुनते हैं यानी सोचने के बजाय पुरानी याददाश्त से काम चलाते हैं। यह आदत धीरे-धीरे हमें आलसी बना देती है और हम नई चीजें सीखने में रुचि खोने लगते हैं।
क्या एआई वाकई सोचने की शक्ति छीन रहा है ?
एमआईटी की एक रिसर्च बताती है कि जिन लोगों ने एआई (AI) की मदद से निबंध लिखा, वो अगली बार बिना सोचे एआई पर ही निर्भर हो गए। इससे उनकी खुद की रचनात्मकता और सोचने की क्षमता घटती गई। यानी, अगर हम हर बार एआई से ही जवाब लेंगे, तो हमारी खुद की सोचने की आदत धीरे-धीरे खत्म हो सकती है। डॉ. माइकल गैरलिक बताते हैं कि एआई दो शब्दों से बना है – कृत्रिम (Artificial) और बुद्धि (Intelligence)। यह इंसान की तरह सोचने और सीखने की कोशिश करता है। इसके पास बहुत सारा डेटा होता है, जिससे यह सवालों के जवाब देता है। आज के एआई टूल्स, जैसे चैटबॉट, गूगल असिस्टेंट या एलेक्सा, सिर्फ एक तय जवाब नहीं देते, बल्कि आपकी भाषा, सन्दर्भ और सवाल के आधार पर विभिन्न जवाब दे सकते हैं। लेकिन इसमें एक बड़ी कमी है, ये मशीनें भावनाओं और गहरे संदर्भों को ठीक से नहीं समझ पातीं। इसलिए उनके जवाब कभी-कभी भ्रमित करने वाले या सतही हो सकते हैं।
जनरेटिव एआई, जैसे कि ChatGPT—कभी-कभी आपकी बातों से यह अंदाज़ा लगाने लगता है कि आप क्या सुनना चाहते हैं। फिर वह वैसा ही जवाब देता है, जिससे आपको अच्छा लगे। इसे “प्लीजिंग रिस्पॉन्स” कहा जाता है। डॉ. गैरलिक मानते हैं कि यह एक राहत देने वाली तकनीक है, जो आपका समय बचाती है, लेकिन यह हमें सोचने से दूर कर सकती है। अगर हम लगातार इसी पर भरोसा करते रहेंगे तो हमारी निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाएगी।
एआई को पढ़ाई में कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है?
सिंगापुर की यूवान सो ने एक ऐसा डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाया है, जिसका नाम है नूडल फैक्ट्री। यह एआई पर आधारित है और छात्रों को पढ़ाई में मदद करता है। यूवान बताती हैं कि कई बार छात्र टीचर्स से सवाल पूछने में हिचकिचाते हैं, तो यह प्लेटफॉर्म बार-बार उन्हीं सवालों के जवाब देता है और छात्र अपनी भाषा में चीज़ें समझ सकते हैं। इस प्लेटफॉर्म में कोर्स से जुड़ा सारा डेटा होता है, जिससे छात्र अपनी ज़रूरत के हिसाब से जानकारी पा सकते हैं। इससे टीचर्स का समय भी बचता है और छात्रों को भी सुविधा मिलती है। लेकिन यूवान साफ़ कहती हैं कि यह शिक्षकों की जगह नहीं ले सकता, बल्कि उनका सहायक हो सकता है। छात्रों को सोचने के लिए डेटा देना पड़ता है, यानी उनकी क्रिटिकल थिंकिंग (Critical Thinking) फिर भी सक्रिय रहती है।
सोचने की क्षमता बनाए रखने के उपाय
प्रोफेसर सना खरेनघानी कहती हैं कि एआई के जवाबों पर आँख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए। हमें जवाब मिलने के बाद खुद सोचकर निर्णय लेना चाहिए। उदाहरण के लिए कोई सुझाव मिले तो यह देखें कि क्या उसमें तर्क है? क्या उस जानकारी को किसी अन्य स्रोत से जांचा जा सकता है? क्या वह सुझाव सिर्फ बिक्री या प्रचार के मकसद से तो नहीं है? वो कहती हैं कि सरकारों को चाहिए कि वो एआई को पारदर्शी बनाएं ताकि यह बताया जा सके कि AI को अपने उत्तर पर कितना भरोसा है।
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तो क्या करें ऐसे में हमें क्या करना चाहिए ? एआई पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता से कैसे बचें ? आइये जानते हैं, सबसे पहले सवाल पूछने की आदत बनाए रखें। एआई से मिले जवाब को आखिरी सच न मानें। खुद सोचें, परखें और फिर निर्णय लें।पढ़ते और लिखते समय खुद सोचें।
एआई (AI) की मदद लें, लेकिन निबंध या उत्तर खुद सोचकर तैयार करें। बच्चों को सिखाएं एआई से सवाल करना। उन्हें समझाएं कि कैसे किसी जवाब को तर्क से परखना है। एआई से मदद लेना और अपने दिमाग से सोचने में संतुलन बनाए रखें। एआई को केवल सहायक बनाएं, निर्णायक नहीं।
निष्कर्ष
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence AI) हमारी ज़िंदगी को आसान बना सकता है, लेकिन अगर हमने सोचने की क्षमता खो दी तो यह दिमाग़ को सुस्त कर सकता है।
हमें एआई को इस्तेमाल करना है, लेकिन उसका गुलाम नहीं बनना है। याद रखिए, एआई आपकी सोच की जगह नहीं ले सकता, वह सिर्फ आपकी सोचने की प्रक्रिया को आसान बना सकता है। इसलिए, इस टेक्नोलॉजी को अपनाइए, पर अपने दिमाग़ से सोचना कभी मत छोड़िए। यही हमें इंसान बनाता है। [Rh/PS]