
हैदराबाद (Hyderabad) और आसपास के इलाकों में पिछले एक साल में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिन्होंने "फर्जी प्रमाणपत्र रैकेट" (Fake Degree) की गहरी जड़ों को उजागर किया है। आपको बता दें भारत में शिक्षा हमेशा से प्रतिष्ठा और सफलता का प्रतीक रही है। हर परिवार चाहता है कि उसके बच्चे अच्छी डिग्री हासिल करें और बेहतर नौकरी पाएँ। लेकिन जब यही सपना शॉर्टकट और धोखाधड़ी के रास्ते से पूरा करने की कोशिश की जाती है, तो न सिर्फ सिस्टम पर दबाव बढ़ता है बल्कि पूरे समाज की विश्वसनीयता भी खतरे में पड़ जाती है।
तेलंगाना पुलिस की 2024 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में 2023 की तुलना में अपराधों में 22.5% की वृद्धि हुई। इसमें सबसे तेज़ उछाल "धोखाधड़ी" वाले अपराधों में दर्ज किया गया है। केवल पिछले एक साल में ही शैक्षणिक बेईमानी और फर्जी प्रमाणपत्र से जुड़े 10,000 से ज्यादा मामले सामने आए। यह बढ़ोतरी लगभग 34% मानी जा रही है। यह आंकड़े सिर्फ नंबर नहीं हैं, बल्कि यह ये दिखाता है कि कितनी गहराई से नकली डिग्रियों और प्रमाणपत्रों का कारोबार फैल चुका है।
हाल ही में सबसे ताज़ा मामला सामने आया है, जब तेलंगाना पुलिस के 59 कांस्टेबल उम्मीदवार भर्ती प्रक्रिया के दौरान पकड़े गए थे। इन सभी ने जाली बोनाफाइड प्रमाणपत्र और फर्जी दस्तावेज़ जमा कराए थे। जांच में पाया गया कि 2022 में इन्हें अस्थायी रूप से भर्ती किया गया था, लेकिन दस्तावेजों की सत्यापन प्रक्रिया में इनकी पोल खुल गई।
भर्ती बोर्ड ने उन्हें नोटिस भेजकर सफाई मांगी, लेकिन उनके जवाब संतोषजनक नहीं थे। जिसका नतीजा यह हुआ कि हैदराबाद पुलिस के केंद्रीय अपराध थाने (CCS) ने इनके खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक षड्यंत्र का केस दर्ज कर लिया। यह घटना साफ दिखाती है कि नकली प्रमाणपत्र (Fake Degree) सिर्फ नौकरी पाने के लिए नहीं, बल्कि वर्दी जैसी जिम्मेदार सेवा में भी घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे हैं।
जून 2025 में नलगोड़ा जिले के एक 28 वर्षीय छात्र की गिरफ्तारी ने इस मामले को और गंभीर बना दिया। यह छात्र फर्जी बीएससी कंप्यूटर साइंस की डिग्री के सहारे अमेरिका के मिसौरी स्थित वेबस्टर यूनिवर्सिटी में दाखिला ले चुका था। उसने वहाँ 15 महीने पढ़ाई भी की। लेकिन जब उसने दोबारा अमेरिका में दाखि ला लेने की कोशिश की, तो आव्रजन अधिकारियों ने उसके SEVIS रिकॉर्ड में गड़बड़ी पाई और उसे वापस भारत भेज दिया। भारत लौटने पर जांच में सामने आया कि उसकी डिग्री नकली थी और इसी आधार पर उसका वीज़ा भी जारी हुआ था।
पूछताछ में उसने कबूल किया कि उसने यह डिग्री श्री धनलक्ष्मी ओवरसीज प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंसल्टेंसी एजेंसी से खरीदी थी। इस रैकेट का सरगना कथोज अशोक निकला, जिसने लगभग 15 छात्रों को फर्जी डिग्रियां बेचीं। हर डिग्री की कीमत 80,000 से 1 लाख रुपये थी।
अशोक की गिरफ्तारी के बाद पुलिस को कई और सुराग मिले। जून 2025 में ही, हैदराबाद के राहुल गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर तीन और छात्रों को रोका गया। ये सभी छात्र भी फर्जी दस्तावेजों के सहारे विदेश जाने की तैयारी कर रहे थे। इनमें से कुछ ने 40,000 रुपये तो कुछ ने 1.5 लाख रुपये तक खर्च किए थे। इसके बाद बैंक ऑफ इंडिया ने भी इन मामलों की जांच शुरू की और संदेह जताया कि इसके पीछे एक बड़ा नेटवर्क है, जो विदेशों में पढ़ाई के सपने बेच रहा है।
मई में मेहदीपट्टनम से पुलिस ने 108 नकली प्रमाणपत्र जब्त किए और चार लोगों को गिरफ्तार किया। इनमें मुख्य आरोपी मोहम्मद मुजीब हुसैन था, जो शिक्षा परामर्श फर्म चलाता था। आपको बता दें हुसैन कोलकाता और उत्तर प्रदेश से दस्तावेज़ खरीदकर हैदराबाद में बेचता था। बाकी आरोपी जैसे - नासिर, सोहेल और ज़िया ये सभी उसके साथ जुड़े हुए थे। इनमें से कुछ लोग ग्राहक बने और कुछ ने बिचौलिये का काम किया। इस गिरोह के तीन और साथी अब भी फरार हैं, जिन्हें पकड़ने के लिए पुलिस लगातार छापेमारी कर रही है।
फरवरी में पुलिस ने फिल्म नगर में एक और रैकेट का भंडाफोड़ किया। यहाँ से 114 नकली दस्तावेज़ बरामद किए गए और छह लोगों को गिरफ्तार भी किया गया। यहां मुख्य आरोपी मोहम्मद हबीब "फ्लाई अब्रॉड कंसल्टेंसी" के नाम से कारोबार कर रहा था। उसने उत्तर प्रदेश के जालसाजों से डिग्रियां खरीदीं और हैदराबाद में 1-1.5 लाख रुपये प्रति डिग्री बेचता था। उसका धंधा इतना सफल रहा कि उसने 2019 में अपनी दूसरी शाखा भी खोल ली थी।
पिछले साल अक्टूबर में अंबरपेट इलाके से भी 84 नकली दस्तावेज बरामद हुए थे। यह रैकेट एक फोटोकॉपी की दुकान से चल रहा था। वहां भी पुलिस ने दो आरोपियों को गिरफ्तार किया, जो उम्मीदवारों से मोटी रकम लेकर फर्जी डिग्रियां बनवा रहे थे।
इन सभी घटनाओं से साफ है कि फर्जी प्रमाणपत्र (Fake Degree) का कारोबार किसी एक जगह तक सीमित नहीं है। इसमें कंसल्टेंसी एजेंसियां, शिक्षा परामर्श देने वाले लोग, और यहाँ तक कि छोटे फोटोकॉपी सेंटर तक शामिल हैं। पुलिस का कहना है कि यह नेटवर्क राज्य की सीमाओं से बाहर तक फैला हुआ है। कई बार दस्तावेज उत्तर प्रदेश, कोलकाता या केरल से आते हैं और हैदराबाद (Hyderabad) में बेचे जाते हैं। यही वजह है कि स्थानीय पुलिस के लिए अकेले इस रैकेट को खत्म करना मुश्किल है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के रैकेट से निपटने के लिए सिर्फ राज्य पुलिस नहीं, बल्कि केंद्रीय एजेंसियों का दखल जरूरी है। तभी देशभर में फैले इस उद्योग पर अंकुश लगाया जा सकेगा।
निष्कर्ष
हैदराबाद (Hyderabad) में फर्जी प्रमाणपत्र (Fake Degree) रैकेट की इन घटनाओं ने शिक्षा की दुनिया पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। यह सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि युवाओं के भविष्य और पूरे समाज की विश्वसनीयता पर हमला है।
नकली डिग्रियां खरीदकर नौकरी या विदेश में दाखिला लेने वाले लोग शुरुआत से ही धोखे की नींव पर करियर खड़ा करते हैं। ऐसे में न केवल योग्य उम्मीदवारों का हक छीना जाता है, बल्कि पुलिस,स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे अहम क्षेत्रों की नींव भी कमजोर होती है।
इसलिए जरूरी है कि राज्य और केंद्र मिलकर इस "फर्जी डिग्री उद्योग" को खत्म करने के लिए सख्त कदम उठाएँ। वरना आने वाले सालों में यह कारोबार और बड़ा रूप ले सकता है और देश की शिक्षा व्यवस्था की जड़ें हिला सकता है। [Rh/PS]