
15 अप्रैल 2023 की रात प्रयागराज की सड़कों पर वो दृश्य पूरी दुनिया ने देखा होगा जिसने अपराध और राजनीति के रिश्ते पर एक बार फिर से गहरी बहस छेड़ दी। माफिया-राजनीतिज्ञ अतीक अहमद (Atiq Ahmed) और उसके भाई अशरफ को पुलिस कस्टडी में ही मीडिया के सामने गोली मार दी गई थी। यह घटना न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश के लिए एक चौकाने वाली घटना थी। एक ऐसा शख्स, जिसने तीन दशकों तक अपराध और राजनीति दोनों पर मजबूती से पकड़ बनाए रखी, उसका सफर इस तरह खत्म हुआ कि लोग हैरान रह गए।
अतीक अहमद (Atiq Ahmed) का जन्म प्रयागराज (तब इलाहाबाद) के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। बचपन से ही उसका झुकाव पढ़ाई-लिखाई में कम था और दबंगई की तरफ ज़्यादा था। कहते हैं कि किशोरावस्था में ही उसने मोहल्ले में दबंग लड़कों का गैंग बना लिया था। 1989 में उसने अपने जीवन का पहला और बड़ा अपराध (Crime) किया, उसका अपराध था देव स्वरूप शुक्ला की हत्या, इस हत्या ने अतीक को अपराध की दुनिया में चर्चित बना दिया। इसके बाद उसने एक के बाद एक अपराध किए और धीरे-धीरे इलाहाबाद में उसके सिर्फ नाम से ही लोग डरने लगे।
अतीक को यह समझ आ गया था कि सिर्फ अपराध के दम पर साम्राज्य नहीं टिक सकता, इसके लिए सत्ता और राजनीति में घुसना बहुत ज़रूरी है। 1989 में उसने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत भी गया। इसके बाद वह लगातार पांच बार विधायक भी बना।
2004 में समाजवादी पार्टी (सपा) ने उसे फूलपुर से लोकसभा चुनाव लड़वाया और अतीक संसद तक पहुंच गया। इस तरह वह "गैंगस्टर से सांसद" बन गया। लेकिन राजनीति में रहते हुए भी उसका आपराधिक नेटवर्क चलता रहा।
90 के दशक में अतीक अहमद का खौफ काफी बढ़ गया था, प्रयागराज और आसपास के जिलों में उसका खौफ इस कदर था कि लोग उसका नाम लेने से डरते थे। उसकी गैंग पर जबरन वसूली, अपहरण, हत्या और ज़मीन कब्ज़ाने जैसे सैकड़ों मामले दर्ज हुए थे। उसकी "माफिया स्टाइल" का असर इतना था कि बड़े-बड़े कारोबारी और बिल्डर भी उससे पूछ कर ही कोई भी काम करते थे। स्थानीय लोग कहते थे, कि इलाहाबाद में तो पत्ता भी अतीक की मर्जी के बिना नहीं हिल सकता।
2005 में हुए राजू पाल हत्याकांड ने अतीक के अपराधी चेहरे को पूरी तरह उजागर कर दिया। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के विधायक राजू पाल की हत्या में उसका नाम आया जिसकी वजह से उसका ज्यादातर अपराध सामने आ गया। आपको बता दें इस घटना ने पुरे प्रदेश की राजनीति को हिला कर रख दिया।
इसके बाद 2006 में उमेश पाल का अपहरण हुआ, जिस मामले में अतीक पर गंभीर आरोप लगे। आपको बता दें उमेश पाल वही शख्स थे, जो राजू पाल हत्या कांड के गवाह थे। बाद में 2023 में उमेश पाल की हत्या ने एक बार फिर अतीक के पूरे गैंग को सुर्खियों में ला दिया, और उसके बाद उनके सभी अपराधों का खुलासा हुआ।
2008 में अतीक (Atiq Ahmed) को पहली बार जेल भेजा गया। लेकिन चौकाने वाली बात यह है कि वो जेल से भी अपने गैंग और कारोबार को ऑपरेट करता रहा। उसके बाद प्रशासन ने कई बार उसे दूर-दराज की जेलों में शिफ्ट किया, लेकिन उसका नेटवर्क पुलिस से लेकर राजनीति तक फैला हुआ था। उसके संपर्क में बड़े-बड़े नेता रहते थे। यही कारण था कि उसे राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा और उसका साम्राज्य टूटने के बजाय और मजबूत होता चला गया।
अतीक अहमद की संपत्ति हजारों करोड़ में आंकी जाती है। पुलिस और ईडी की रिपोर्ट के अनुसार, उसने बेहिसाब जमीनों पर कब्ज़ा कर रखा था, बिल्डरों से वसूली और हवाला कारोबार से अपार दौलत बनाया हुआ था। उसकी गैंग के सदस्य सरकारी ठेकों से लेकर प्रॉपर्टी डीलिंग तक हर क्षेत्र में सक्रिय थे। यही वजह है कि वह जेल में रहते हुए भी करोड़ों का मालिक बना रहा।
अतीक ने राजनीति को अपने ढाल की तरह इस्तेमाल किया। वह 1989 से 2002 तक लगातार निर्दलीय विधायक भी रहा और 2004 में सपा से सांसद बना। उसके बाद उसने अपने दल से भी नज़दीकी बढ़ा ली। हर पार्टी ने समय-समय पर उसके प्रभाव का इस्तेमाल किया। यही कारण था कि जनता के बीच अतीक "नेता और अपराधी" दोनों रूपों में हमेशा पहचाना जाता रहा है।
अतीक (Atiq Ahmed) का असर दो तरह से दिखाई देता था। एक तरफ लोगों को उसका खौफ था, वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग उसे "रॉबिनहुड" की तरह भी मानते थे।
लोगों का दिल जितने के लिए वो गरीबों को मदद करता, धार्मिक स्थलों पर दान देता था और इलाके में "अपना आदमी" कहलाता था। लेकिन उसी के साथ उसका गैंग आम लोगों से ज़मीनें छीनता और विरोध करने वालों की हत्या कर देता था। यानि उसके चरित्र में अपराध और सामाजिक मदद दोनों का अजीब मेल दिखाई देता है।
15 अप्रैल 2023 को जब पुलिस अतीक और उसके भाई अशरफ को मेडिकल जांच के लिए ले जा रही थी, तभी तीन हमलावरों ने मीडिया के सामने गोलियाँ बरसा दीं जिसकी वजह से अतीक बुरी तरह से घायल हो गया। यह नज़ारा लाइव टीवी पर प्रसारित हुआ। शहर में अतीक कभी राजनीति और अपराध दोनों पर हुकूमत करने वाला इंशान था, उसी शहर की सड़कों पर गोली से ढेर हो गया। इस हत्या ने अतीक के आतंक के साम्राज्य का अंत कर दिया।
निष्कर्ष
अतीक अहमद की कहानी से हमे यह सिख मिलता है कि कैसे अपराध (Crime) और राजनीति का गठजोड़ दशकों तक कायम रह सकता है। अतीक अहमद एक गरीब परिवार से उठकर अपराध के दम पर साम्राज्य बनाया, और उसके बाद राजनीति में घुसा, फिर संसद पहुंचा और उसके बाद करोड़ों की संपत्ति खड़ी कर दी। लेकिन अंततः उसका सफर उसी रास्ते पर खत्म हुआ जिस रास्ते को उसने खुद से चुना था, खून गोलियों और अपराध से भरा रास्ता। अतीक की मौत के बाद आज भी यह सवाल उठता है कि क्या राजनीति में अपराध का असर कभी खत्म होगा ? और क्या आने वाली पीढ़ियाँ अपराधियों को नेता बनाने की गलती दोहराएँगी ? यह सवाल सभी के दिल और दिमाग में हमेशा रहता है। [Rh/PS]