'सुराज' लाने में नाकाम रह गईं सरकारें

वर्तमान व्यवस्था के अंदर इतने वर्षों के बाद भी आज हम जिसे अमृत काल कहना चाह रहे हैं, उसमें हमारे देश और देशवासियों की स्थिति अत्यंत दयनीय और शर्मनाक है|
'सुराज' लाने में नाकाम रह गईं सरकारें (साभार-
'सुराज' लाने में नाकाम रह गईं सरकारें (साभार-PIB

संपादकीय टिप्पणी: कई दिनों से इन्टरनेट पर एक पत्र तेजी से वायरल हो रहा है, जिसपर न्यूजग्राम टीम का ध्यान गया। इस पत्र में बहुत ही प्रभावी एवं हृदय को भावुक कर देने वाली बातें हैं। देश द्वारा अमृत महोत्सव मनाए जाने के संदर्भ में देश का जिम्मेदार नागरिक होने के नाते राम लठ्ठठाके जी ने देश के चुने हुए प्रतिनधियों, राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री, को आहवाहन करते हुए कहा कि या तो आप इस्तीफा दे दीजिए या फिर सुराज की जो परिकल्पना की गई थी, उसे पुनर्स्थापित करिए। एक आम भारतीय नागरिक के रूप में उनके विचार बड़े प्रासंगिक हैं। इसलिए हम अपने पाठकों के लिए यह पत्र हूबहू वैसा ही प्रस्तुत कर रहे हैं, जैसा प्राप्त हुआ है। पढ़िए और समझिए कि देश की असल परिस्थिति क्या है और कैसे बेहतर हो सकती है।

"खुला पत्र"

सेवा में,

देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं अन्य मंत्रीगण, लोकसभा अध्यक्ष / राज्यसभा अध्यक्ष एवं सभी सांसद गण, राज्यों के मुख्यमंत्री एवं अन्य मंत्रीगण, सारे विधान सभा अध्यक्ष एवं सभी विधायक गण, सर्वोच्च एवं सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य एवं अन्य न्यायाधीश गण|*

महोदय / महोदया,

भारत के एक जिम्मेदार एवं जागरूक नागरिक की हैसियत से आप सभी महानुभावों के नाम यह खुला पत्र लिखना आज मेरे लिए अत्यावश्यक और अपरिहार्य हो गया है| अंग्रेजों के शासन से मुक्त होने के 75 वर्षों बाद, आज जब आप सब लोग आजादी का अमृत महोत्सव मनाने में व्यस्त हैं और देश के वर्तमान को अमृत काल के रूप में मनाए जाने का आह्वान किया जा रहा है, उस समय अगर मैंने आप सबको देश के साथ आप सभी के द्वारा की जाने वाली गद्दारी और बेईमानी का एहसास नहीं कराया, तो मैं स्वयं को भी आप जैसे गद्दारों और बेईमानों के साथ खड़ा पाऊंगा|

अंग्रेजों के शासन से मुक्ति के लिए जो स्वाधीनता संग्राम लड़ा गया और अनगिनत लोगो ने इसके लिए जो त्याग या कुर्बानी दी, उसका मुख्य उद्देश्य केवल अंगरेजी शासन से मुक्ति नहीं, वरन देश को शासन पद्धति की व्यवस्था से मुक्त करवाकर देश में सेवा पद्धति की व्यवस्था को कायम करना था| स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन के समय में इसके लिए स्वराज और सुराज शब्द प्रयोग किए जाते थे| इन दो उद्देश्यों में से पहला, स्वराज, तो 15 अगस्त 1947 के दिन प्राप्त कर लिया गया| लेकिन सुराज के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए जिस संविधान को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया, उसके 72 वर्षों की व्यवस्था के बाद भी आज हम ऐसे मोड़ पर आकर खड़े हैं, जहाँ सुराज की बात करने वाले को भी देशद्रोही घोषित होकर अपमानित और प्रताड़ित होने का भय सताने लगता है| भारत का हर नागरिक आज भी सेवा की जगह शासन व्यवस्था का शिकार है और आप जैसे मदांध सत्ताधारियों के गुलाम की तरह जीते रहने के लिए मजबूर है| 1974 -75 में लोकनायक जयप्रकाश जी ने वर्तमान व्यवस्था को पहचानकर देश की जनता को देश में सम्पूर्ण क्रांति लाने का आह्वान किया था लेकिन वह आह्वान लोकनायक की उम्र और उनके साथ खड़े होने वाले कुछ सत्तालोलुप व्यक्तियों के कारण व्यवस्था परिवर्तन की जगह केवल सत्ता परिवर्तन होने तक सीमित रह गया|

वर्तमान व्यवस्था के अंदर इतने वर्षों के बाद भी आज हम जिसे अमृत काल कहना चाह रहे हैं, उसमें हमारे देश और देशवासियों की स्थिति अत्यंत दयनीय और शर्मनाक है| सत्ता की विभिन्न कुर्सियों पर बैठे आप जैसे गद्दारों और धोखेबाजों की वजह से आज भी हमारे देश में हर तरफ सामाजिक अन्याय, अत्याचार, भय, भुखमरी, गरीबी, आर्थिक एवं शैक्षणिक अवसरों की असमानता, असंतोष, बेरोजगारी, अशांति, बेवशी, जन्म आधारित जातिप्रथा एवं जातीय विद्वेष, जाति आधारित आरक्षण, धार्मिक उन्माद और असहिष्णुता, धार्मिक पाखण्ड, अन्धविश्वास, अज्ञानता, अशिक्षा, असमान शिक्षा एवं शिक्षा का व्यापारीकरण, प्राकृतिक संसाधनों का असमान वितरण, अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा, प्रतिभा पलायन, स्त्रियों के लिए सुरक्षा तथा सम्मान की भावना का आभाव, पानी/ बिजली/ सड़क की समस्या, अस्वच्छता, आतंकवाद एवं नक्सलवाद, भ्रष्टाचार, क्षेत्रवाद, भाई-भतीजावाद, नशाखोरी, दहेज़ प्रथा, लंगडी अंधी और बहरी न्याय और कानून व्यवस्था, पुरानी पर चुकी झूठी और धोखेबाज चुनाव व्यवस्था, सत्ता मदांध नेता एवं पदाधिकारी, भ्रष्ट, अयोग्य, अकर्मण्य, अत्याचारी और स्वार्थी राजनेता, राजनीतिक परिवारवाद, राजनीतिक पार्टियों की दिशाहीनता, आम जनता का राजनेताओं पर अविश्वास और सरकारी आतंकवाद और गुंडागर्दी का माहौल है| देश और देशवासियों की स्थिति लगातार ख़राब होती जा रही है| इससे यह स्पष्ट है कि जिस व्यवस्था के अंतर्गत 72 या 75 वर्षों में देश की स्थिति में सुराज के उद्देश्य की दिशा में कोई प्रगति नहीं हो सकी, उस व्यवस्था के अन्दर आगे भी कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है| इसके लिए वर्तमान शासन की व्यवस्था की जगह सेवा की व्यवस्था को लाए बिना सुराज के उद्देश्य की प्राप्ति करना असंभव है| जब तक ये व्यवस्था कायम है और आप जैसे लोग इस व्यवस्था में सत्ता पर काबिज हैं, तबतक किसी भी प्रकार के अच्छे परिवर्तन की उम्मीद करना मूर्खता होगी| अतः इसके आगे अब केवल दो रास्ते बचते हैं|

'सुराज' लाने में नाकाम रह गईं सरकारें (साभार-
संविधान में उल्लेख नहीं, तो क्यों पार्टियां अस्तित्व में हैं?

पहला रास्ता ये है कि आप सभी सत्ताधीशों से ये अपील की जाए कि आप सभी अपने पदों से इस्तीफ़ा दें और एक नए संवैधानिक व्यवस्था का आगाज किया जाए, जिसमें जनता के ऊपर शासन नहीं, सेवा की व्यवस्था हो और जहाँ सबके लिए स्वतंत्रता, समानता और न्याय को सुनिश्चित किया जा सके| आप सब से ये अपेक्षा होगी कि ऐसी व्यवस्था के आगाज में आप अपना सहयोग देंगे और वैकल्पिक व्यवस्था को लागू किए जाने के लिए एक निश्चित समय सीमा तय कर दी जाएगी| नई सेवा व्यवस्था ऐसी होगी जिसमें सभी सार्वजनिक संस्थान सीधे-सीधे जनता के द्वारा चलाए जाएँगे और जिसके लिए सूचना क्रांति / ब्लॉकचेन आधारित तकनीक का प्रयोग करते हुए जनता के द्वारा सभी अधिकारी नियुक्त किए जाएँगे और वे सीधे-सीधे जनता के प्रति जिम्मेदार और उत्तरदायी होंगे| जन प्रतिनिधि वाले डेमोक्रेसी का अंत करके डायरेक्ट डेमोक्रेसी आधारित नई व्यवस्था कायम की जाएगी| पूरी तरह से नए संविधान के निर्माण के लिए देश की सारी जनता तकनीक के माध्यम से सीधे भाग लेगी और संविधान के हर प्रावधान पर पूरे देश की जनता के बहुमत के आधार पर फैसला लिया जाएगा| नई व्यवस्था में देश के किसानों, कामगारों और आम जनता के हितों को सर्वोपरि रखते हुए समानता, स्वतंत्रता और न्याय की व्यवस्था होगी| सत्ता से बड़े उद्योगपतियों, राजनीतिक मठाधीशों और बड़े अधिकारियों के वर्चस्व को ख़त्म करके शासन और शासक की जगह सेवा और सेवक वाली नई व्यवस्था कायम की जाएगी| नई सेवा व्यवस्था में शासन और प्रशासन को जाति, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा, बोली, क्षेत्र, आजीविका आदि के नाम पर ‘फूट डालो और राज करो’ की भावना से निकालकर त्याग, बलिदान और ‘आओ, मिलकर सेवा करें’ की अवधारणा के आधार पर पुनर्व्यवस्थित करते हुए सुराज के उद्देश्य की प्राप्ति के अनुकूल बनाया जाएगा| एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण होगा जिसमें समाज के अंतिम व्यक्ति समेत सभी नागरिकों के लिए सम्मान के साथ जीवन यापन की व्यवस्था होगी और जिसमें सभी के लिए भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन एवं यात्रा करने की न्यूनतम सुविधा उपलब्ध करवाना सामाजिक दायित्व होगा| नई व्यवस्था में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा को व्यावसायिकता के चंगुल से निकाल कर वैज्ञानिक सोच के साथ सामाजिक सेवा का भाव विकसित करने के माध्यम के रूप में पुनर्स्थापित किया जाएगा|

आशा है कि इस पत्र की प्राप्ति के बाद आप सभी इस पहले रास्ते से नई व्यवस्था को स्थापित करने में अपना पूर्ण सहयोग देंगे और इस व्यवस्था के आगाज के लिए बिना किसी विलम्ब के एक राष्ट्रीय बहस शुरू की जाएगी और नई व्यवस्था को लागू किए जाने के लिए अगले 24 महीने के अन्दर की कोई तारिख तय कर दी जाएगी| अगर पहले रास्ते से ही सुराज और सेवा व्यवस्था के उद्देश्य की प्राप्ति हो जाती है तो ये सबके हित में होगा| लेकिन अगर इस व्यवस्था को इस पहले रास्ते से लागू करने में आप सभी का स्वार्थ आड़े आ गया तो फिर दूसरे रास्ते से इसे प्राप्त करना देश की जनता के लिए एकमात्र विकल्प होगा| यह दूसरा रास्ता होगा सम्पूर्ण क्रांति का जिसमें अहिंसा और सत्याग्रह को अपनाकर देश व्यापी आन्दोलन किया जाएगा और देश की पूरी शासन व्यवस्था को पूर्णतः ठप्प करने के अलावा जनता के पास और कोई चारा नहीं होगा| इस रास्ते में देश की जनता के द्वारा संसद, सभी राज्यों की विधायिका, ब्लाक लेवल के कार्यालयों से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक सारे सरकारी दफ्तर, तहसील स्तर से लेकर सर्वोच्च न्यायलय तक सारे सरकारी संस्थानों और सभी मंत्रियों, नेताओं और उच्च न्यायाधीशों के आवास पर शांतिपूर्ण और अहिंसक तरीके से धरना दिया जाएगा| इस रास्ते में देश की सेना और सुरक्षा कर्मियों से यह अपील की जाएगी कि वे इस तरह की सम्पूर्ण क्रांति का आगाज करने वाले अहिंसक और शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन करने वाले स्वयंसेवकों के विरुद्ध बल प्रयोग के सरकारी आदेश को मानने से इनकार कर दें|

हमारी आप सभी से यह अपेक्षा है कि देश की जनता की भावना को ध्यान में रखते हुए आप सभी पहले रास्ते से सुराज वाली सेवा व्यवस्था को स्थापित करने में सहयोग करेंगे और दूसरे रास्ते से इस व्यवस्था को कायम करने में होने वाले संसाधनों के नुकसान से देश को बचा लेंगे|

- राम लठ्ठठाके

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