
बचपन से थोप दी गई शादी की बात
महाराष्ट्र के बीड ज़िले के शिरुर कासर गांव की रहने वाली सोनाली बडे (Sonali Bade) की ज़िंदगी बचपन से ही संघर्षों से भरी रही। जब वह मात्र 13 साल की थीं और नौवीं क्लास में पढ़ रही थीं, तभी उनके माता-पिता ने उनकी शादी तय कर दी। जिस लड़के से उनकी शादी तय हुई, उसकी उम्र 30 साल थी। सोनाली कहती हैं कि वह दिन आज भी उन्हें बेचैन कर देता है, क्योंकि यह उनकी मासूमियत और सपनों को छीन लेने वाला दिन था। उनके परिवार की हालत बेहद साधारण थी। माता-पिता गन्ना काटने का काम करते थे। सोनाली की तीन बहनें और एक भाई था। परिवार की सोच थी कि लड़कियों को ज़्यादा पढ़ाने की ज़रूरत नहीं है, जल्दी शादी (Child marriage) कर देना चाहिए तो इससे ज़िम्मेदारी कम हो जाएगी।
सोनाली (Sonali Bade) बताती हैं कि जब भी लोग लड़की देखने आते थे, उन्हें स्कूल से जबरन घर बुला लिया जाता था। बार-बार यही कहा जाता कि उनकी ज़िम्मेदारी कौन उठाएगा ? उनके इलाके में लड़कियों का दसवीं पास करने से पहले ही शादी कर देना आम बात थी। उनके माता-पिता को लगता था कि जब आसपास सभी लड़कियां शादी कर रही हैं तो उनकी बेटी अलग क्यों कर रही है। यहां तक कि उनकी बड़ी बहन की भी कम उम्र में शादी हो गई थी। सोनाली का सपना था कि कम से कम 12वीं तक पढ़ाई पूरी कर लें। वह उम्मीद करती थीं कि ससुराल जाकर आगे पढ़ाई कर लेंगी। लेकिन घरवालों को यह मंजूर नहीं था।
शादी के नाम पर मजबूरी
नौवीं क्लास (Ninth grade) में पढ़ते-पढ़ते अचानक उनकी शादी (Child marriage) तय कर दी गई। यह सब इतना जल्दी हुआ कि सोनाली (Sonali Bade) को विरोध करने का मौका ही नहीं मिल पाया। शादी से एक दिन पहले लड़के वाले आए और अगले ही दिन शादी कर दी गई। वह बताती हैं कि उनके पिता ने धमकी दी थी कि अगर उन्होंने इनकार किया तो वह खुदकुशी कर लेंगे। हल्दी के कार्यक्रम में भी सोनाली सामान्य दुल्हन की तरह व्यवहार नहीं कर पाईं। शादी के समय उन्हें लग रहा था कि यह सब गलत हो रहा है, लेकिन उनकी आवाज़ दबा दी गई।
सोनाली ने पुलिस तक भी पहुंचने की कोशिश की, लेकिन वहां भी मदद कोई नहीं मिली। दरअसल, उस इलाके में बाल विवाह इतना आम था कि कोई इसे अपराध नहीं मानता था। यही नहीं, उनकी शादी में पुलिस और सरपंच तक मौजूद थे। यहां तक कि विवाह की रस्में उनके स्कूल परिसर में बने मंदिर में हुईं। स्कूल देखकर सोनाली का मन टूट गया और वह रो पड़ीं। लेकिन माता-पिता ने लोगों को समझा दिया कि बेटी मां-बाप को छोड़ने के कारण रो रही है।
विदाई से पहले ही बगावत
शादी के बाद जब उन्हें विदाई के लिए कार में बिठाया गया, तभी उन्होंने तय कर लिया कि वह ससुराल नहीं जाएंगी। जैसे ही गाड़ी गांव से निकलकर हाईवे पर पहुंची, सोनाली ने उल्टी होने का बहाना किया और कार का दरवाज़ा खोलकर चलती गाड़ी से कूद गईं। वह कहती हैं, “मुझे लगा अगर मैं इस छलांग से बच गई तो अपनी ज़िंदगी बदल सकती हूं।” किस्मत से उन्हें गंभीर चोट नहीं आई। लेकिन घर लौटने के बाद उनका जीवन और कठिन हो गया।
शादी के बाद उन्होंने ससुराल जाने से साफ इनकार कर दिया। इसके कारण माता-पिता ने उनसे नाता तोड़ लिया और कहा कि वह उनके लिए मर चुकी हैं। पति बार-बार उन्हें लेने आता, कभी बहलाने और कभी जबरदस्ती करने की कोशिश करता। सोनाली कहती हैं, “जब पति आता तो मैं पहाड़ों में छिप जाती थी और तभी लौटती जब वह वापस चला जाता था।” इस पर समाज भी उनका मज़ाक उड़ाता था, पूरे साल उन्हें रिश्तेदारों के यहां भेजा गया ताकि गांव वाले ताने न दें। लेकिन सोनाली ने हार नहीं मानी। उन्होंने पढ़ाई को हथियार बनाया।
पढ़ाई के लिए जज़्बा
नौवीं क्लास (Ninth grade) की पढ़ाई छूट गई थी, लेकिन उन्होंने दोस्तों की मदद से परीक्षा दी और फिर दसवीं का फॉर्म भी भरा। किताबों के लिए पैसे नहीं थे तो खेतों में मज़दूरी की। वह रोज़ 70 रुपये कमातीं और उन्हीं पैसों से पढ़ाई करती थी। इसी दौरान उनकी मुलाकात एक आशा कार्यकर्ता से हुई। उसने उन्हें प्रोत्साहित किया कि और उन्होंने कहा गांव छोड़कर बाहर पढ़ाई करें। सोनाली को सतारा की वकील वर्षा देशपांडे के बारे में पता चला, जो बाल विवाह के खिलाफ काम कर रही थीं। सोनाली ने उनसे संपर्क किया और वहां जाने का निश्चय किया।
लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत थी पैसे की। सोनाली (Sonali Bade) के पास यात्रा और पढ़ाई के लिए पैसा नहीं था। तब उन्होंने शादी का मंगलसूत्र छिपाकर बेच दिया और पांच हज़ार रुपये जुटाए। इन्हीं पैसों से वह सतारा पहुंचीं और वर्षा देशपांडे के ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल हो गईं। उन्होंने वहां नर्सिंग कोर्स करने का फैसला किया। प्राथमिक स्तर का कोर्स पूरा करने के बाद सोनाली पुणे चली गईं और अलग-अलग अस्पतालों में नौकरी करने लगीं।
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नौकरी करते-करते उन्होंने पैसे बचाए और आगे की पढ़ाई करने का निश्चय किया। उन्होंने जेएनएम में नर्सिंग का कोर्स किया, जिसकी फीस एक लाख रुपये थी। यह कोर्स पूरा करने के बाद सोनाली अब पुणे के एक बड़े अस्पताल में नर्स हैं। 26 साल की सोनाली अब अपने पैरों पर खड़ी हैं। उनकी छोटी बहन को भी पढ़ाई का मौका मिला क्योंकि सोनाली ने राह दिखाई।
यह कहानी सिर्फ सोनाली (Sonali Bade) की ही कहानी नहीं हैं, बल्कि उन हज़ारों बच्चियों की उम्मीद हैं, जिनकी ज़िंदगी बचपन में ही शादी (Child marriage) के बोझ तले दबा दी जाती है। उन्होंने साबित किया कि अगर हिम्मत और जज़्बा हो तो सबसे मुश्किल हालातों को भी बदला जा सकता है। सोनाली कहती हैं कि अब उनका सपना पूरा हो गया है। वह पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हैं और अब एक अच्छे साथी की तलाश में हैं, जो उनकी सोच और संघर्ष को समझ सके।
निष्कर्ष
सोनाली की कहानी सिर्फ बाल विवाह के खिलाफ़ लड़ाई नहीं, बल्कि एक ऐसी लड़की की जंग है जिसने समाज, परिवार और परंपराओं के खिलाफ खड़े होकर अपनी ज़िंदगी बदली। यह कहानी हमें सिखाती है कि शिक्षा ही असली ताकत है और वही किसी भी लड़की को अपने पैरों पर खड़ा कर सकती है। [Rh/PS]