![किरण बेदी भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी बनने वाली एक प्रेरणास्रोत महिला हैं [SORA AI]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-07-18%2Ftmoaa75u%2Fassetstask01k0eqhm4pet5t5adrh4ysybw61752841238img0.webp?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
किरण बेदी (Kiran Bedi) भारत की पहली महिला आईपीएस (IPS) अधिकारी बनने वाली एक प्रेरणास्रोत महिला हैं, जिनका नाम आते ही ईमानदारी, साहस और कर्तव्यनिष्ठा की छवि सामने आती है। उन्होंने पुलिस सेवा के पुरुष-प्रधान माहौल में अपने काम से न सिर्फ जगह बनाई बल्कि एक ऐसा उदाहरण पेश किया जिसे आज भी प्रशासनिक क्षेत्र में मिसाल के रूप में देखा जाता है। उनकी जिंदगी और सेवा की कहानियां युवाओं के लिए आदर्श हैं, जिनमें से सबसे चर्चित किस्सा है जब उन्होंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की कार को गलत पार्किंग के चलते क्रेन से उठवा लिया था। यह घटना ही नहीं, बल्कि उनका पूरा करियर नारी शक्ति की ताकत का प्रतीक बन चुका है।
ऐसे बनीं किरण बेदी भारत की पहली महिला IPS
किरण बेदी (Kiran Bedi) का जन्म 9 जून 1949 को पंजाब के अमृतसर (Amritsar) में हुआ था। पढ़ाई में शुरू से ही होशियार किरण ने अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की और इसके बाद कानून की पढ़ाई भी की। टेनिस में वह राष्ट्रीय स्तर की चैंपियन रहीं और 1972 में उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा की परीक्षा पास की। वह इस परीक्षा को पास करने वाली देश की पहली महिला बनीं और उन्हें पॉन्डिचेरी में एएसपी (Assistant Superintendent of Police) के रूप में पहली पोस्टिंग मिली।
उनकी नियुक्ति ने उस दौर में हलचल मचा दी थी, जब पुलिस सेवा को पूरी तरह पुरुषों का क्षेत्र माना जाता था, लेकिन किरण बेदी (Kiran Bedi) ने न केवल इस सोच को तोड़ा, बल्कि साबित किया कि महिलाएं न केवल इस क्षेत्र में टिक सकती हैं, बल्कि श्रेष्ठतम भी साबित हो सकती हैं।
जब किरण बेदी ने उठवा की थी इंदिरा गांधी की कार
किरण बेदी (Kiran Bedi) की छवि तब और अधिक मज़बूत हो गई जब उन्होंने 1982 में दिल्ली पुलिस की ट्रैफिक विभाग की डीसीपी के रूप में काम करते हुए एक ऐसा कदम उठाया जो आमतौर पर किसी अफसर से अपेक्षित नहीं था। दरअसल, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के काफिले में शामिल एक कार को गलत जगह पर पार्क किया गया था, जो ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन था। नियमों के अनुसार, किरण बेदी (Kiran Bedi) ने उस कार को क्रेन से उठवाकर हटवा दिया।
जब बाद में पता चला कि वह कार प्रधानमंत्री कार्यालय की थी, तो कई लोगों को लगा कि किरण बेदी (Kiran Bedi) को सस्पेंड कर दिया जाएगा। लेकिन उन्होंने नियमों का पालन किया था, और उनकी ईमानदारी की वजह से न सिर्फ उन्हें सजा नहीं मिली, बल्कि वे पूरे देश में 'क्रेन बेदी' के नाम से प्रसिद्ध हो गईं। बाद में खुद इंदिरा गांधी ने उन्हें दोपहर के खाने पर बुलाया और उनके काम की सराहना की।
इन फैसलों ने बदली समाज की सोच
अपने करियर में किरण बेदी (Kiran Bedi) ने कई ऐसे फैसले लिए जो उस समय बेहद साहसी माने जाते थे। तिहाड़ जेल की महानिरीक्षक के रूप में उन्होंने वहां आध्यात्मिक कार्यक्रम, योग, ध्यान और शिक्षा को शामिल किया, जिससे कैदियों के जीवन में बदलाव आया। उन्होंने 'Navjyoti Foundation' और 'India Vision Foundation' जैसी संस्थाएं बनाई जो नशा मुक्ति और जेल सुधारों पर काम करती हैं। ट्रैफिक विभाग में रहते हुए उन्होंने ‘स्पॉट फाइन’ प्रणाली शुरू की, जिससे ट्रैफिक उल्लंघन करने वालों को तुरंत दंडित किया जा सके। वे राजनीतिक दबावों से भी नहीं झुकीं और हर बार न्याय और नियमों को प्राथमिकता दी।
उन्होंने महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों के लिए कई योजनाएं चलाईं और बलात्कार पीड़ितों के लिए काउंसलिंग और हेल्पलाइन की शुरुआत की, जो उस समय एक अनसुना कदम था।
जब किरण बेदी बदला तिहाड़ जेल का नक्शा
जब 1993 में किरण बेदी (Kiran Bedi) को दिल्ली की कुख्यात तिहाड़ जेल का डीआईजी नियुक्त किया गया, तब वहां का माहौल भयावह था। कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार, गंदगी, भ्रष्टाचार और हिंसा आम बात थी। लेकिन किरण बेदी (Kiran Bedi) ने जैसे ही कमान संभाली, जेल का चेहरा बदलना शुरू हो गया। उन्होंने जेल को सिर्फ सज़ा देने की जगह नहीं, बल्कि पुनर्वास और सुधार की जगह बना दिया। कैदियों को ध्यान और योग सिखाया गया, उन्हें शिक्षा, पुस्तकालय और व्यावसायिक प्रशिक्षण उपलब्ध कराया गया। किरण बेदी (Kiran Bedi) ने कैदियों के मानवाधिकारों की रक्षा करते हुए, उन्हें आत्मनिर्भर और जिम्मेदार नागरिक बनने का अवसर दिया।
जेल के अंदर पंचायत व्यवस्था लागू की गई, ताकि कैदी भी अपनी समस्याएं खुद सुलझा सकें। उन्होंने जेल में रामायण और गीता जैसी किताबों की क्लासेस शुरू कराईं। उनके इन क्रांतिकारी कदमों ने न सिर्फ तिहाड़ जेल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना दिलाई, बल्कि भारत में कारागार प्रणाली के सुधार की दिशा भी तय कर दी। आज भी किरण बेदी (Kiran Bedi) का तिहाड़ सुधार मॉडल एक मिसाल माना जाता है, जहां एक महिला अफसर ने कठोर व्यवस्था में करुणा और बदलाव की नई शुरुआत की।
किरण बेदी को मिल चुके हैं कई सम्मान
किरण बेदी (Kiran Bedi) को उनके अनुकरणीय कार्यों के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें 1979 में राष्ट्रपति पुलिस पदक (President’s Police Medal for Gallantry) मिला। 1994 में उन्हें 'रामोन मैग्सेसे अवॉर्ड' (Ramon Magsaysay Award) मिला, जो एशिया का नोबेल माना जाता है, यह उन्हें तिहाड़ जेल सुधारों के लिए दिया गया था। इसके अलावा उन्हें यूनाइटेड नेशन्स से 'यूएन मेडल', मदर टेरेसा अवॉर्ड, भारत गौरव पुरस्कार और 'लायन ऑफ द ईयर' जैसे सम्मान भी प्राप्त हुए।
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किरण बेदी (Kiran Bedi) की कहानी एक ऐसी महिला की है जिसने परंपरा, राजनीति और पितृसत्तात्मक सोच को चुनौती देते हुए एक मिसाल कायम की। उनका पूरा करियर यह दिखाता है कि अगर नीयत साफ हो, इरादे मजबूत हों और नियमों की लकीर न झुके तो सबसे बड़ी सत्ता भी झुक जाती है। 'क्रेन बेदी' नाम सिर्फ एक घटना से नहीं जुड़ा, बल्कि वह उस सिद्धांत की पहचान बना जो कहता है, "सत्ता से बड़ा है कर्तव्य, और डर से ऊपर है न्याय।" किरण बेदी आज भी लाखों युवाओं, खासकर महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं जो बदलाव लाना चाहती हैं, बिना झुके, बिना रुके। [Rh/SP]