क्यों लगता है हिंदी पर थोपे जाने का इल्ज़ाम? क्या हिंदी कभी बन पाएगी राष्ट्रभाषा?

हर साल 14 सितंबर को हम हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान, हमारी भावनाओं की अभिव्यक्ति और करोड़ों लोगों की जुबान है।
हर साल 14 सितंबर को हम हिंदी दिवस (Hindi Divas)के रूप में मनाते हैं [Pixabay]
हर साल 14 सितंबर को हम हिंदी दिवस (Hindi Divas)के रूप में मनाते हैं [Pixabay]
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हर साल 14 सितंबर को हम हिंदी दिवस (Hindi Divas)के रूप में मनाते हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान, हमारी भावनाओं की अभिव्यक्ति और करोड़ों लोगों की जुबान है। लेकिन आज जब हम हिंदी के महत्व (Importance of Hindi) की बात करते हैं, तो एक सवाल हमारे सामने खड़ा हो जाता है क्या हिंदी को बढ़ावा देने का मतलब दूसरी भारतीय भाषाओं को पीछे धकेलना है? भारत जैसे विविधता से भरे देश में, जहां हर कुछ किलोमीटर पर भाषा और बोली बदल जाती है, वहां एक साझा भाषा की कल्पना करना जरूरी है।

हर साल 14 सितंबर को हम हिंदी दिवस (Hindi Divas)के रूप में मनाते हैं। [Sora Ai]
हर साल 14 सितंबर को हम हिंदी दिवस (Hindi Divas)के रूप में मनाते हैं। [Sora Ai]

सरकार के कई प्रयास हिंदी को एक 'लिंक लैंग्वेज' ('Link Language') के रूप में स्थापित करने की दिशा में रहे हैं। पर क्या ये प्रयास सभी भाषाओं को साथ लेकर चल रहे हैं, या फिर कहीं न कहीं क्षेत्रीय भाषाओं की उपेक्षा हो रही है? इस ब्लॉग के माध्यम से हम हिंदी भाषा के बढ़ते प्रभाव, सरकारी प्रयासों, और क्षेत्रीय भाषाओं (Regional Language) पर पड़ने वाले प्रभाव दोनों पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे। आइए सोचते हैं, समझते हैं और एक संतुलित नजरिए से बात करते हैं हिंदी के आज और कल की।

जब हिंदी ने पिरोया देश को एक सूत्र में

हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं है, यह भारत की आत्मा की अभिव्यक्ति है। यह करोड़ों लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा है उनके सोचने, समझने, बोलने और सपने देखने का माध्यम। हिंदी का महत्व (Importance Of Hindi) केवल इसलिए नहीं है कि इसे सबसे ज़्यादा लोग बोलते हैं, बल्कि इसलिए भी है कि यह विभिन्न संस्कृतियों, समुदायों और विचारों को जोड़ने का सामर्थ्य रखती है।

देश के उत्तरी और मध्य भागों में हिंदी ही वह सेतु है जिसके ज़रिए अलग-अलग राज्यों के लोग एक-दूसरे से संवाद करते हैं। [Sora Ai]
देश के उत्तरी और मध्य भागों में हिंदी ही वह सेतु है जिसके ज़रिए अलग-अलग राज्यों के लोग एक-दूसरे से संवाद करते हैं। [Sora Ai]

देश के उत्तरी और मध्य भागों में हिंदी ही वह सेतु है जिसके ज़रिए अलग-अलग राज्यों के लोग एक-दूसरे से संवाद करते हैं। हिंदी फिल्मों, टेलीविज़न, समाचार, साहित्य और सोशल मीडिया ने इसे न केवल भारत में, बल्कि विश्व स्तर पर भी पहचान दिलाई है। आज विश्व के कई देशों में हिंदी पढ़ाई जाती है और प्रवासी भारतीयों के बीच यह भावनात्मक जुड़ाव का माध्यम बन चुकी है। हिंदी में एक समृद्ध साहित्यिक परंपरा भी है कबीर (Kabir), तुलसी (Tulsi), प्रेमचंद (Premchand), महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma), निराला (Nirala) और अनेक रचनाकारों ने समाज, संस्कृति और मानवीय मूल्यों को शब्दों में पिरोया।

हिंदी का साहित्य  (Hindi Literature) न केवल मनोरंजन करता है [Pixabay]
हिंदी का साहित्य (Hindi Literature) न केवल मनोरंजन करता है [Pixabay]

हिंदी का साहित्य (Hindi Literature) न केवल मनोरंजन करता है, बल्कि सोचने की दिशा भी देता है। आज के डिजिटल युग (Digital Age) में भी हिंदी की उपयोगिता तेज़ी से बढ़ रही है। सरकार और निजी कंपनियाँ, दोनों ही हिंदी को एक सशक्त माध्यम के रूप में देख रही हैं। विज्ञापन, सोशल मीडिया, मोबाइल एप्स और ऑनलाइन सेवाओं में हिंदी की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है।

क्यों लगते हैं हिंदी पर थोपे जाने का इल्ज़ाम ?

भारत की खूबसूरती उसकी भाषाई विविधता (Linguistic Diversity) में है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक और गुजरात से अरुणाचल तक हर राज्य, हर क्षेत्र की अपनी एक खास भाषा, बोली और साहित्यिक परंपरा है। बंगाली, तमिल, तेलुगु, मराठी, मलयालम, कन्नड़, पंजाबी, असमिया, उर्दू जैसी भाषाएं केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि वहां की संस्कृति, इतिहास और अस्मिता की पहचान हैं।

भारत की खूबसूरती उसकी भाषाई विविधता (Linguistic Diversity) में है। [Sora Ai]
भारत की खूबसूरती उसकी भाषाई विविधता (Linguistic Diversity) में है। [Sora Ai]

ऐसे में जब हिंदी को एक राष्ट्रीय भाषा के रूप में बढ़ावा देने की बात होती है, तो कई बार यह धारणा बनती है कि बाकी भाषाओं को जानबूझकर पीछे किया जा रहा है। खासकर दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर भारत में यह भावना और गहरी होती है। लोग सोचते हैं कि हिंदी थोपने की कोशिश उनकी मातृभाषा, शिक्षा पद्धति और रोज़गार के अवसरों पर असर डाल रही है। उदाहरण के लिए, अगर केंद्रीय नौकरियों, प्रतियोगी परीक्षाओं या सरकारी योजनाओं में हिंदी को प्राथमिकता दी जाती है, तो गैर-हिंदी भाषी राज्यों के युवाओं को कहीं न कहीं भाषा के कारण नुकसान उठाना पड़ता है।

क्षेत्रीय भाषाओं को पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया जाता है [Sora Ai]
क्षेत्रीय भाषाओं को पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया जाता है [Sora Ai]

इससे उनमें यह भावना जन्म लेती है कि हिंदी का वर्चस्व उनकी भाषा और संस्कृति के लिए खतरा बनता जा रहा है। जब स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य विषय बनाया जाता है, तब कई बार क्षेत्रीय भाषाओं को पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया जाता है या उन्हें कम महत्व की भाषा मान लिया जाता है। इससे नई पीढ़ी अपनी मातृभाषा से दूर होती जा रही है। और यहीं पर असंतुलन की शुरुआत होती है।

क्या हिंदी कभी बन पाएगी राष्ट्रभाषा?

हिंदी भारत की सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है और यह संविधान की राजभाषा है। देश की लगभग 44% आबादी इसे अपनी मातृभाषा मानती है और बाकी हिस्सों में भी लोग इसे समझ और बोल पाते हैं। फिर भी, हिंदी को अब तक राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिल पाया है। इसकी सबसे बड़ी वजह भारत की भाषाई विविधता (Linguistic Diversity) है। दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर राज्यों में हिंदी उतनी प्रचलित नहीं है, और वहाँ की जनता को डर है कि अगर हिंदी को राष्ट्रभाषा बना दिया गया तो उनकी क्षेत्रीय भाषाओं का महत्व घट सकता है।

आज की सरकार लगातार हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा दे रही है [Sora Ai]
आज की सरकार लगातार हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा दे रही है [Sora Ai]

आज की सरकार लगातार हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा दे रही है, सरकारी कामकाज, शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिंदी को प्राथमिकता दी जा रही है। लेकिन सच्चाई यह है कि भारत की ताक़त उसकी विविधता में एकता है। यहाँ हर भाषा अपनी संस्कृति और पहचान लिए हुए है। इसलिए सवाल यह नहीं होना चाहिए कि हिंदी राष्ट्रभाषा कब बनेगी, बल्कि यह होना चाहिए कि क्या हिंदी देश को जोड़ने वाली एक मज़बूत कड़ी साबित हो सकती है। अगर हिंदी सबकी भाषा बने और किसी पर थोपी न जाए, तो यह ज़रूर भारत की असली पहचान बन सकती है।

जब कि गई राजभाषा विभाग की स्थापना

आज़ादी के बाद जब भारत ने खुद को एक लोकतांत्रिक गणराज्य (Democratic Republic) के रूप में स्थापित किया, तब यह सवाल सामने आया कि देश की सरकारी भाषा (Governmental Language) क्या होनी चाहिए। भारत जैसे बहुभाषी देश में एक ऐसी भाषा की जरूरत महसूस की गई, जो विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों के बीच संवाद का पुल बन सके। इसी उद्देश्य से 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। यह निर्णय केवल भाषा का चयन नहीं था, बल्कि एक ऐसे माध्यम की तलाश थी जो विविधता के बीच एकता का अनुभव करा सके। हिंदी के प्रचार-प्रसार और सरकारी कामकाज में इसके प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने विशेष विभागों और योजनाओं की शुरुआत की।

‘राजभाषा विभाग’ (‘Official Language Department’) की स्थापना इसी दिशा में एक बड़ा कदम था [Sora Ai]
‘राजभाषा विभाग’ (‘Official Language Department’) की स्थापना इसी दिशा में एक बड़ा कदम था [Sora Ai]

‘राजभाषा विभाग’ (‘Official Language Department’) की स्थापना इसी दिशा में एक बड़ा कदम था, जो यह सुनिश्चित करता है कि केंद्र सरकार के मंत्रालयों, कार्यालयों और संस्थानों में हिंदी का नियमित और प्रभावी उपयोग हो। इसके साथ ही हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस (Hindi Divas) मनाकर और पूरे महीने ‘हिंदी पखवाड़ा’ (‘Hindi Fortnight’) जैसे कार्यक्रम आयोजित कर कर्मचारियों को हिंदी में कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है। तकनीकी युग में हिंदी की पहुंच को बढ़ाने के लिए डिजिटल माध्यमों में भी इसे प्राथमिकता दी गई है। सरकारी वेबसाइटों, पोर्टल्स और मोबाइल ऐप्स में हिंदी भाषा को विकल्प के रूप में अनिवार्य किया गया है ताकि आम नागरिक भी आसानी से सरकारी सेवाओं का लाभ ले सकें। नई शिक्षा नीति 2020 में भी मातृभाषा और हिंदी के महत्व को पहचाना गया है, जहाँ यह सुझाव दिया गया है कि प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा या हिंदी में हो, जिससे बच्चे सहजता से सीख सकें। इसके अलावा संसद, न्यायपालिका और प्रशासनिक दस्तावेजों में हिंदी का उपयोग लगातार बढ़ाया गया है।

 तकनीकी युग में हिंदी की पहुंच को बढ़ाने के लिए डिजिटल माध्यमों में भी इसे प्राथमिकता दी गई है। [Pixabay]
तकनीकी युग में हिंदी की पहुंच को बढ़ाने के लिए डिजिटल माध्यमों में भी इसे प्राथमिकता दी गई है। [Pixabay]

अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिंदी में भी रिपोर्ट, अधिनियम, आदेश और सूचनाएं प्रकाशित की जाती हैं, जिससे हिंदी भाषी लोगों को जानकारी प्राप्त करने में सुविधा हो। इन तमाम प्रयासों का उद्देश्य यह रहा है कि हिंदी को किसी पर थोपा न जाए, बल्कि वह स्वाभाविक रूप से संवाद की भाषा बने। लेकिन यह संतुलन तभी बना रह सकता है जब हिंदी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं को भी समान अधिकार, सम्मान और अवसर दिए जाएं। देश की भाषाई विविधता को संरक्षित रखते हुए हिंदी को जोड़ने वाला माध्यम बनाना ही सही दिशा में उठाया गया कदम होगा।


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हिंदी भाषा भारत की पहचान का एक अहम हिस्सा है। इसे बढ़ावा देना ज़रूरी है, लेकिन उसी के साथ यह भी जरूरी है कि क्षेत्रीय भाषाओं को भी पूरा सम्मान और संरक्षण मिले। भारत की ताकत उसकी विविधता में है और यही विविधता भाषाओं में भी झलकती है। हमें हिंदी को जोड़ने वाली भाषा के रूप में देखना चाहिए, न कि एक ऐसी भाषा के रूप में जिसे जबरन थोपा जा रहा है। जब हर भाषा को उसका उचित स्थान मिलेगा, तभी हिंदी भी सच्चे मायनों में "भारत की भाषा" बन पाएगी। आज हिंदी दिवस के अवसर पर यह सोचने का समय है कि भाषा केवल संवाद का ज़रिया नहीं, बल्कि अस्मिता और संस्कृति का प्रतीक होती है। इसलिए सभी भाषाओं को साथ लेकर चलना ही भारत की सच्ची एकता की पहचान होगी। [Rh/SP]

हर साल 14 सितंबर को हम हिंदी दिवस (Hindi Divas)के रूप में मनाते हैं [Pixabay]
अंग्रेजों ने जिस भाषा का उड़ाया था मज़ाक, आज उसी भाषा ने बनाई अपनी वैश्विक पहचान!

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