
बिहार की राजनीति (Bihar Politics) हमेशा से ही चौंकाने वाली कहानियों से भरी रही है। सत्ता की कुर्सी पर बैठे नेताओं का भविष्य कई बार जनता के फैसलों, विरोधियों की चालों और वक्त की राजनीति ने तय किया। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि एक बस कंडक्टर की वजह से किसी मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई हो? जी हाँ, बिहार के 10वें मुख्यमंत्री (10th Chief Minister of Bihar) दरोगा राय (Daroga Rai) के साथ ऐसा ही हुआ था। दरोगा राय, जो गरीबों और दलितों की आवाज़ माने जाते थे, एक समय बिहार की सत्ता के शीर्ष पर पहुँचे। मगर किस्मत ने उनके साथ ऐसा खेल खेला कि सत्ता उनके हाथों से फिसल गई और इसके पीछे वजह बनी बस का एक कंडक्टर । यह घटना न सिर्फ़ राजनीति का अनोखा किस्सा है बल्कि यह बताती है कि कभी-कभी छोटी-सी बातें भी बड़े-बड़े नेताओं की किस्मत तय कर देती हैं।
हम बात कर रहें है बिहार के 10वें मुख्यमंत्री दरोगा राय (10th Chief Minister of Bihar) की। इनका जन्म 1922 में पटना जिले के तारेगना गाँव में हुआ था। वे दलित समुदाय (Dalit Community) से आते थे और अपने शुरुआती जीवन में ही संघर्ष और गरीबी को करीब से देखा था। साधारण परिवार से निकलकर उन्होंने पढ़ाई पूरी की और राजनीति में कदम रखा। उनका राजनीतिक सफर कांग्रेस पार्टी (Congress Party) से जुड़कर शुरू हुआ, जहाँ उन्होंने संगठन में मेहनत और ईमानदारी से अपनी पहचान बनाई। दरोगा राय का व्यक्तित्व बेहद सादगीपूर्ण था। वे अपने आप को जनता का सेवक मानते थे और हमेशा साधारण जीवनशैली अपनाए रखते थे। उनका रहन-सहन आम आदमी जैसा था न कोई दिखावा, न कोई अहंकार। लोग उन्हें एक “संवेदनशील नेता” के रूप में याद करते हैं, जो खासकर दलितों और गरीब तबके के अधिकारों की लड़ाई लड़ते रहे। वे अपने राजनीतिक करियर में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे और 16 फरवरी 1970 को वे बिहार के मुख्यमंत्री बने। हालांकि उनका कार्यकाल बहुत लंबा नहीं चला, लेकिन उस छोटे से कार्यकाल में भी उन्होंने शिक्षा और सामाजिक न्याय पर विशेष जोर दिया। दरोगा राय की ईमानदारी और ज़मीनी जुड़ाव उन्हें बिहार की राजनीति में अलग पहचान दिलाते हैं।
साल 1970 में बिहार राजपथ परिवहन (Bihar Highway Transport) के आदिवासी कंडक्टर का निलंबन हुआ। जिसके बाद निलंबित बस कंडक्टर ने झारखंड पार्टी (Jharkhan Party) के बड़े आदिवासी नेता बागुन सुम्ब्रई से गुहार लगाई। बस कंडक्टर के निलंबन के मामले को लेकर बागुन मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद (Chief Minister Daroga Prasad Rai) से मिले और इस फैसले को वापस लेने का अनुरोध किया।इसके बाद करीब एक सप्ताह बीत गया, लेकिन विभाग की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई जिस पर बागुन दोबारा दारोगा प्रसाद (Daroga Prasad Rai) से मिले और अपनी नाराजगी जाहिर की। बताया जाता है कि इसी घटना के बाद बागुन ने सरकार से समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया।
दरोगा प्रसाद राय (Daroga Prasad Rai) को उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए वे सदन में बहुमत साबित कर लेंगे। उन्हें भरोसा था कि झारखंड पार्टी (Jharkhand Party) और लेफ्ट पार्टियाँ उनका साथ देंगी। लेकिन राजनीति का गणित उनकी सोच से बिल्कुल अलग निकला। जब विधानसभा में विश्वास मत पर वोटिंग हुई तो उनके पक्ष में केवल 144 विधायक खड़े हुए, जबकि विपक्ष में 164 विधायक थे। झारखंड पार्टी (Jharkhand Party) (Daroga Prasad Rai, former Chief Minister of Bihar)के बागुन समर्थक 11 विधायकों ने विपक्ष का साथ दे दिया और लेफ्ट ने भी सरकार से किनारा कर लिया। इसके बाद दरोगा प्रसाद राय की सरकार महज 10 महीने के भीतर ही गिर गई। मुख्यमंत्री की कुर्सी छिन जाने के बाद भी उन्होंने राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई। वे अब्दुल गफूर की सरकार में उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री बने और बाद में केदार पांडेय की सरकार में कृषि मंत्री का दायित्व संभाला। इस तरह भले ही वे लंबे समय तक मुख्यमंत्री नहीं रह पाए, लेकिन उनकी राजनीतिक यात्रा बिहार की सियासत में अहम रही।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय (Daroga Prasad Rai, former Chief Minister of Bihar) और लालू यादव (Lalu Prasad yadav) परिवार के बीच राजनीतिक व पारिवारिक संबंध लंबे समय तक चर्चा का विषय रहे। दरोगा राय कांग्रेस से जुड़े थे और बाद में जब लालू यादव राजनीति में सक्रिय हुए तो राय परिवार ने भी उनका साथ दिया। विशेषकर उनके बेटे चंद्रिका राय ने RJD के नेता के रूप में काम किया और परसा विधानसभा से कई बार जीत हासिल कर मंत्री भी बने। कहा जाता है कि दरोगा प्रसाद राय ने शुरुआती दौर में लालू को छात्र राजनीति (PUSU चुनाव) में भी समर्थन दिया था। यही रिश्ता आगे और गहरा तब हुआ जब दरोगा प्रसाद राय की पोती ऐश्वर्या राय की शादी लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव से हुई। हालांकि इस विवाह के कुछ समय बाद ही ऐश्वर्या और तेज प्रताप के बीच मतभेद बढ़ गए और मामला तलाक तक पहुँच गया, जिससे चंद्रिका राय और RJD के रिश्तों में भी दरार आ गई। इसके बावजूद, राय परिवार की राजनीतिक पहचान बनी रही और उनकी विरासत आज भी बिहार की सियासत में प्रभाव डालती है।
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दरोगा प्रसाद राय ने भूमि सुधार (Land Reform) की पहलों को बढ़ावा दिया। उन्होंने “भूमि पर्चा कानून” लागू कराया जिससे गरीबों और दलितों को उनके कटे-फटे खेतों का अधिकार मिल सके। कई लोगों को वासगीत का पर्चा दिलवाया गया ताकि वे अपनी जमीन पर कानूनी रूप से मालिक बन सकें।
शोषित, पिछड़े और उपेक्षित वर्गों के लिए योजनाएँ, उन्होंने समाज के पिछड़े और दलित वर्गों के लोगों के लिए विशेष योजनाएँ शुरू कीं।
शिक्षा और सार्वजनिक सुविधाओं तक पहुँच बढ़ाने की कोशिश की गई ताकि दलितों को मुख्यधारा में आने का अवसर मिले।
दरोगा राय ने जाति-आधारित राजनीति नहीं की और अपने शासनकाल के दौरान यह दिखाने की कोशिश की कि नेता छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, जाति-धर्म से ऊपर उठकर काम कर सकता है।
वे आम जनता से सुलभ थे, दलितों या कमजोर तबके के लोग उनके पास राहत या न्याय के लिए आसानी से पहुँच सकते थे। [Rh/SP]