दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन (Delhi University Student Union) यानी डूसू चुनाव की शुरुआत साल 1954 में हुई थी। यूनियन का गठन तो 1949 में ही हो गया था, लेकिन पहली बार 1954 में छात्रों ने वोट डालकर अपना पहला अध्यक्ष चुना। इस चुनाव में गजराज बहादुर नागर को DUSU का पहला अध्यक्ष (President) चुना गया। उस समय यह बहुत बड़ा कदम था क्योंकि छात्रों को पहली बार एक ऐसा मंच मिला, जहां से वे अपनी आवाज़ यूनिवर्सिटी और सरकार तक पहुँचा सकते थे।
हर साल होने वाले डूसू चुनाव (DUSU Election) में चार बड़े पदों के लिए छात्र वोट डालते हैं। इनमें प्रेसिडेंट (President), वाइस-प्रेसिडेंट (Vice President), सेक्रेटरी (Secretary) और ज्वॉइंट सेक्रेटरी (Joint Secretary) शामिल हैं। प्रेसिडेंट सबसे ऊँचा पद होता है। वाइस-प्रेसिडेंट उसका सहायक होता है। सेक्रेटरी और ज्वॉइंट सेक्रेटरी मिलकर संगठन और छात्रों से जुड़े काम देखते हैं। इन चार पदों के अलावा कॉलेज स्तर पर भी छोटे-छोटे चुनाव होते हैं, लेकिन DUSU उन सबका प्रतिनिधित्व करता है।
डूसू (DUSU) से निकले बड़े-बड़े नेता
डूसू चुनाव ने कई ऐसे नेताओं को जन्म दिया जिन्होंने आगे चलकर देश की राजनीति में बहुत बड़ी भागीदारी निभाई और बड़ी बड़ी पोसिशन्स संभाली।
सबसे पहले नाम आता है अरुण जेटली (Arun Jaitley) का, जो 1974-75 में डूसू DUSU के अध्यक्ष बने थे। उसके बाद वे भाजपा (BJP) के बड़े नेता और भारत के वित्त मंत्री (Finance Minister) बने। इसी तरह अजय माकन सिर्फ 21 साल की उम्र में DUSU अध्यक्ष बने और बाद में कांग्रेस (Congress) के केंद्रीय मंत्री बने।
विजय गोयल (Vijay Goyal) भी डूसू DUSU से निकलकर भाजपा तक पहुँचे। अल्का लांबा, विजय जॉली, और आशीष सूद जैसे कई और नाम हैं जिन्होंने डूसू DUSU से राजनीति का सफर शुरू किया और आगे बड़े पदों तक पहुँचे। आज की दिल्ली (Delhi) की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता (Rekha Gupta) भी 1996-97 में DUSU की अध्यक्ष रह चुकी हैं। यह इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है कि DUSU चुनाव सिर्फ छात्र राजनीति नहीं बल्कि राष्ट्रीय और राज्य राजनीति की सीढ़ी भी है।
DUSU डूसू चुनाव में राष्ट्रीय पार्टियों के छात्र संगठन सक्रिय रहते हैं। (ABVP) एबीविपि (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद), जो आरएसएस (RSS) और भाजपा से जुडी हुई है (NSUI) एनएसयुआई (नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया), जो कांग्रेस का छात्र संगठन है। इसके अलावा SFI (स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया) और AISA (ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन) जो लेफ्ट विंग की पार्टिया है।
DUSU डूसू चुनाव में राष्ट्रीय पार्टियों के छात्र संगठन सक्रिय रहते हैं। (ABVP) एबीविपि (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद), जो आरएसएस (RSS) और भाजपा से जुडी हुई है (NSUI) एनएसयुआई (नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया), जो कांग्रेस (Congress) का छात्र संगठन है। इसके अलावा SFI (स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया) और AISA (ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन) जो लेफ्ट विंग (Left Wing) की पार्टिया है
आमतौर पर DUSU डूसू चुनाव में ABVP और NSUI के बीच सीधी टक्कर होती है, लेकिन छोटी पार्टियाँ और स्वतंत्र उम्मीदवार भी माहौल को प्रभावित करते हैं। कई बार नोटा NOTA (None of the Above) विकल्प भी छात्रों की नाराज़गी को दिखाता है। चुनाव वाले दिन दिल्ली यूनिवर्सिटी (Delhi University) के कैंपस में बहुत चहल-पहल रहती है। सुरक्षा कड़ी रहती है और माहौल बिल्कुल आम चुनाव जैसा दिखता है। मीडिया और राजनीतिक दल भी इसे बड़ी बारीकी से देखते हैं क्योंकि यह आने वाले समय की राजनीति की झलक दिखाता है।
DUSU डूसू चुनाव इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं
DUSU चुनाव कई कारणों से खास माने जाते हैं। सबसे पहले, यह चुनाव छात्रों को लीडरशिप और राजनीति सीखने का मंच देते है। दूसरा, यह राजनीति में जाने का दरवाज़ा है। कई बड़े नेता पहले डूसू DUSU से निकले और बाद में संसद और सरकार तक पहुँचे। तीसरा, यह छात्रों की आवाज़ उठाने का मंच है। फीस, हॉस्टल, सुरक्षा और पढ़ाई से जुड़े मुद्दे यहां से उठाए जाते हैं।चौथा, यह चुनाव मीडिया और पूरे देश का ध्यान खींचता है। इसकी वजह से यह सिर्फ यूनिवर्सिटी तक नहीं, बल्कि पूरे भारत (India) में चर्चा का विषय बन जाता है।
निष्कर्ष
संक्षेप में कहा जाए तो डूसू चुनाव (DUSU) सिर्फ एक छात्र संघ का चुनाव नहीं है, बल्कि यह राजनीति की सीढ़ी है। यहां से नेताओं को पहचान, ताकत और अनुभव मिलता है। गजराज बहादुर नागर से लेकर अरुण जेटली, अजय माकन और आज की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता तक — DUSU ने यह साबित किया है कि यह मंच आने वाले समय में भारत की राजनीति को दिशा देने की ताकत रखता है। इसलिए हर साल होने वाले DUSU चुनाव न सिर्फ छात्रों बल्कि पूरे देश की नज़र में अहम होते हैं।
(Rh/BA)