
यह मामला मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में स्वीकार करने से जुड़ा है।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) (एडीआर) की तरफ से प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग (Election Commission) को अपनी मैनुअल और मौजूदा नियमों का पालन करना ही चाहिए। अगर कोर्ट के आदेश के बाद 1 अक्टूबर को प्रकाशित होने वाली मतदाता सूची को निरस्त किया जाता है, तो फिर क्या होगा?
उन्होंने कहा कि बिहार (Bihar) में चुनाव तो अक्टूबर के मध्य में घोषित होने वाले हैं, उस समय तक कोई विकल्प नहीं बचेगा। इसलिए इन्हें नियमों का पालन करने का निर्देश दिया जाए। वे सिर्फ कोर्ट के आदेशों का पालन कर रहे हैं, बाकी नियमों का नहीं। कम से कम न्यूनतम पारदर्शिता तो होनी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि हम इस मामले को 7 अक्टूबर को सुनेंगे तब तक आप सभी अपनी दलीलों का संक्षिप्त नोट तैयार करें। आप इनके उल्लंघनों का एक संकलन तैयार करें और उसकी एक प्रति हमें दें।
वहीं पिछली सुनवाई में, कोर्ट ने चुनाव आयोग को औपचारिक नोटिस जारी करने का निर्देश दिया था। सुनवाई के दौरान, जस्टिस सूर्यकांत (Justice Suryakant) ने चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी से पूछा कि वर्तमान स्थिति क्या है और क्या यह देखने के लिए इंतजार नहीं करना चाहिए कि कितने लोग वास्तव में मतदाता सूची से बाहर रह गए हैं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा था कि चुनाव आयोग इस प्रक्रिया को अन्य राज्यों में भी लागू कर रहा है। उन्होंने अदालत से आग्रह किया था कि इस मामले को जल्द से जल्द सुना जाए, क्योंकि यदि यह प्रक्रिया संवैधानिक ढांचे का उल्लंघन पाई जाती है, तो इसे देश के अन्य हिस्सों में जारी नहीं किया जाना चाहिए।
वकील वृंदा ग्रोवर ने तर्क दिया था कि कानून के अनुसार, नामांकन की अंतिम तिथि तक मतदाता सूची में नाम जोड़ा जाना चाहिए, लेकिन इस प्रक्रिया से लोगों को उनके मताधिकार से गैरकानूनी तरीके से वंचित किया जा रहा है।
वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी मामले की जल्द सुनवाई की मांग की थी, क्योंकि चुनाव आयोग ने इस प्रक्रिया को अब पूरे देश में लागू करने की घोषणा कर दी है।
जस्टिस सूर्यकांत ने जवाब में स्पष्ट किया है कि कोर्ट इस मामले में जो भी फैसला देगा, वह पूरे देश में लागू होगा, जहां भी चुनाव आयोग इस प्रक्रिया को लागू करने की योजना बना रहा है।
(BA)