
भारत के उपराष्ट्रपति (Vice President) जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) ने सोमवार रात अचानक अपने पद से इस्तीफा (Resignation) दे दिया। इस्तीफे का कारण "स्वास्थ्य संबंधी वजह" बताया गया, लेकिन इस पर विपक्ष को यकीन नहीं हो रहा है। कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों का कहना है कि असली कारण कुछ और है, कोई गहरी सियासी हलचल या अपमान की भावना, जिसने उन्हें यह बड़ा कदम उठाने पर मजबूर कर दिया।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस कांग्रेस पार्टी ने कुछ महीने पहले तक उपराष्ट्रपति धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात कही थी, वही अब उनके समर्थन में उतर आई है। कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने सोमवार रात को X (पहले ट्विटर) पर पोस्ट कर उनसे आग्रह किया कि वो अपना इस्तीफा वापस लें और दोबारा विचार करें। उनकी यह रुख तब और चौंकाने वाला था, जब जयराम रमेश ने दिसंबर 2024 में उन्हें "राज्यसभा की कार्यवाही में पक्षपातपूर्ण" बताकर अविश्वास प्रस्ताव की धमकी दी थी।
जयराम रमेश ने मंगलवार को मीडिया से बातचीत में पूरी घटनाक्रम का ब्योरा देते हुए दावा किया कि सोमवार को कुछ गंभीर घटनाएं हुईं। उन्होंने कहा कि दोपहर 12:30 बजे धनखड़ ने राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समिति की बैठक की अध्यक्षता की, जिसमें भाजपा के वरिष्ठ नेता जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू भी मौजूद थे। बातचीत के बाद तय हुआ कि अगली बैठक शाम 4:30 बजे होगी। जब सभी सदस्य दोबारा पहुंचे, तब धनखड़ भी वहां आए, लेकिन नड्डा और रिजिजू गायब रहे। उनके नहीं आने से धनखड़ को बुरा लगा और उन्होंने अगली बैठक अगले दिन के लिए टाल दी। रमेश का कहना है कि दोपहर से शाम के बीच कुछ ऐसा हुआ जिसने धनखड़ को मानसिक रूप से आहत किया और हो सकता है उसी का नतीजा इस्तीफा हो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने X पर एक औपचारिक टिप्पणी करके धनखड़ के इस्तीफे पर शिष्टाचार निभाया, लेकिन उनकी प्रतिक्रिया बेहद संक्षिप्त रही। इसे लेकर जयराम रमेश ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि “प्रधानमंत्री थोड़े उदार हो सकते थे। आखिरकार वह ‘किसान पुत्र’ को विदाई तो सम्मानजनक तरीके से दे ही सकते थे।” उन्होंने मोदी को "पाखंड का महारथी" बताते हुए कहा कि यह पूरा मामला रहस्य से भरा है।
कांग्रेस ने इस पूरे घटनाक्रम को सामान्य स्वास्थ्य कारणों से जुड़ा मानने से इनकार कर दिया है। पार्टी नेताओं का मानना है कि किसी मुद्दे पर भाजपा और उपराष्ट्रपति (Jagdeep Dhankhar) के बीच टकराव हुआ होगा, विशेषकर उस समय जब उन्होंने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ विपक्ष के महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार किया था। इससे यह संकेत मिलता हैं कि शायद भाजपा नेतृत्व को उनका यह फैसला पसंद नहीं आया और उन्हें 'अपमानित' महसूस कराया गया। यह भी हो सकता है कि उन्हें यह महसूस कराया गया हो कि उनकी भूमिका सीमित कर दी जा रही है, न तो उनके विचारों को महत्व दिया जा रहा था और न ही उनकी गरिमा का सम्मान किया जा रहा है।
अब तक धनखड़ (Vice President) को लेकर आलोचनात्मक रुख रखने वाली कांग्रेस अचानक उनकी तारीफों के पुल बांध रही है। पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल, पवन खेड़ा और सुप्रिया श्रीनेत जैसे नेता खुलकर धनखड़ के समर्थन में सामने आए हैं। उन्होंने सरकार पर यह सवाल उठाया है कि आखिर इतनी बड़ी संवैधानिक पोस्ट पर बैठे व्यक्ति को बिना सम्मानजनक विदाई क्यों जाने दिया गया ? केसी वेणुगोपाल ने तो यहां तक कह दिया कि सरकार को साफ-साफ बताना चाहिए कि इस्तीफे (Resignation) की असली वजह क्या है।
जयराम रमेश का यह भी कहना है कि उपराष्ट्रपति (Vice President) रहते हुए धनखड़ ने "2014 के बाद के भारत" की खुलकर तारीफ की, लेकिन साथ ही किसानों के हित में आवाज भी उठाई। वह नियमों और मर्यादाओं के पक्के थे और सार्वजनिक जीवन में बढ़ते "अहंकार" की आलोचना करते थे। रमेश के मुताबिक, वो हर हाल में विपक्ष को भी बोलने का अवसर देने की कोशिश करते थे, भले ही वह सीमित हो।
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कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने इस पूरे मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यह भाजपा और उपराष्ट्रपति के बीच का “आंतरिक मामला” है। उनके इस बयान को लेकर राजनीतिक गलियारों में यह भी सवाल उठने लगे हैं कि क्या कांग्रेस के भीतर भी इस मुद्दे पर कोई स्पष्टता नहीं है ? कांग्रेस के अलावा समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल (राजद), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) जैसे दलों ने भी यह दावा किया है कि "स्वास्थ्य कारण" सिर्फ एक बहाना है और इस्तीफे (Resignation) के पीछे जरूर कोई गंभीर राजनीतिक कारण छुपा है।
निष्कर्ष
जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) के इस्तीफे ने केवल एक संवैधानिक पद खाली नहीं किया है, बल्कि सत्ता के गलियारों में चल रही खामोश राजनीति की परतें भी खोल दी हैं। कांग्रेस का यू-टर्न, भाजपा की चुप्पी, प्रधानमंत्री की औपचारिकता और अन्य विपक्षी दलों का शक, ये सब मिलकर संकेत देते हैं कि मामला जितना सामने दिखता है, उससे कहीं ज़्यादा गहरा है। क्या वास्तव में धनखड़ को 'स्वास्थ्य कारणों' से इस्तीफा देना पड़ा या वो सत्ता के किसी बड़े निर्णय का शिकार बन गए ? यह सवाल अभी अनुत्तरित है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज़ है कि ये केवल 'इस्तीफे' की नहीं, एक पूरे 'तंत्र' की कहानी है। [Rh/PS]