जब शास्त्री जी की एक आवाज़ पर घर-घर में बुझा चूल्हा और जली देशभक्ति की लौ!

भारत के इतिहास में कई ऐसे नेता हुए हैं जिन्होंने भले ही ज्यादा समय तक प्रधानमंत्री की कुर्सी नहीं संभाली लेकिन जितने भी दिन रहे उन्होंने निष्पक्ष और पूरे आत्म समर्पण के साथ प्रधानमंत्री के पद को संभाला।
शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) लोगों को प्रेरित कर रहे हैं
शास्त्री जी (Lal Bahadur Shastri) की एक आवाज़ पर घर-घर में बुझा चूल्हा और जली देशभक्ति की लौ! [SORA AI]
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भारत के इतिहास में कई ऐसे नेता हुए हैं जिन्होंने भले ही ज्यादा समय तक प्रधानमंत्री की कुर्सी नहीं संभाली लेकिन जितने भी दिन रहे उन्होंने निष्पक्ष और पूरे आत्म समर्पण के साथ प्रधानमंत्री के पद को संभाला। 1964 में जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) की मौत के बाद जब चीन-भारत युद्ध की बातें अभी भी हवा में थीं, और पाकिस्तान (Pakistan) के बढ़ते हुए आक्रामक व आत्मविश्वास ने स्थिति और जटिल बना दिया था, साथ ही आर्थिक तंगी और खाद्यान्न की किल्लत बढ़ रही थी तब ऐसी स्थिति में एक शांत, निष्पक्ष और दृढ़ नेता की तलाश थी। नेहरू जी मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) ने 9 जून 1964 को प्रधानमंत्री (Prime Minister) के पद को संभाला।

लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री का चुनाव जीतने के साथ
नेहरू जी मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने 9 जून 1964 को प्रधानमंत्री के पद को संभाला। [X]

उस वक्त देश पर कई संकटों का साया था, और शास्त्री जी ने देश की बागडोर को कसकर थाम लिया था। विदेशों से, खासकर अमेरिका से, भूखमरी हटाने के बहाने नीति निर्धारण में दखल बढ़ रहा था, जबकि क्षेत्रीय विजेता बनने की पाकिस्तान (Pakistan) की मुहिम ने सुरक्षा चिंताओं को गहरा कर दिया था। इन सारे दबावों और चुनौतियों के बीच शास्त्री जी पर अपनी छवि निखारकर देश को मजबूत बनाये रखने की जिम्मेदारी थी, और उन्होंने अपनी सभी जिम्मेदारियों को बख़ूबी निभाया।

1965, जब शास्त्री जी पर पड़ने लगे कई दबाव

1965 में शास्त्री जी पर संकटों की एक लड़ी टूट पड़ी। पाकिस्तान (Pakistan) के सेना कमांडर अयूब खान (Ayub Khan) ने भारत के खिलाफ चुपके से घुसपैठ और सशस्त्र आक्रमण तेज़ कर दिया था। अयूब की यह चाल भारत को दो मोर्चों पर चुनौती दे रही थी, सैन्य और कूटनीतिक। साथ ही, पश्चिमी ध्रुव यानी अमेरिका (America) भी सक्रिय हो गया था। शास्त्री जी पर दबाव बढ़ रहा था कि भारत जल्द युद्ध विराम की घोषणा करे।

शास्त्री जी उनके समिति के सदस्य के साथ
1965 में शास्त्री जी पर संकटों की एक लड़ी टूट पड़ी। [X]

वॉशिंगटन से कई धमाकेदार संकेत मिले कि अगर भारत युद्ध जारी रखेगा, तो अमेरिका खाद्यान्न आपूर्ति बंद कर देगा और इस कदम से भारत की नागरिक अर्थव्यवस्था और युद्ध क्षमता दोनों ध्वस्त हो सकती हैं। शास्त्री जी ने न सिर्फ आक्रामक पाकिस्तान (Pakistan) का डटकर सामना किया, बल्कि America द्वारा दिए जा रहे दबाव को भी अपनी गहरी समझ और साहस से झेला। यह उसके चरित्र का प्रमाण था कि वे नैतिक और रणनीतिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाए रख सकते थे।

जब अमेरिका ने दी गेहूं की सप्लाई रोकने की धमकी

अंतरराष्ट्रीय मंच पर उदार दिखने वाले अमेरिका ने 1965 में भारत को बहकाने की कोशिश की।"PL-480 खाद्यान्न" की आपूर्ति से वक्त पर धोखा देने का काम करके उन्हें युद्ध विराम के लिए मजबूर करे। अमेरिकी अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि भारत यदि पाकिस्तान के साथ संघर्ष जारी रखता है, तो गेहूँ बंद की जा सकती है। उस समय भारत गेहूँ के उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं था। शास्त्री को ये बात बहुत चुभी क्योंकि वो स्वाभिमानी व्यक्ति थे। उन्होंने देशवासियों से कहा कि हम हफ़्ते में एक वक्त भोजन नहीं करेंगे। उसकी वजह से अमरीका से आने वाले गेहूँ की आपूर्ति हो जाएगी। लेकिन यह कहने से पहले शास्त्री जी ने एक और काम किया जो एक प्रधानमंत्री देश के लिए करे ऐसी कल्पना से बाहर है।

लाल बहादुर शास्त्री की तस्वीर
अंतरराष्ट्रीय मंच पर उदार दिखने वाले अमेरिका ने 1965 में भारत को बहकाने की कोशिश की। [X]

शास्त्री जी का देशवासियों से आह्वान: एक वक्त का खाना त्यागो

जब अमेरिका (America) ने गेहूँ आपूर्ति रोकने की धमकी दी, तो शास्त्री जी ने एक दिल को छू लेने वाला कदम उठाया, उन्होंने स्वयं अपने परिवार में एक वक़्त का खाना बंद कर यह देखा कि उनके बच्चे भूखे रह पा रहें है या नहीं, और उसके तुरंत बाद उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो से पूरे देश को अपील की: “अगर देश एक साथ एक समय खाना छोड़ दे, तो हम गरीबों और सैनिकों को भोजन उपलब्ध करवा सकते हैं।” यह प्रभावशाली संदेश पूरे देश को एकजुट कर गया।

शास्त्री जी लोगों को प्रेरित कर रहे हैं
जब अमेरिका ने गेहूँ आपूर्ति रोकने की धमकी दी, तो शास्त्री जी ने एक दिल को छू लेने वाला कदम उठाया [SORA AI]

लोग सोमवार की शाम को खाना नहीं बनाते थे, राजमार्गों पर चूल्हे बुझ गए और देशभक्ति की लौ जल गई। उन्होंने सार्वजनिक आयोजनों, शादी-विवाह, दावतों में कटौती का आग्रह किया। यह नारा जगाने वाला वक्तव्य था, जिसने भारत को विदेशों पर निर्भरता से मुक्त करने की राह दिखाई। इस प्रकार अमेरिका की किसी भी धमकी का प्रभाव भारत पर नहीं पड़ा।

शास्त्री जी की मृत्यु पर एक रहस्य

10 जनवरी 1966 को रूस के ताशकंद में शास्त्री जी और अयूब खान के बीच समझौता हुआ उसके अगले ही दिन 11 जनवरी को शास्त्री जी (Shastri Ji) की दिल का दौरा पड़कर अचानक मृत्यु हो गई। हालांकि विदेशी और भारतीय डॉक्टरों ने इसे हार्ट अटैक बताया, लेकिन विवाद अब भी बना हुआ है। उनके साथ समय बिताने वालों का कहना था कि वे बिल्कुल स्वस्थ लग रहे थे, और अचानक बीमार हुए। 11 जनवरी, 1966 को जब लाल बहादुर शास्त्री का ताशकंद में निधन हुआ तो उनके डाचा (घर) में सबसे पहले पहुंचने वाले शख़्स थे पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ाँ। मानव इतिहास में ऐसे बहुत कम उदाहरण हैं जब एक दिन पहले एक दूसरे के घोर दुश्मन कहे जानेवाले प्रतिद्वंद्वी न सिर्फ़ एक दूसरे को दोस्त बन गए थे, बल्कि दूसरे की मौत पर अपने दुख का इज़हार करते हुए उसके ताबूत को कंधा दे रहे थे।

लाल बहादुर शास्त्री अपनी पत्नी और लोगो के साथ
परिवार ने पोस्टमार्टम अनिवार्य करने की बात कही, पर तत्कालीन सरकार ने मेडिकल टीम के रिपोर्टों के आधार पर इसे फ़ैसला किया कि हार्ट अटैक ही मौत का कारण था। [X]

परिवार ने पोस्टमार्टम अनिवार्य करने की बात कही, पर तत्कालीन सरकार ने मेडिकल टीम के रिपोर्टों के आधार पर इसे फ़ैसला किया कि हार्ट अटैक (Heart Attack) ही मौत का कारण था। फिर भी कई सवालों ने जन्म लिया: क्या यह स्वाभाविक था या कोई साज़िश? रहस्य आज भी बना हुआ है, जिससे "ताशकंद फाइल्स" जैसी फिल्में बनीं और RTI अपीलें दायर हुईं, लेकिन सरकारी जवाब हमेशा अब तक अस्पष्ट रह गया है।

लाल बहादुर शास्त्री की तस्वीर
लाल बहादुर शास्त्री की एक आवाज़ ने भारत को विदेशी दबावों और संकटों के दौर में मजबूती से खड़ा कर दिया। [X]

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लाल बहादुर शास्त्री की एक आवाज़ ने भारत को विदेशी दबावों और संकटों के दौर में मजबूती से खड़ा कर दिया। उन्होंने दिखाया कि साहस, नैतिक दृढ़ता और जनसंघर्ष अपनी जान की अनिश्चितता के बावजूद, एक लोकतंत्र का सच्चा बल हैं। उनका “एक वक़्त का खाना छोड़ डालो” ना केवल खाद्यान्न संकट को कम करने का कदम था, बल्कि यह देश की आत्मा और स्वतंत्रता भावना को मजबूत करने का एक सामाजिक परिवर्तन भी था। उनकी मृत्यु से पैदा हुआ रहस्य कई सवाल छोड़ गया, लेकिन उनका आदर्श और देशभक्ति की लौ, आज भी करोड़ों दिलों में जल रही है। [Rh/SP]

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