भोपाल गैस त्रासदी: वो भयानक रात जब लड़खड़ाते लोग अपने लिए मांगने लगे मौत, दुनिया की सबसे भयानक औद्योगिक आपदा की कहानी

नवंबर महीना खत्म हुए दो ही दिन बीते थे। गहरे अंधेरे के साथ रातें सर्द होने लगी थीं। 2-3 दिसंबर की दरम्यानी रात जब लोग नींद के आगोश में थे तब कई लोगों को ये नहीं पता था कि वे सुबह का सूरज नहीं देख पाएंगे।
भयानक आग में जलती फैक्ट्री, पास में खड़े व्यक्ति से देखते हुए।
भोपाल गैस त्रासदी की भयानक रात, जब लोग अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे थे।IANS
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भारतीय इतिहास में दिसंबर की इस तारीख को कोई नहीं भूल सकता। 1984 में भोपाल में हुई यह गैस लीक त्रासदी (Gas Leak Tragedy) दुनिया की सबसे भयानक औद्योगिक आपदा है। इसने न सिर्फ हजारों लोगों की जानें ली, बल्कि कईयों की जिंदगी उनके पैदा होने से पहले ही बर्बाद कर दी। जो गिर गया, वह उठ नहीं पाया। उस रात हर व्यक्ति की जुबान पर शायद एक ही बात थी कि भगवान उन्हें मौत दे दे। वजह साफ थी, क्योंकि पूरा इलाका गैस चैंबर बन चुका था। गला मानो किसी ने घोंट दिया था और आंखों के सामने अंधेरा मौत से भी भयंकर था।

दरअसल, भोपाल में यूनियन कार्बाइड लिमिटेड (Union Carbide Limited) नाम की एक फैक्ट्री थी, जहां कीटनाशक दवाओं का निर्माण किया जाता था। फैक्ट्री स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का एक बड़ा जरिया हुआ करती थी। हालांकि, किसी को जरा भी एहसास नहीं था कि यही संयंत्र दुनिया की सबसे विनाशकारी आपदाओं में से एक का केंद्र बन जाएगा।

दो दिसंबर 1984 को कर्मचारी अपनी रात की ड्यूटी पर थे। इसी बीच संयंत्र से खतरनाक गैस (मिथाइल आइसोसाइनेट) का रिसाव शुरू हो गया। टैंक नंबर 610, जहां सबसे पहले गैस रिसाव हुआ। बताया जाता है कि इसी टैंक से निकली गैस पानी से मिल जाने की वजह से बहुत जल्द भोपाल के एक हिस्से को अपने आगोश में लपेट लिया।

गैस लीक होने से शहर घातक धुंध में गुम हो गया। गैस के बादल धीरे-धीरे नीचे आने लगे और शहर को अपनी जानलेवा परतों में घेरने लगे। जल्द ही सब कुछ तहस-नहस हो गया। पहाड़ियों और झीलों का शहर गैस चैंबर में बदल चुका था।

लोग आपदा से अंजान थे। जहरीली गैस खिड़की-दरवाजों से घरों में जाने लगी थी। एक के बाद एक लोग उस जहरीली गैस का शिकार बनने लगे। दम घुटने पर लोग घर से निकलने लगे, लेकिन फिर लोग लड़खड़ाकर गिरने लगे, उनकी सांसें थमने लगीं। ची-पुकार मच गई। आंखें दर्द से जल रही थीं और गला घुटता जा रहा था। देखते ही देखते रात का सन्नाटा दहशत और चीखों से गूंज उठा। अफरा-तफरी मच गई और कुछ ही घंटों में अस्पताल मरीजों से भर गए।

जो सड़कें कभी खेलते हुए बच्चों की हंसी से भरी रहती थीं, वे बेजान शरीरों से पटी हुई थीं, जो जहरीली गैस (Poisonous Gas) के शिकार हो चुके थे।

3 दिसंबर की सुबह, पूरी दुनिया को इस प्रलय के बारे में पता चला और उन्हें यकीन नहीं हुआ। इस हादसे में तुरंत लगभग 3000 लोगों की जान चली गई और हजारों लोग हमेशा के लिए शारीरिक रूप से कमजोर हो गए। यहां तक कि उस समय की गर्भवती महिलाओं ने बाद में ऐसे बच्चों को जन्म दिया जो शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर पैदा हुए।

इस भयानक हादसे के बाद कारोबार-बाजार सब कुछ रुक गया। पर्यावरण प्रदूषित हो गया और पेड़-पौधों और जानवरों के साथ पारिस्थितिकी पर असर पड़ा। यह हादसा इतना भयानक था कि हेल्थकेयर, एडमिनिस्ट्रेशन और कानून के क्षेत्र में मौजूद सभी साधन कम पड़ गए।

गैस रिसाव के कारण लोगों का पलायन शुरू हो गया और वे ट्रेनों और बसों से भोपाल छोड़ने के लिए दौड़ पड़े। लोगों ने इस त्रासदी के बारे में अखबारों में पढ़ा और यह कई दिनों तक सुर्खियों में रही। त्रासदी के निशान सिर्फ शारीरिक नहीं थे। वे दिलोदिमाग पर हमेशा के लिए दर्द और पीड़ा की विरासत छोड़ गए। इस आपदा का विनाशकारी प्रभाव कई दशकों बाद भी बरकरार है।

[AK]

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