

2026 के बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा वोटर लिस्ट सुधार, NRC/CAA और संगठनात्मक वॉर-रूम जैसी रणनीतियों के ज़रिये तृणमूल को चुनौती देने की कोशिश कर रही है।
राज्यसभा चुनावों में 2018 के बाद भाजपा की बढ़ती मौजूदगी ने बंगाल की राजनीति में भाजपा बनाम तृणमूल की सीधी टक्कर को और तेज़ कर दिया है।
मटुआ समुदाय का भाजपा से दूर होता रुझान और वोटर लिस्ट विवाद 2026 के चुनाव में भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभर रहा है।
अब जबकि 2026 में होने वाले पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं, सभी राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने वोट बैंक को मज़बूत करने के लिए अलग-अलग रणनीतियों का सहारा ले रही हैं। चुनावी तैयारियां ज़ोर-शोर से चल रही हैं और ऐसे में पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है। पूरे देश की नज़रें बंगाल पर टिकी हुई हैं।
पश्चिम बंगाल में जहां लगभग 30 वर्षों तक कम्युनिस्ट पार्टी का दबदबा रहा, वहीं बाद में Mamata Banerjee और उनकी पार्टी All India Trinamool Congress (TMC) ने वामपंथ को चुनौती दी। 2011 में ममता बनर्जी की जीत के बाद से बंगाल में TMC का झंडा लहराता रहा है। बीते करीब 15 वर्षों से राज्य की सत्ता पर ममता बनर्जी का प्रभाव बना हुआ है। दूसरी ओर, केंद्र में Bharatiya Janata Party (BJP) पिछले 10 वर्षों से अधिक समय से सत्ता में है। न सिर्फ लोकसभा में, बल्कि राज्यसभा के तहत 14 राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों में भाजपा की सरकार या प्रभाव देखने को मिलता है। इसके बावजूद यह एक अहम तथ्य है कि आज़ादी के बाद आज तक भाजपा पश्चिम बंगाल में कभी भी राज्य सरकार नहीं बना पाई है। यही कारण है कि 2026 के विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए बेहद अहम माने जा रहे हैं।
पिछले 15 वर्षों से ममता बनर्जी की सरकार ने बंगाल में अपने पांव मज़बूती से जमाए हुए हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि ममता बनर्जी सरकार को कभी चुनौती नहीं मिली। 2016 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस का स्पष्ट वर्चस्व देखने को मिला ही। आइये जानिये भाजपा द्वारा बंगाल चुनाव में जीत के लिए क्या क्या तरीके अपनाये ?
SIR (Special Intensive Revision) के तहत वोटर लिस्ट की गहन समीक्षा की जाती है, जिसमें मृत व्यक्तियों, डुप्लीकेट नामों, गलत प्रविष्टियों और स्थानांतरित हो चुके मतदाताओं के नाम हटाए जाते हैं। इस प्रक्रिया के तहत बंगाल की वोटर लिस्ट से करीब 58 लाख नाम हटाए गए, हालांकि यह ड्राफ्ट लिस्ट है और 2026 तक सुधार व आपत्ति दर्ज कराने का विकल्प मौजूद है। ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग और केंद्र सरकार पर आरोप लगाए कि यह प्रक्रिया खास उन इलाकों में लागू की गई, जहां से तृणमूल को मज़बूत समर्थन मिलता है। उनका कहना है कि यह सुधार के नाम पर TMC के वोट बैंक को कमजोर करने की रणनीति है। वहीं चुनाव आयोग और भाजपा का तर्क है कि यह नियमित और आवश्यक प्रशासनिक प्रक्रिया है।
भाजपा ने 2026 से पहले स्थानीय स्तर पर मज़बूती के लिए कई चुनावी वॉर-रूम तैयार किए हैं, ताकि 2021–22 के चुनावों में हुई संगठनात्मक गलतियों को इस बार न दोहराया जाए।
ममता बनर्जी सरकार का आरोप है कि NRC और CAA के ज़रिये भाजपा बंगाल में डर का माहौल बना रही है।उनका दावा है कि इन नीतियों से खासतौर पर मुस्लिम, बंगाली भाषी और शरणार्थी समुदाय प्रभावित हो सकते हैं, जिनसे तृणमूल को लगभग 23 प्रतिशत वोट समर्थन मिलता है।
सीमा सुरक्षा को लेकर आरोप भाजपा ने ममता सरकार पर सीमा सुरक्षा में ढिलाई का आरोप लगाया है, यह कहते हुए कि अवैध घुसपैठ से आंतरिक सुरक्षा को खतरा बढ़ सकता है। हालांकि ममता बनर्जी इन आरोपों को लगातार खारिज करती रही हैं।
भाजपा का आरोप है कि बंगाल में विकास की रफ्तार धीमी है। इसी आधार पर केंद्र सरकार ने राज्य में राष्ट्रीय राजमार्ग और कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन कर जनता को आकर्षित करने की कोशिश की। साथ ही, महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी भाजपा ने सरकार को घेरा है, यह कहते हुए कि महिला सुरक्षा के दावों के बावजूद अपराध के मामले बढ़े हैं।
यह माना जाता है कि बंगाल में धार्मिक समीकरण अहम भूमिका निभाते हैं। जहां ममता बनर्जी को मुस्लिम समुदाय का मज़बूत समर्थन (करीब 23%) मिलता रहा है, वहीं भाजपा हिंदू वोटों को एकजुट करने की रणनीति पर काम कर रही है, जिसमें संस्कृति और पहचान से जुड़े मुद्दे अहम हैं।
2026 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं। एक ओर भाजपा राज्य में ममता सरकार को कमजोर दिखाने की कोशिश में जुटी है, तो दूसरी ओर ममता बनर्जी केंद्र सरकार को बराबरी की चुनौती देती नज़र आ रही हैं।
हालांकि, हाल के वर्षों में मटुआ समुदाय को लेकर राजनीतिक समीकरणों में बदलाव देखने को मिला है। जिस मटुआ समुदाय को भाजपा कभी अपने समर्थन आधार के रूप में देखती थी, वही समुदाय अब भाजपा से दूरी बनाता हुआ दिखाई दे रहा है। यह रुझान भाजपा के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है और 2026 के चुनावी नतीजों में यह कारक निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
अब देखना यह होगा कि बंगाल की जनता किस पर भरोसा जताती है।
(Rh/PO)