![भारत में धर्मांतरण (Religious Conversion) का मुद्दा हमेशा से संवेदनशील और विवादित रहा है। [Sora Ai]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-08-17%2Ftsu39h8u%2Fassetstask01k2w3157mfnzs2p5wn81bfgdb1755436937img1.webp?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
भारत में धर्मांतरण (Religious Conversion) का मुद्दा हमेशा से संवेदनशील और विवादित रहा है। पुराने समय में जबरन, डर दिखाकर या धमकाकर धर्म बदलवाने के मामले आम सुनने को मिलते थे। इतिहास में कई ऐसे प्रसंग मिलते हैं जब सत्ता और ताक़त के ज़ोर पर लोगों से उनका धर्म छीन लिया गया। लेकिन समय के साथ धर्मांतरण (Religious Conversion) की तकनीकें भी बदल गई हैं। आज यह प्रक्रिया उतनी सीधी और डराने-धमकाने वाली नहीं रह गई, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, रोज़गार और सामाजिक मदद जैसे साधनों के ज़रिए लोगों को प्रभावित करने की कोशिश की जाती है। कई बार इसे लालच या बेहतर जीवनशैली के वादों के साथ जोड़ा जाता है, जिससे गरीब और वंचित तबकों को आकर्षित किया जाता है। यही वजह है कि भारत के अलग-अलग राज्यों में धर्मांतरण (Religious Conversion)को लेकर लगातार बहस और क़ानूनी कार्रवाई होती रही है। छत्तीसगढ़ में हाल की घटनाएं इसी विवाद को एक बार फिर सुर्खियों में ले आई हैं।
छत्तीसगढ़ में ननों की गिरफ़्तारी और राजनीति का लगा तड़का
यह घटना ऐसे समय में हुई है जब राज्य में महज तीन महीने बाद स्थानीय निकाय के चुनाव होने हैं, जिन्हें अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफ़ाइनल माना जा रहा है। बीजेपी स्थानीय निकाय चुनावों में अपनी ताक़त दिखाने और ज़्यादा ईसाई वोट अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही है। लेकिन ननों की गिरफ़्तारी से उसकी रणनीति को झटका लग सकता है।नन वंदना फ़्रांसिस और प्रीति मैरी को 25 जुलाई को छत्तीसगढ़ में दुर्ग रेलवे स्टेशन पर गिरफ़्तार किया गया था। यह कार्रवाई बजरंग दल के एक सदस्य की शिकायत पर हुई, जिसने आरोप लगाया था कि ये नन मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण में शामिल हैं.इन युवतियों को आगरा स्थित एक संस्थान के रसोई विभाग में काम पर रखा गया था। उनके पास सभी वैध दस्तावेज़ और माता-पिता की अनुमति भी मौजूद थी।
यह मामला सिर्फ़ गिरफ़्तारी तक सीमित नहीं रहा, बल्कि समाज में एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह वास्तव में जबरन धर्मांतरण है या फिर किसी की धार्मिक स्वतंत्रता? छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में पहले भी इस तरह की घटनाएं सामने आती रही हैं, जहां ग्रामीण इलाक़ों में गरीब और वंचित तबकों को धर्मांतरण के लिए सबसे ज़्यादा प्रभावित किया जाता है।धर्मांतरण का मुद्दा हमेशा से राजनीतिक रंग भी ले लेता है। विपक्ष और सत्ताधारी दल, दोनों ही इस विषय पर अपनी-अपनी दलीलें रखते हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ का यह मामला सिर्फ़ एक कानूनी कार्रवाई नहीं, बल्कि पूरे देश में धर्म और राजनीति के बीच टकराव की एक और मिसाल बन गया है।
क्या वोटों के लिए किए जा रहें थे धर्मांतरण?
भारत में ईसाई समुदाय, जो जनसंख्या में लगभग 2% है, कई राज्यों में वोट बैंक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, खासकर केरल जैसे राज्यों में। Christian unity after nuns’ arrest shows vote bank power. यह वाक्य इस तथ्य को दर्शाता है कि एक छोटा समुदाय राजनीतिक दलों के लिए कितना विद्युतीय और निर्णायक हो सकता है। छत्तीसगढ़ में दो ननों की गिरफ्तारी के बाद, कांग्रेस ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि यह धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने की रणनीति का हिस्सा है, जिसकी पृष्टभूमि में चुनाव समीकरण काम कर रहे हैं।
वहीं बीजेपी के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग रुख ने इस बात को और उभार दिया कि है यह सिर्फ़ कानून-व्यवस्था का मामला नहीं, बल्कि चुनावी राजनीति का हिस्सा है। केरल में बीजेपी ने ननों के समर्थन में काम कर के ईसाई वोट बैंक को साधने की कोशिश की, जबकि छत्तीसगढ़ में ज़हरीले रुख को बढ़ावा दिया गया, जिससे पार्टी की रणनीतिक स्थिति स्पष्ट होती है।
छत्तीसगढ़ नन गिरफ़्तारी पर केरल चर्च की प्रतिक्रिया
छत्तीसगढ़ में ननों की गिरफ़्तारी को लेकर केरल चर्च ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बताया है। कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ़ इंडिया (सीबीसीआई) के अध्यक्ष मार एंड्रयूज़ ताज़ात ने इसे संविधान के ख़िलाफ़ करार दिया और कहा कि यह ईसाइयों के उत्पीड़न की घटनाओं की कड़ी है। पत्रकार जोस कावी ने भी आंकड़े देते हुए बताया कि 2014 में ईसाइयों पर 127 हमले हुए थे जो 2024 में बढ़कर 834 तक पहुंच गए।
फ़ादर थॉमस थरायिल ने साफ़ कहा कि धर्मांतरण का आरोप पूरी तरह बेबुनियाद है और इस कार्रवाई के पीछे राजनीति छिपी है। उनका कहना था कि अगर जबरन धर्मांतरण होता तो अब तक पूरा भारत ईसाई बन चुका होता। वहीं, फ़ादर जीजू अरकातेरा ने बीजेपी के प्रतिनिधिमंडल के छत्तीसगढ़ दौरे को सकारात्मक क़दम माना और स्पष्ट किया कि चर्च किसी भी राजनीतिक पार्टी को अछूत नहीं मानता।
भारत में धर्मांतरण के बढ़ते मामले
भारत में धर्मांतरण का मुद्दा लगातार चर्चा में बना हुआ है। हाल के वर्षों में इससे जुड़े मामलों में तेज़ी आई है, जिस पर राजनीतिक और सामाजिक बहस भी गहराई से हो रही है। यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (UCF) के आंकड़ों के अनुसार, 2014 में ईसाइयों पर हमलों के 127 मामले सामने आए थे, जो 2024 में बढ़कर 834 हो गए। कई मामलों में धर्मांतरण को आधार बनाकर हमले और गिरफ़्तारियां हुईं। वहीं, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट बताती है कि धर्म से जुड़ी हिंसा और टकराव के मामलों में साल-दर-साल वृद्धि हो रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि धर्मांतरण के आरोप ज़्यादातर ग़रीब और पिछड़े वर्गों से जुड़े लोगों पर लगाए जाते हैं। कई बार शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं या आर्थिक मदद के नाम पर लोगों को प्रभावित करने का दावा किया जाता है। हालांकि, चर्च और मिशनरी संगठनों का कहना है कि वे सिर्फ़ सामाजिक सेवा करते हैं और जबरन धर्मांतरण का आरोप बेबुनियाद है।
भारत में धर्मांतरण का मुद्दा हमेशा से धार्मिक स्वतंत्रता और राजनीति के बीच टकराव का केंद्र रहा है। पुराने समय में जहां धर्मांतरण जबरन या डर दिखाकर कराया जाता था, वहीं आज इसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार और सामाजिक मदद जैसे साधनों से जोड़कर देखा जाता है। आंकड़े बताते हैं कि हाल के वर्षों में धर्मांतरण से जुड़े विवाद और ईसाइयों पर हमलों में तेज़ी आई है।
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छत्तीसगढ़ में ननों की गिरफ़्तारी इसका ताज़ा उदाहरण है, जिसने देशभर में धार्मिक स्वतंत्रता बनाम राजनीतिक हितों की बहस को हवा दी। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर इस विषय को राजनीति से जोड़े बिना, निष्पक्ष और संवेदनशील दृष्टिकोण से सुलझाया जाए, तभी समाज में शांति और विश्वास का माहौल कायम हो सकेगा। धर्मांतरण पर बहस से ज़्यादा ज़रूरी है कि हर नागरिक को संविधान द्वारा दी गई धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान और सुरक्षा मिले। [Rh/SP]