आषाढ़ के गुप्त नवरात्रि के उपलक्ष्य में हम पढ़ रहे हैं 10 महाविद्याओं के बारे में। पिछली कड़ी में हमने सातवीं महाविद्या धूमवती के बारे में पढ़ा। आज हम पढ़ेंगे आठवीं महाविद्या देवी बगला मुखी के बारे में।
'बगला' शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत शब्द 'वल्गा' के अपभ्रंश से हुआ है। वल्गा का अर्थ होता है दुल्हन। कुब्जिका तंत्र के अनुसार, 'व' अक्षर वारुणी, 'ग' अक्षर सिद्धिदा तथा 'ला' अक्षर पृथ्वी को संबोधित करता है। अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और शक्ति को देखते हुए उन्हें यह नाम प्राप्त हुआ है।
माता बगला मुखी की आराधना करने वाले भक्तों को विजय प्राप्त होता है। ऐसे भक्त जो माँ बगलामुखी की अनन्य भाव से पूजा करते हैं, उनके शत्रुओं का शमन होता है। साधक इनकी साधना वाक् सिद्धि एवं शत्रुओं पर विजय पाने के लिए करते हैं। उग्र कोटी की देवी बगलामुखी के कई स्वरूप हैं। यह देवी त्रिनेत्रा हैं, जिनके मस्तक पर अर्ध चन्द्र शोभित है, शरीर पर पीले वस्त्र और पीले फूलों की माला शोभायमान है। चंपा फूल, हल्दी की गांठ इत्यादि पीले रंग से सम्बंधित तत्वों की माला इनको आती प्रिय है।
मनोहर तथा मंद मुस्कान वाली देवी बगला मुखी ने अपने बाएं हाथ से दैत्य के जिह्वा को पकड़ कर रखा है और दाएं हाथ से गदा उठाया हुआ है। उनका जिह्वा को पकड़ने का बहुत से लोग यह तात्पर्य बताते हैं कि देवी वाक् शक्ति देने और लेने के लिए प्रख्यात हैं।
माँ बगलामुखी के प्रकाट्य के संबंध में कहा जाता है कि, यह देवी गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में हल्दी रंग के जल से प्रकाट हुई थीं। चूंकि इनका वर्ण हल्दी सा पीला है, इसलिए इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहा जाता है। कई मान्यताओं के अनुसार इनका प्रादुर्भाव भगवान विष्णु से भी बताया गया है। अतः इनका गुण सात्विक है एवं यह वैष्णव संप्रदाय से संबंध रखती हैं। परंतु बहुत से साधना पद्धतियों के अनुसार यह देवी तामसी गुण से भी संबंध रखती हैं।
माँ बगलामुखी के तीन ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं- दतिया ( मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश)। तांत्रिक पद्धति में यह शैव और शाक्त मार्गी साधु-संतों की अधिष्ठात्री देवी हैं।
महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने श्रीकृष्ण के परामर्श पर कई जगह शक्ति की साधना की थी। इन्हीं शक्तियों में से एक हैं माता बगलामुखी, जिनकी साधना अर्जुन समेत पांचों पांडवों ने किया था। परिणामस्वरूप माँ ने उन्हें विजयी भाव का वरदान दिया था। इसके अतिरिक्त देवी बगलामुखी की आराधना सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने की थी, इसके बाद उन्होंने बगला साधना का उपदेश सनकादिक मुनियों को दिया, कुमारों से प्रेरित होकर देवर्षि नारद ने भी बगलामुखी देवी की साधना की। देवी के दूसरे उपासक के रूप में जगत के पालन कर्ता भगवान विष्णु तथा तीसरे भगवान परशुराम को जाना जाता है। वैदिक काल में समय-समय पर इनकी साधना सप्तऋषियों ने भी की है।