Gupt Navratri: जानें द्वितीय महाविद्या तारा के बारे में

केवल हिन्दू धर्म में ही नहीं, बल्कि बौद्ध धर्म में भी माँ तारा का विशेष स्थान है। कहीं-कहीं तो महात्मा बुद्ध को भी माँ तारा के रूप में चित्रित किया हुआ पाया जाता है।
Gupt Navratri: जानें द्वितीय महाविद्या तारा के बारे में
Gupt Navratri: जानें द्वितीय महाविद्या तारा के बारे में Devi Tara (Wikimedia Commons)
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पिछली कड़ी में हमने दस महाविद्याओं की उत्पत्ति तथा प्रथम महाविद्या देवी काली के बारे में जाना था। आज हम जानेंगे द्वितीय महाविद्या देवी तारा के बारे में, जिन्हें सौम्य और उग्र दोनों ही की श्रेणी में गिना जाता है।

माँ तारा के स्वरूप की बात करें तो इनका रूप माँ काली के ही समान है। माँ तारा नीले वर्ण की हैं जिसके कारण उन्हें नील सरस्वती भी कह कर बुलाया जाता है। बंगाल स्थित तारापीठ में माता सती के नेत्र गिरे थे, इस कारण से उन्हें नयन तारा भी कहा जाता है। कहते हैं तारापीठ वही स्थान है जहां महर्षि वशिष्ठ ने देवी तारा की उपासना करके सिद्धियाँ प्राप्त की थी। अन्य पौराणिक कथाओं में माँ तारा का एक नाम एकजटा और उग्रतारा भी बताया जाता है।

सिर के मुकुट पर अर्ध चंद्रमा शोभा पा रहा है और माँ के केश खुले व बिखरे हुए हैं। माँ का मुख आश्चर्यचकित मुद्रा में थोड़ा सा खुला हुआ है। माँ हँसती हुई प्रतीत होती हैं तथा उनके गले में भगवान शिव के समान ही सर्प लिप्टा हुआ है। माँ अपने चार हाथों के साथ खड़ी नजर आती हैं। उनके एक हाथ में खड्ग, दूसरे में तलवार, तीसरे में कमल का फूल और चौथे हाथ में कैंची है। माँ के गले में राक्षसों के कटे हुए सिर की माला और कमर में बाघ की खाल लिपटी हुई है। माँ का यह भीषण स्वरूप भक्तों को अभय प्रदान करने वाला है।

कुछ पौराणिक कथाओं में, जैसे थास्वतंत्र तंत्र के अनुसार, माँ के उत्पत्ति संबंधित यह कथा मिलती है कि माँ तारा का जन्म मेरु पर्वत के पश्चिम भाग में चोलना नदी के किनारे हुआ था। कहा जाता है कि हयग्रीव नामक दैत्य के वध हेतु देवी महा-काली ने नील वर्ण धारण किया था।

Gupt Navratri: जानें द्वितीय महाविद्या तारा के बारे में
Gupt Navratri: जानें प्रथम महाविद्या काली के बारे में

एक अन्य ग्रंथ, महाकाल संहिता के अनुसार, 'देवी तारा' चैत्र शुक्ल की अष्टमी तिथि को प्रकट हुई थीं, जिसके कारण यह तिथि तारा-अष्टमी के नाम से जानी जाती है। और, चैत्र शुक्ल नवमी की रात्रि को तारा-रात्रि के नाम से बुलाया जाता है।

तारा-रहस्य तंत्र के अनुसार, रावण वध में भगवान राम केवल एक निमित्त मात्र थे। जबकि, वास्तव में भगवान राम की विध्वंसक शक्ति देवी तारा ही थीं। उन्होंने ही लंकापति रावण का वध किया।

तंत्र के अलावा माँ तारा की उपासना से उपासक का गुरु ग्रह भी मजबूत होता है। जो भी साधक हृदय से माँ तारा को ध्याता है, उसपर माँ तत्काल प्रसन्न होती हैं। माँ तारा से संबंधित भगवान शिव का रुद्रावतार तारकेश्वर महादेव स्वरूप है।

केवल हिन्दू धर्म में ही नहीं, बल्कि बौद्ध धर्म में भी माँ तारा का विशेष स्थान है। कहीं-कहीं तो महात्मा बुद्ध को भी माँ तारा के रूप में चित्रित किया हुआ पाया जाता है।

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