
Summary
कैसे नई किताबें हिन्दू देवताओं को अलग और आधुनिक नज़रिए से दिखाती हैं।
कौन-कौन सी किताबें द्रौपदी, शिव और अन्य पात्रों को नया रूप देती हैं।
क्यों ये कहानियाँ आज के समय में भी हमारे जीवन से जुड़ी हुई लगती हैं।
देवताओं को नए नज़रिए से देखने की ताकत
हम सभी ने बचपन में रामायण और महाभारत की कहानियाँ सुनी हैं। हमें बताया गया कि शिव विनाशक हैं, द्रौपदी पीड़ित हैं, और सीता आदर्श पत्नी हैं।
लेकिन जब कुछ लेखक इन्हीं किरदारों को नए रूप में दिखाते हैं, तो सब कुछ बदल जाता है। ये किताबें हमें बताती हैं कि मिथक (mythology) पत्थर पर लिखी हुई बातें नहीं हैं, बल्कि जीवित कहानियाँ हैं, जो हर पीढ़ी में नया अर्थ लेती हैं।
1. जब स्त्रियाँ खुद अपनी कहानी कहती हैं
सदियों तक हमारे ग्रंथ पुरुषों ने लिखे। लेकिन अब लेखिकाएँ जैसे चित्रा बैनर्जी दिवाकरुणी की दी पैलेस ऑफ़ इलुशन्स (The Palace of Illusions) और कविता केन की Sita’s Sister इन कहानियों को महिलाओं की नज़रों से बताती हैं। द्रौपदी यहाँ सिर्फ़ अपमान झेलने वाली स्त्री नहीं है, वो तेज़ दिमाग़, साहसी, और अपनी बात कहने वाली औरत है।
उर्मिला (Urmila), जो लष्मन के साथ वन में नहीं गई, लेकिन घर पर रही, उसकी भी अपनी ताकत है, अपनी कहानियाँ हैं। इन किताबों से हमें समझ आता है कि देवियो और स्त्रियो दोनों में एक जैसी शक्ति है, बस नज़र बदलने की ज़रूरत है।
2. जब भगवान भी इंसान लगने लगते हैं
लेखक अमिश त्रिपाठी (Amish Tripathi) की दी इम्मोर्टल्स ऑफ़ मेलुहा (The Immortals of Meluha) और जॉन स्ट्रैटन हॉले की शिवा (Shiva: The Wild God of Power and Ecstasy) में शिव का एक अलग रूप देखने को मिलता है।
यहाँ शिव कोई जन्म से देवता नहीं हैं, बल्कि अपने कर्मों, दुखों और फैसलों से देवता बनते हैं इन कहानियों में भगवान के भीतर का इंसान दिखाई देता है, जो प्रेम करता है, गलती करता है, और सीखता है। इस तरह की किताबें हमें सिखाती हैं कि भगवान बनना एक यात्रा है, कोई वरदान नहीं।
3. जब मनोविज्ञान और मिथक मिलते हैं
देवदत्त पट्टनायक (Devdutt Pattnayak) जैसे लेखक ने हिन्दू देवताओं की कहानियों को आस्था और तर्क के बीच जोड़ा है।
उनकी किताबें माय गीता (My Gita), जया (Jaya) और शिखंडी (Shikhandi: And Other Tales, They Don’t Tell You) बहुत आसान भाषा में समझाती हैं कि हर कथा के पीछे एक मनोवैज्ञानिक संदेश छिपा है।
ये किताबें दिखाती हैं कि हर देवता किसी भावना या विचार का प्रतीक है, जैसे अर्जुन का संदेह, कृष्ण का ज्ञान या सीता का धैर्य। इनसे हमें पता चलता है कि भगवान हमारे अंदर हैं, वो हमारी सोच और कर्मों का हिस्सा हैं।
4. जब मिथक समाज का आईना बनते हैं
कुछ किताबें सिर्फ़ कहानी नहीं सुनातीं, बल्कि समाज पर सवाल उठाती हैं। जैसे प्रतिभा राय (Prathiba Rai) की “Yajnaseni” और कविता केन की “Karna’s Wife: The Outcast’s Queen” में दिखाया गया है कि कैसे जाति, लिंग और शक्ति जैसे विषय पुराने समय में भी मौजूद थे।
इन कहानियों से हमें समझ आता है कि मिथक केवल पूजा की वस्तु नहीं, बल्कि समाज की असल तस्वीर हैं। वे हमें सिखाती हैं कि न्याय और समानता की लड़ाई बहुत पुरानी है, और आज भी जारी है।
5. जब आधुनिक लेखक पुराने देवताओं को नया रूप देते हैं
आज के समय में भी कई लेखक मिथकों को आधुनिक दुनिया से जोड़ रहे हैं। जैसे कृष्णा उदयशंकर (Krishna Udhayashankar) की दी आर्यावर्त क्रोनिकल्स (The Aryavarta Chronicles) या देवदत्त पट्टनायक की दी प्रेग्नेंट किंग (The Pregnant King)
इन किताबों में देवता आज के लोगों जैसे लगते हैं, उलझे हुए, सवाल करने वाले, और भावनाओं से भरे हुए। ये कहानियाँ बताती हैं कि ईश्वर सिर्फ़ आसमान में नहीं रहते, वो हमारे आस-पास की ज़िन्दगी में भी हैं, हमारी गलियों, रिश्तों और विचारों में।
जब कहानियाँ प्रतीक बन जाती हैं
इन किताबों को पढ़ते-पढ़ते आप महसूस करेंगे कि हर कहानी के पीछे एक गहरा अर्थ छिपा है। शिव का तांडव अब सिर्फ़ विनाश नहीं, बल्कि बदलाव का नृत्य लगता है।
द्रौपदी (Draupadi) की आग अब बदले की नहीं, बल्कि न्याय की आवाज़ बन जाती है। इन रचनाओं से हमें यह सीख मिलती है कि हर युग में देवता नए रूप में जन्म लेते हैं, और हम उनके साथ बदलते हैं।
क्यों ये कहानियाँ आज के समय में ज़रूरी हैं
आज की दुनिया में जहाँ लोग आस्था और विज्ञान के बीच उलझे हुए हैं, वहीं ये किताबें हमें समझ का रास्ता दिखाती हैं।
ये बताती हैं कि मिथक अंधविश्वास नहीं हैं, बल्कि जीवन को समझने का तरीका हैं। इनसे हमें पता चलता है कि ईश्वर कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर की अच्छाई, साहस और प्रेम में बसते हैं।
निष्कर्ष
शिव की गहराई, द्रौपदी की हिम्मत और इन लेखकों की कल्पना, ये सब मिलकर हमें दिखाते हैं कि मिथक अतीत नहीं, वर्तमान हैं। हर नई कहानी एक नई प्रार्थना है, जो हमें याद दिलाती है कि देवता सिर्फ़ आराधना के पात्र नहीं, समझ और बदलाव के प्रतीक हैं। जब हम इन कहानियों को पढ़ते हैं, तो हम सिर्फ़ भगवानों को नहीं समझते, हम खुद को भी थोड़ा बेहतर समझने लगते हैं।
(Rh/BA)