
भारत की धरती पर लोककथाओं और परंपराओं का खजाना भरा पड़ा है। भारत का हर राज्य, हर समाज और हर संस्कृति में ऐसी कथाएँ मिलती हैं, जिनमें देवताओं, आत्माओं और अलौकिक शक्तियों का ज़िक्र होता है। इन्हीं में से एक अनोखी और रहस्यमयी कथा है "चत्तन" (Chattan) या "विष्णुमाया स्वामी" (Vishnumaya Swami) की, जिन्हें कभी देवता तो कभी शरारती आत्मा के रूप में देखा जाता है। केरल में आज भी "चत्तन सेवा" (Chattan service) नामक प्रथा प्रचलित है, जहाँ लोग मानते हैं कि चत्तन उनकी जीवन की समस्याओं को दूर कर सकता है, चाहे वो भावनात्मक हों या शारीरिक। यह परंपरा केवल पूजा-पाठ भर तक नहीं है, बल्कि इसमें लोककथाओं, पौराणिक घटनाओं और सामाजिक विश्वासों की गहरी छाप दिखाई देती है। चत्तन की कहानियाँ लोगों की स्मृतियों में जिंदा हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती रही हैं। आइए जानते हैं कि कौन थे चत्तन और क्यों आज भी उनकी सेवा केरल की संस्कृति का अहम हिस्सा है।
चत्तन कौन थे ?
"चत्तन" (Chattan) शब्द द्रविड़ परंपरा से लिया गया है और स्थानीय लोककथाओं में इसे अलौकिक शक्ति का प्रतीक माना गया है। दिलचस्प बात यह है कि चत्तन की पहचान हमेशा एक सी नहीं रही। कुछ लोग उन्हें दयालु देवता मानते हैं जो भक्तों की रक्षा करते हैं, तो कुछ उन्हें शरारती आत्मा कहते हैं जो बुराई का भी साथ दे सकते हैं । यही कारण है कि चत्तन को "दोहरी प्रकृति" वाला देवता कहा जाता है, जो भलाई भी कर सकता है और बुराई भी।
लोककथा के अनुसार, चत्तन भगवान शिव और एक आदिवासी कन्या "कुलीवका" के पुत्र थे। कहा जाता है कि कुलीवका बेहद सुंदर और भोली-भाली लड़की थी। भगवान शिव उसके सौंदर्य से मोहित हो गए और उससे मिलने की इच्छा जताई। लेकिन कुलीवका पार्वती की सच्ची भक्त थी। वह असमंजस में पड़ गई, यदि वह शिव को चुनती तो पार्वती का क्रोध झेलना पड़ता और यदि शिव को ठुकराती तो उनका प्रकोप झेलना पड़ता। असमंजस में उसने पार्वती से प्रार्थना की। उन्होंने पार्वती माँ से विनती करके कहा माँ मुझे इस उलझन से बहार निकालो, पार्वती माता ने कुलीवका की मासूमियत से प्रभावित होकर बताया कि यह सब उसकी नियति है।
दरअसल, पिछले जन्म में कुलीवका पार्वती की एक सेविका थी जिसने कभी भगवान गणेश को स्तनपान कराया था। इसी अपराध के लिए पार्वती ने उसे श्राप दिया था कि अगले जन्म में वह अछूत जाति में जन्म लेगी। लेकिन दया करके पार्वती ने यह आशीर्वाद भी दिया कि वह शिव के संतान को जन्म देगी। इसी प्रकार कुलीवका ने चत्तन को जन्म दिया। यह बालक कोई साधारण बालक नहीं था यह बहुत ही शक्तियों वाला बालक था और उसका उद्देश्य असुरों का संहार करना था।
जब चत्तन बड़े हुए, तो उन्हें अपने माता-पिता के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई। नारद मुनि ने उन्हें सच्चाई बताई और कैलाश पर्वत पर जाकर शिव से मिलने की सलाह दी। वहाँ शिव के द्वारपाल नंदी ने उन्हें रोक दिया। तब चत्तन ने अपनी माया से विष्णु का रूप धारण कर लिया और सीधे भगवान शिव के सामने पहुँच गए। भगवान शिव उनकी इस माया से प्रभावित हुए और उन्हें "विष्णुमाया" (Vishnumaya Swami) नाम दिया। यही कारण है कि चत्तन को विष्णुमाया स्वामी भी कहा जाता है।
चत्तन की कथा केवल यहीं तक सीमित नहीं है। एक युद्ध के दौरान जब वह असुर भृंगासुर से लड़ रहे थे, तो उनके रक्त की कुछ बूँदें ज़मीन पर गिरीं। इन्हीं बूँदों से "कुट्टीचत्तन" नामक छोटे-छोटे योद्धा पैदा हुए। इनकी संख्या लगभग 400 बताई जाती है। कुट्टीचत्तन को "छोटा राक्षस" भी कहा जाता है। केरल में आज भी "कुट्टीचत्तन (Kuttichattan) थेय्यम" नामक पारंपरिक नृत्य-नाटक आयोजित होते हैं, जहाँ कलाकार नारियल के छिलकों से बनी टोपी पहनकर चत्तन और कुट्टीचत्तन की कहानियाँ जीवित करते हैं।
केरल के कई मंदिरों में चत्तन को पूजा जाता है। त्रिशूर का चत्तन स्वामी मंदिर और पलक्कड़ का चत्तन कोविल इसके प्रमुख उदाहरण हैं। इन मंदिरों में भक्त आशीर्वाद, सुरक्षा और समृद्धि की कामना से पूजा करते हैं। "चत्तन सेवा" (Chattan service) नामक प्रथा में लोग विशेष अनुष्ठान करते हैं। इसमें प्रसाद चढ़ाया जाता है और विशेष मंत्रोच्चार से प्रार्थना की जाती है। लोगों का विश्वास है कि यदि चत्तन प्रसन्न हो जाएँ तो वह जीवन की हर समस्या का समाधान कर सकते हैं। हालाँकि, इस प्रथा की व्याख्या अलग-अलग है। कुछ लोग मानते हैं कि यह पूजा केवल भलाई और आशीर्वाद के लिए होती है, जबकि कुछ का कहना है कि लोग इसका इस्तेमाल प्रतिशोध लेने के लिए भी करते हैं। यही कारण है कि कई लोग इसे "काला जादू" से भी जोड़ते हैं।
चत्तन और समाज
मालाबार क्षेत्र के कई परिवारों के बारे में माना जाता है कि वो आत्माओं को नियंत्रित करने की शक्ति रखते हैं। जैसे कल्लूर और कट्टुमपदम के नम्बूरादी परिवार, जिन्हें चत्तन की विशेष कृपा प्राप्त बताई जाती है। ये परिवार इस शक्ति का इस्तेमाल भलाई और समाज की रक्षा के लिए करते हैं। लेकिन साथ ही कई कथाएँ ऐसी भी हैं जिनमें चत्तन सेवा को डर और प्रतिशोध का माध्यम माना गया है।
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समय के साथ चत्तन की कहानियाँ सिर्फ मंदिरों तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि फिल्मों और नाटकों का हिस्सा भी बन गईं। हाल ही में आई मलयालम फिल्में जैसे कुमारी (2022) और ब्रह्मयुगम (2023) में विष्णुमाया और चत्तन सेवा से जुड़ी परंपराओं को दर्शाया गया है। इन फिल्मों में चत्तन को कभी चमत्कारी शक्ति से भरे शरारती भूत के रूप में दिखाया जाता है, तो कभी स्थानीय देवता के रूप में। यही दोहरी छवि चत्तन को रहस्यमयी और आकर्षक बनाती है।
चत्तन (Chattan) की कहानियाँ पीढ़ियों से दादी-नानी की जुबान से बच्चों तक पहुँचती रही हैं। कभी इन कथाओं में अच्छाई पर ज़ोर दिया जाता है, तो कभी बुराई पर। यही वजह है कि चत्तन सेवा को आज भी अलग-अलग समुदाय अलग-अलग नज़रिये से देखते हैं। किसी के लिए यह स्थानीय देवता का आशीर्वाद पाने का तरीका है, तो किसी के लिए यह आत्माओं को वश में करने की रहस्यमयी साधना ।
निष्कर्ष
चत्तन की कथा हमें यह दिखाती है कि भारतीय लोककथाएँ कितनी बहुआयामी होती हैं। एक ही देवता को कहीं रक्षक माना जाता है तो कहीं दंड देने वाला। केरल में चत्तन सेवा इसी विश्वास का प्रतीक है, जहाँ लोग अपने डर, उम्मीदें और इच्छाएँ एक ऐसे देवता के आगे समर्पित करते हैं, जो अच्छाई और बुराई दोनों का संरक्षक है। आज जब विज्ञान और तकनीक के दौर में लोग पुरानी परंपराओं पर सवाल उठाते हैं, तब भी चत्तन की कथाएँ और उनकी सेवा यह साबित करती हैं कि लोककथाएँ केवल अतीत की कहानियाँ नहीं हैं, बल्कि समाज की आस्था और पहचान का हिस्सा हैं। इस तरह, चत्तन केवल एक देवता नहीं, बल्कि लोकजीवन की गहरी धारणाओं का प्रतीक हैं, जहाँ विश्वास, भय और भक्ति मिलकर एक अनोखी सांस्कृतिक धरोहर बनाते हैं। [Rh/PS]