जानिए क्या है इतिहास और कहानी सिख धर्म के पाँच ककारों का

गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 ईस्वी में पांच ककार की परंपरा (Tradition) का शुरुआत किया था। यह घटना सिख इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण क्षण माना जाता है।
इस तस्वीर में पांच ककार को दिखाया गया है और साथ में एक सिख गुरु भी बैठे है।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 ईस्वी में पाँच ककारकी परंपरा का शुरुआत किया था।Ai
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Summary
  • पाँच ककार की परंपरा (Tradition) की शुरुआत दसवें सिख गुरु द्वारा किया गया था।

  • आपको बता दें की खालसा पंथ (Khalsa Panth) की स्थापना के पीछे केवल धार्मिक उद्देश्य नहीं था, बल्कि इसके पीछे सामाजिक और नैतिक उद्देश्य भी था।

  • ये पाँच ककार सिख धर्म की नींव हैं। ये केवल धार्मिक (Religious) प्रतीक नहीं, बल्कि जीवन जीने का मार्गदर्शन भी हैं।

किसने शुरू किया था पाँच ककार की परंपरा ?

पाँच ककार की परंपरा (Tradition) की शुरुआत दसवें सिख गुरु द्वारा किया गया था। गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh) जी ने 1699 ईस्वी में किया था। इसीलिए यह घटना सिख इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण क्षण माना जाता है। उस वर्ष वैशाखी (Baisakhi) के दिन आनंदपुर साहिब में हजारों सिख इकट्ठे हुए थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिख समुदाय को एक नई दिशा देने का निर्णय लिया था। उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की थी , यानी ऐसे सिख जो पूर्ण रूप से धर्म के प्रति समर्पित, साहसी, और सत्य के राह पर चलने वाले हों।

पांच ककार परंपरा की शुरुआत कैसे हुई थी ?

ये कहानी शुरू होती है जब गुरु जी ने सभा में आकर ऊँची आवाज़ में पूछा “कौन है वो जो अपने धर्म के लिए सिर देने को तैयार है?” यह शब्द सुनकर शुरुआत में सभी सिखों को लगा कि गुरु जी सचमुच सिर काटने वाले हैं, और इसके भय के कारण कोई लोग आगे नहीं आए। लेकिन कुछ समय बाद एक सिख आगे आ कर बोला, “गुरु जी, मेरा सिर हाज़िर है।” फिर गुरु जी उसे तंबू में ले गए और थोड़ी देर बाद अकेले बाहर आए,और उनकी तलवार पर खून लगा था।

उन्होंने फिर वही सवाल दुबारा कहा। इसी तरह पाँच सिख एक-एक करके आगे आने लगे। सभी को देखकर लगा कि गुरु जी ने उनका सिर ले लिया है। लेकिन कुछ देर बाद गुरु जी तंबू से निकले और उनके साथ पाँचों सिख भी एक साथ बाहर आए सभी जीवित, सफेद वस्त्रों में, और एक नई तेजस्वी ज्योत के साथ। इन्हीं पाँचों को “पंज प्यारे” कहा गया था।

गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh) जी ने फिर “अमृत” तैयार किया जो पानी और मिश्री को मिला कर बनाया गया था। और फिर पाँचों को पिलाया गया था। इसके साथ ही उन्होंने उन्हें खालसा घोषित किया और कहा कि अब से जो भी खालसा बनेगा, उन्हें ये पाँच ककार धारण करना अनिवार्य होगा। इन पाँच चिन्हों के माध्यम से गुरु जी ने सिखों को एकता, साहस, और अनुशासन का प्रतीक दिया।

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इस तस्वीर में एक सिख गुरु आँख बंद करके बैठे है और उनके आस-पास कुछ सिख लोग बैठे है।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने फिर “अमृत” तैयार किया जो पानी और मिश्री को मिला कर बनाया गया था। Ai

आपको बता दें की खालसा पंथ (Khalsa Panth) की स्थापना के पीछे केवल धार्मिक उद्देश्य नहीं था, बल्कि इसके पीछे सामाजिक और नैतिक उद्देश्य भी था। उस समय भारत में मुगल शासक अत्याचार कर रहे थे। धर्म और मानवता खतरे में थी। गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों को यह सिखाया कि वे केवल उपासक नहीं, बल्कि रक्षक भी बनें। उन्होंने कहा कि “जब सब उपाय निष्फल हो जाएं, तब तलवार उठाना ही धर्म है।” इसी विचार को कृपाण के रूप में प्रतीक दिया गया है।

इसकी एक और दिलचस्प कथा यह है कि जब गुरु जी ने पंज प्यारे बनाए, तो उन्होंने स्वयं उनसे अमृत ग्रहण करवाया। यह घटना दर्शाती है कि गुरु और शिष्य दोनों समान हैं, कोई ऊँच-नीच नहीं। इसी भावना को पाँच ककार धारण करने की परंपरा में भी देखा जाता है, हर सिख चाहे राजा हो या गरीब, उसे एक समान चिन्ह धारण करने होते हैं।

पाँच ककार का मतलब और महत्व

केश : बिना केश काटे हुए प्रकृति और ईश्वर की रचना के प्रति का सम्मान मना जाता हैं। यह सिखों को बताता है कि इंसान को वैसे ही स्वीकार करें जैसे भगवान ने बनाया है। यह धैर्य और आत्म-सम्मान का भी प्रतीक है।

कंघा: यह लकड़ी का कंघा केशों को साफ और व्यवस्थित रखने के लिए होता है। यह सिखाता है कि बाहरी और आंतरिक, दोनों प्रकार की स्वच्छता ज़रूरी है। अनुशासन और सादगी इसका संदेश है।

कड़ा : यह लोहे का गोल ब्रेसलेट है जो हाथ में पहना जाता है। यह ईश्वर की एकता (जिसका कोई आरंभ या अंत नहीं) का प्रतीक है। साथ ही यह सिख को याद दिलाता है कि उसके कर्म ईश्वर की निगरानी में हैं और उसे हमेशा सच्चाई से काम करना चाहिए।

कच्छा: यह एक विशेष प्रकार का वस्त्र है जो संयम, नैतिकता और आत्म-संयम का प्रतीक है। यह सिखों को अपने चरित्र को मजबूत रखने और सदाचार में बने रहने की प्रेरणा देता है।

कृपाण : यह एक छोटी तलवार है जो आत्मरक्षा, साहस और न्याय के लिए खड़े होने का प्रतीक है। इसका अर्थ हिंसा नहीं, बल्कि अन्याय के खिलाफ धर्म की रक्षा करना है।

निष्कर्ष (Conclusion)

ये पाँच ककार सिख धर्म की नींव हैं। ये केवल धार्मिक (Religious) प्रतीक नहीं, बल्कि जीवन जीने का मार्गदर्शन भी हैं। ये सिखों को हर दिन यह याद दिलाते हैं कि उन्हें अपने गुरु की शिक्षाओं पर अडिग रहना चाहिए,सच्चाई, साहस, सेवा और समर्पण के साथ जीवन बिताना चाहिए। हर ककार सिख जीवन में किसी न किसी गुण को जागृत करता है जैसे स्वाभिमान, स्वच्छता, अनुशासन, संयम और न्याय। यही कारण है कि आज भी दुनिया भर में सिख अपने पाँच ककार को गर्व और श्रद्धा के साथ धारण करते हैं। यह उनकी पहचान ही नहीं, बल्कि उनके अस्तित्व की आत्मा भी हैं, जो उन्हें उनके गुरु से, उनके धर्म से और ईश्वर से जोड़ती है।

इस तस्वीर में पांच ककार को दिखाया गया है और साथ में एक सिख गुरु भी बैठे है।
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