

सोनपुर का मेला एक बहुत ही प्रसिद्ध मेला है हमारे भारत में। जिसे “हरिहर क्षेत्र मेला” भी कहा जाता है, यह मेला बिहार के सारण जिले में गंगा और गंडक नदियों के संगम पर आयोजित होता है। इस मेले को एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला भी माना जाता है। इस मेले की महत्पूर्ण बात यह है कि यह सिर्फ मेला व्यापार का ही नहीं है, बल्कि यहाँ सांस्कृतिक झलक भी देखने को मिलती है। और यहाँ हर तरह के श्रद्धालु, व्यापारी और पर्यटक एक साथ आते हैं।
बिहार में लगने वाले इस मेले का इतिहास बहुत प्राचीन है। माना जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य के समय से ही यह मेला अस्तित्व में था, क्योंकि उसी समय मौर्य सम्राट हाथी और घोड़े खरीदने यहाँ जाते थे। पहले के समय में यह मेला मुख्य रूप से हाजीपुर में लगता था, और हरिहर नाथ मंदिर में पूजा हुआ करता था।
लेकिन बहुत समय बाद मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब के शासन में मेले का आयोजन सोनपुर में होना शुरू हो गया था। हरिहरनाथ मंदिर की भी एक ऐतिहासिक महत्व है, ऐसा कहा जाता है कि यह मंदिर राम के समय का है, और बाद में राजा माण सिंह ने इसे पुनर्स्थापित किया था।
इतना ही नहीं धार्मिक दृष्टि से भी सोनपुर मेला बहुत महत्वपूर्ण है। सोनपुर मेला कार्तिक पूर्णिमा के दिन शुरू होता है, और श्रद्धालु वह आ कर गंगा‑गंडक संगम पर पवित्र स्नान करते हैं ताकि आत्मा की शुद्धि हो सके। हरिहरनाथ मंदिर में भी पूजा‑अर्चना की जाती है क्योंकि यह स्थान भगवान विष्णु (हरि) और भगवान शिव (हर) की एकीकृत मूर्ति के लिए प्रसिद्ध स्थान है। इसके अलावा, लोककथा से जुड़ी एक मान्यता है कि भगवान विष्णु ने यहाँ अपना सुदर्शन चक्र चलाया था, और हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के बीच गज‑ग्राह की लड़ाई भी हुई थी। और यह कथा मेले को और भी धार्मिक और पौराणिक महत्व देती है, साथ ही लोगो को इससे जोड़े रखते है।
लोग सोनपुर मेले में कई कारणों से आते हैं। उन में से एक है धार्मिक आस्था, लोगो यहाँ गंगा‑गंडक संगम पर स्नान करना करते है, फिर हरिहरनाथ मंदिर में दर्शन और पूजा करते है।
ज्यादातर यह मेला पारंपरिक रूप से पशु‑बाजार (Animal Market) के लिए जाना जाता है। यहाँ भेड़‑बकरियों, घोड़ों, कुत्तों और दूसरे पशुओं की खरीद‑बिक्री होती है। हालाँकि अब हाथियों को बेचने पर अब प्रतिबंध लगा दिया गया है, लेकिन आज भी सजाए गए हाथी मेले की शोभा बढ़ाते हैं। इतना ही नहीं यहाँ मनोरंजन और नृत्य की सुविधाएं भी होती हैं। और यहाँ के थियेटर और डांस का कार्यक्रम इतना लोकप्रिय हो गया है कि यह मेले की पहचान में बदल गया है। हमारे इस मेले को देखने लोग देश-विदेश से आते हैं।
सोनपुर मेला सिर्फ एक पशु मेला ही नहीं है, बल्कि यह धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक विरासत और लोक‑परंपराओं का संगम भी है। इतिहास से जुड़े पौराणिक कथाएं, विशाल पशु बाजार, रंगबिरंगे मनोरंजन कार्यक्रम और सैंकड़ों वर्षों की स्थिरता इसे एक विशेष पहचान देते हैं। हर वर्ष हजारों लोग दूर-दूर से इस मले में आते हैं। कुछ पूजा करने, कुछ व्यापार के लिए, तो कुछ सिर्फ मेले की चहल-पहल और मनोरंजन का मज़ा लेने के लिए। यह मेला हमारे सांस्कृतिक इतिहास की एक जीवंत झलक है, जो आधुनिकता और पारंपरिकता का संतुलन बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत करता है।
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