

आज़ादी के बाद भी ऐसे मामले सामने आते रहे, और इसी में सबसे चर्चित आख़िरी घटना रूप कंवर (Roop Kanwar) का मामला था।
18 साल की रूप कंवर को 4 सितंबर 1987 को उनके पति की चिता पर जलाकर सती (Sati) किया गया था।
इस महिमामंडन के कारण 45 लोगों पर केस दर्ज किया गया जिनमें कुछ नेता और उनके ससुराल वाले भी शामिल थे।
भारत ने लगभग 79 साल पहले ब्रिटिश शासन से आज़ादी हासिल की, लेकिन आज भी एक सवाल मन में उठता है कि क्या वह आज़ादी सबके लिए एक समान थी ? खासकर उन महिलाओं के लिए, जिनकी ज़िंदगी समाज की पुरानी परंपराओं में बंधी रहती थी। भारत के कई राज्यों में जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बंगाल क्षेत्रों में सती प्रथा देखने को मिलती थी, जहाँ विधवा महिला को उसके पति की चिता पर जिंदा जला दिया जाता था। कुछ महिलाएँ मजबूरी में यह कदम उठाती थीं, तो कुछ के पास कोई रास्ता नहीं होता था, और कई महिलाओं को ज़बरदस्ती आग में उतार दिया जाता था।
आज़ादी के बाद भी ऐसे मामले सामने आते रहे, और इसी में सबसे चर्चित आख़िरी घटना रूप कंवर (Roop Kanwar) का मामला था। राजस्थान (Rajasthan) के सीकर ज़िले (Sikar district) के देवराला गाँव (Deorala village) की 18 साल की रूप कंवर को 4 सितंबर 1987 को उनके पति की चिता पर जलाकर सती (Sati) किया गया था, जबकि उनकी शादी को मुश्किल से कुछ महीने हुए थे। उनके पति के परिवार का दावा था कि रूप ने अपनी मर्ज़ी से सती होने का निर्णय लिया था, लेकिन इस बात पर लोगों ने कड़े सवाल उठाए और यहाँ तक कि उनके अपने माता-पिता को भी बेटी की मौत का पता अगले दिन अख़बार (Paper) से लगा, जिससे इस घटना पर शक और गहरा हो गया। घटना के बाद गाँव में सती को लेकर जश्न मनाए गए, लोगों ने ‘सती माता’ के नारे लगाए और बाद में उनके नाम का मंदिर भी बना दिया गया, जहाँ आज भी लोग नारियल और चुनरी चढ़ाते हैं।
इस महिमामंडन के कारण 45 लोगों पर केस दर्ज किया गया जिनमें कुछ नेता और उनके ससुराल वाले भी शामिल थे। लेकिन एक-एक करके ज्यादातर लोग सबूतों की कमी के कारण बरी होते गए, सती के महिमामंडन के मामले में शामिल 45 लोगों में से 25 लोगों को वर्ष 2004 में बरी कर दिया गया। 2004 में बरी किए गए लोगों में दो प्रमुख नाम थे पूर्व बीजेपी मंत्री, राजेंद्र राठौड़ (Rajendra Rathore) और कांग्रेस के प्रताप सिंह खाचरियावास (Pratap Singh Kachariyawas), हाल ही में सती का यह आख़िरी दर्ज मामला एक बार फिर सुर्खियों में आया, क्योंकि महिमामंडन मामले में बचे हुए अंतिम आरोपियों को अक्टूबर 2024 में बरी कर दिया गया, जबकि चार लोग अब भी फरार हैं।
इस घटना के बाद सरकार ने सती प्रथा रोकने के लिए आयोग अधिनियम, 1987 बनाया, जिसमें सती (Sati) करने और उसका महिमामंडन (Glorification) करने वालो पर सख़्त सज़ा का प्रावधान है। यहाँ तक कि सिर्फ़ सती का जश्न मनाने पर भी लोगों को सात साल तक की जेल और 30,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है। इससे पहले ब्रिटिश काल में 1829 में लॉर्ड विलियम बेंटिंक ने भी सती को “मानवता के खिलाफ़” बताकर इस पर प्रतिबंधित लगाया था।
रूप कंवर (Roop Kanwar) की कहानी सिर्फ एक दुखद घटना नहीं थी, बल्कि भारतीय समाज के सामने रखा गया एक उजला आईना है। एक ऐसा आईना जो दिखाता है कि हमारी परंपराएँ कभी-कभी मनुष्यता को कुचलने का काम करती हैं, और हम उन्हें संस्कृति का नाम देकर स्वीकार कर लेते हैं। यह कहानी हम भारतीयों से पूछती है कि क्या संस्कृति का संरक्षण महिलाओं की मौत पर आधारित होना चाहिए? क्या परंपरा इतनी पवित्र है कि उसके नाम पर एक इंसान की जान ले ली जाए? और अगर आज भी किसी समाज में किसी लड़की के जीने का अधिकार उसकी शादी, पति और परिवार की इच्छा पर टिका है, तो क्या वह समाज सच में आज़ाद है ?