बिहार के नदियों में पानी की जगह दिख रहे हैं रेत, जिससे खेती और पशुपालन में आ रही है बाधा

ये नदियां ही बिहार की जान हैं। इस कृषि प्रधान राज्य में खेती-किसानी और पशुपालन नदियों और जलस्रोतों पर निर्भर हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश इस गंभीर संकट को देश के आम चुनाव में इस बार भी मुद्दा नहीं बनाया गया।
60 Rivers of Bihar dried up : कहीं-कहीं तो 50 फीट नीचे चला गया है। इससे अब पेयजल संकट पैदा हो गया है। (Wikimedia Commons)
60 Rivers of Bihar dried up : कहीं-कहीं तो 50 फीट नीचे चला गया है। इससे अब पेयजल संकट पैदा हो गया है। (Wikimedia Commons)

60 Rivers of Bihar dried up : इस बार बैशाख महीने में ही बिहार की नदियां सूखने लगी हैं। इन नदियों में पानी की जगह अब केवल रेत नजर आ रहे हैं। अब तक पांच दर्जन से अधिक नदियां सूख चुकी हैं। पिछले पांच-छह वर्षों से राज्य में गर्मी का मौसम आते ही नदियों के सूखने का सिलसिला आरंभ हो जाता है। इस साल यह समस्या और विकराल बनकर सामने आगया है। ये नदियां ही बिहार की जान हैं। इस कृषि प्रधान राज्य में खेती-किसानी और पशुपालन नदियों और जलस्रोतों पर निर्भर हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश इस गंभीर संकट को देश के आम चुनाव में इस बार भी मुद्दा नहीं बनाया गया। किसी भी पक्ष से न तो इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया जा रहा और न इन्हें बचाने की पहल का कोई ठोस वादा किया जा रहा है।

क्या है सूखने की वजह

इन नदियों की सूखने की सबसे बड़ी वजह यह है कि नदियों की पेट गाद से भर जाती है। इससे नदियों की काया लगातार दुबली होती जा रही है। पानी को अपनी पेट में जमा करने की इनकी क्षमता कम होती गई है। इसके साथ ही नदियों के बड़े भूभाग पर अतिक्रमण भी पानी के सूखने का कारण है। कई इलाकों में नदियों एवं जलस्रोतों का किनारा भरकर लोग घर बना रहे हैं। आबादी बढ़ने के कारण नदियों के किनारे बसे शहरों में खासतौर से यह समस्या भयावह बन गई है। अतिक्रमण के कारण नदियों के पाट सिकुड़ गये हैं। कई जगहों पर तो प्रवाह बंद हो गया है। कहीं तो नदियों का इस्तेमाल डंपिंग जोन के रूप में भी हो रहा है।

अवैध बालू खनन ने भी नदियों को संकट में डाला है।(Wikimedia Commons)
अवैध बालू खनन ने भी नदियों को संकट में डाला है।(Wikimedia Commons)

झेलनी पड़ रही हैं बहुत सी परेशानियां

नदियों के सूखने से कई दुष्प्रभाव सामने आए हैं। भू-जल स्तर अप्रत्याशित रूप से नीचे गिर रहा है। कहीं-कहीं तो 50 फीट नीचे चला गया है। इससे अब पेयजल संकट पैदा हो गया है। कुआं, तालाब, आहर-पईन सुखना आरंभ हो गया है। अब तो नहरों में भी पानी नहीं है। इन जल स्रोतों में पानी पहुंचने के रास्ते अतिक्रमण कर अवरुद्ध कर दिए गए हैं। इस कारण अब सिंचाई के अभाव में खेती किसानी पर बुरा असर पड़ रहा है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि खेतों की नमी कम हो रही है। इसके साथ ही लोगों के स्वास्थ्य तथा उसकी दिनचर्या पर भी नदियों के सूखने का गंभीर प्रभाव पड़ा है। कई इलाकों में जलस्तर नीचे चले जाने से चापाकल बंद हो गए हैं।

क्या है इसका उपाय?

जल विशेषज्ञ दिनेश मिश्रा व आर. के. सिन्हा के अनुसार जलवायु परिवर्तन, अनियमित एवं कम बारिश, गाद भरते जाना और नदियों के मूल स्रोत से पानी नहीं मिलने से नदियां संकट में हैं। नदियों के असमय सूखने का बड़ा कारण जंगलों का अंधाधुन कटना भी है। अवैध बालू खनन ने भी नदियों को संकट में डाला है। ये नदियां नेपाल से आती हैं। नेपाल सरकार से नदियों के जलप्रबंधन पर बातचीत करके इसका हल निकाला जा सकता है। इससे दोनों देशों को फायदा होगा।

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