बिहार का अनोखा नागपंचमी मेला : गले में सांप, मुंह में विषधर और आस्था की अद्भुत झलक !

बिहार के समस्तीपुर (Samastipur) जिले में नागपंचमी (Nagpanchami Fair) पर लगने वाला सिंघिया घाट (Singhia Ghat) का मेला आस्था का अनोखा पर्व है। यहां लोग जिंदा सांपों को गले में डालते हैं, मुंह में पकड़कर करतब दिखाते हैं और पूजा करते हैं। यह परंपरा सौ साल से भी पुरानी है और आज भी जीवित है।
समस्तीपुर के सिंघिया घाट पर नागपंचमी के दिन सांपों संग निकलती है अनोखी शोभा यात्रा।
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समस्तीपुर के सिंघिया घाट पर नागपंचमी के दिन सांपों संग निकलती है अनोखी शोभा यात्रा। (Sora AI)
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एक अनोखा मेला जो डर नहीं, आस्था सिखाता है

बिहार के समस्तीपुर जिले के विभूतिपुर प्रखंड में नागपंचमी के अवसर पर एक ऐसा मेला लगता है जो अपने आप में बेहद अनोखा और रोमांचकारी है। यह मेला सिंघिया घाट (Singhia Ghat) पर आयोजित होता है, जहां लोग जिंदा जहरीले सांपों के साथ खुलेआम खेलते नजर आते हैं। कहीं गले में सांप लिपटा है, तो कहीं लोग उन्हें हाथों में उठाकर नदी की ओर बढ़ते हैं। कुछ लोग तो सांप को अपने मुंह में पकड़कर करतब भी दिखाते हैं। यह दृश्य जितना अचंभित करता है, उतना ही इस मेले की आस्था और परंपरा से लोगों का गहरा जुड़ाव भी दिखाता है। यह सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि सदियों से चली आ रही एक गहरी धार्मिक परंपरा है जो आज भी मिथिला क्षेत्र में जीवित है।

भक्त विषहरी माता का नाम लेकर ज़िंदा विषैले सांपों को मुंह में पकड़कर दिखाते हैं हैरतअंगेज़ करतब।
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भक्त विषहरी माता का नाम लेकर ज़िंदा विषैले सांपों को मुंह में पकड़कर दिखाते हैं हैरतअंगेज़ करतब। (Sora AI)

पूजा के साथ होती है मेले की शुरुआत

नागपंचमी (Nagpanchami Fair) के दिन यह मेला मां भगवती के मंदिर से पूजा-अर्चना के साथ शुरू होता है। मंदिर में भक्त पहले पूजा करते हैं और फिर शोभा यात्रा के रूप में सिंघिया घाट (Singhia Ghat) तक पहुंचते हैं। इस यात्रा के दौरान लोग सांपों को अपने गले में माला की तरह डालकर चलते हैं। दृश्य देखकर एक पल को लगता है कि जैसे सैकड़ों लोग नागों के साथ किसी अलौकिक दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं। यह मेला लगभग एक किलोमीटर लंबी लाइन में चलता है, जहां हर किसी के पास कम से कम एक जीवित सांप होता है। बच्चे, युवा, महिलाएं और बुजुर्ग, सभी इसमें भाग लेते हैं। कोई डर नहीं, कोई हिचक नहीं, सिर्फ आस्था की झलक दिखाई देती है।

इस मेले की सबसे अद्भुत बात यह है कि कुछ भक्त विषैले सांपों को अपने मुंह में पकड़कर करतब दिखाते हैं। भगत राम कुमार महतो और उनके जैसे कई अनुभवी भक्त, माता विषहरी का नाम लेकर सांपों के साथ अद्भुत तरीके से खेलते हैं। यह दृश्य देखना किसी जादू से कम नहीं होता। ये लोग बूढ़ी गंडक नदी के पुल पर पहुंचते हैं और वहां से नदी में उतरते हैं। स्नान करने के बाद माता विषहरी की पूजा करते हैं, उनके नाम का जयकारा लगाते हैं और फिर दर्जनों जिंदा सांपों को एक-एक करके पानी से बाहर निकालते हैं। पूजा के बाद इन सभी सांपों को फिर से जंगल में छोड़ दिया जाता है।

इस मेले में महिलाओं की भागीदारी भी बहुत विशेष होती है। वो नागदेवता और माता विषहरी की विशेष पूजा करती हैं। विशेषकर वो महिलाएं जो संतान प्राप्ति की इच्छा रखती हैं, वो गहवर (नागों के वास स्थान) में जाकर झाप (परंपरागत पूजा की थाली) और प्रसाद चढ़ाती हैं। स्थानीय मान्यता है कि नागपंचमी के दिन की गई सच्चे मन की पूजा से विषधर माता सभी इच्छाएं पूरी करती हैं। मन्नत पूरी होने के बाद अगली नागपंचमी (Nagpanchami Fair) पर महिलाएं विशेष पूजा कर गहवर में चढ़ावा चढ़ाती हैं।

मेले में हर उम्र के लोग गले में सांप लपेटे आस्था के रंग में डूबे नजर आते हैं।
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मेले में हर उम्र के लोग गले में सांप लपेटे आस्था के रंग में डूबे नजर आते हैं। (Sora AI)

मिथिला की सैकड़ों साल पुरानी परंपरा

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मेला सौ साल से भी अधिक पुराना है। इसे मिथिला क्षेत्र का सबसे प्रसिद्ध सांप मेला माना जाता है। यह परंपरा (Mithila tradition) विभूतिपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों में आज भी पूरी श्रद्धा और उल्लास से निभाई जाती है। यहां नागदेवता की पूजा सिर्फ डर या किसी लाभ के लिए नहीं, बल्कि गहरी भक्ति और पारिवारिक परंपरा के रूप में होती है। इस मेले में समस्तीपुर के अलावा खगड़िया, सहरसा, बेगूसराय और मुजफ्फरपुर जैसे जिलों से भी हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं।

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आम तौर पर सांपों को देखकर लोग डर जाते हैं, लेकिन इस मेले में सांप आस्था के प्रतीक होते हैं। लोग उन्हें सिर झुकाकर प्रणाम करते हैं, गले में डालते हैं और उन्हें पानी से निकालते हुए ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे की वो उनके अपने परिवार के सदस्य हों। न कोई विष से डरता है, और न डसने का भय सताता है। यह आस्था और परंपरा का ऐसा अद्भुत संगम है जो विज्ञान और तर्क से परे लगता है।

हालांकि यह मेला धार्मिक दृष्टि से बेहद समर्पित और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है, लेकिन इसमें शामिल गतिविधियाँ वन्य जीव संरक्षण कानूनों के अंतर्गत आती हैं। इसलिए अब वन विभाग की नजर भी इस मेले पर होती है। हाल ही के वर्षों में सरकार और वन्यजीव विभाग ने चेतावनी दी है कि जंगली सांपों को पकड़ना और उनके साथ ऐसे सार्वजनिक प्रदर्शन करना वन्यजीव अधिनियम का उल्लंघन है। हालांकि, अभी भी परंपरा के नाम पर यह मेला पहले की तरह ही भव्यता से मनाया जाता है।

मिथिला की यह सदियों पुरानी परंपरा आज भी उतनी ही श्रद्धा और उत्साह से निभाई जाती है।
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मिथिला की यह सदियों पुरानी परंपरा आज भी उतनी ही श्रद्धा और उत्साह से निभाई जाती है। (Sora AI)

निष्कर्ष

सिंघिया घाट (Singhia Ghat) का यह नागपंचमी मेला (Nagpanchami Fair) न सिर्फ मिथिला (Mithila tradition) की सांस्कृतिक विरासत का जीवंत उदाहरण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे भारतीय समाज में परंपरा और भक्ति भावनाओं के माध्यम से प्रकृति और जीवों के साथ गहरा संबंध बना रहता है। यह मेला हमें यह सिखाता है कि सांप जैसे जहरीले जीव भी श्रद्धा और भक्ति के माध्यम से पूजनीय बन सकते हैं। डर को आस्था में बदल देने वाला यह आयोजन सचमुच में बिहार की संस्कृति का एक अद्भुत चमत्कार है। [Rh/PS]

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