
लद्दाख (Ladakh), जो हमेशा अपनी शांत वादियों और बर्फ़ से ढके पहाड़ों के लिए जाना जाता है, लेकिन अब वही लद्दाख आग और अशांति की वजह से चर्चा में आ गया है। राज्य का दर्जा और संवैधानिक सुरक्षा की मांग को लेकर चल रहा यह आंदोलन हाल ही के दिनों में अचानक हिंसा (Violence) में बदल गया। इस झड़प में पाँच लोगों की मौत हो गई और करीब 59 लोग घायल हुए, जिनमें 30 पुलिसकर्मी भी शामिल थे। यह घटना साल 1989 के बाद लद्दाख की सबसे बड़ी और खतरनाक हिंसा बताई जा रही है।
लद्दाख (Ladakh) एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस लंबे समय से लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची का विस्तार देने की मांग कर रहे हैं। इन मांगों को लेकर लगातार प्रदर्शन हो रहे थे और पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) भी इन प्रदर्शनों का चेहरा बने हुए थे। उन्होंने 15 दिन की भूख हड़ताल की थी, ताकि सरकार तक शांतिपूर्ण ढंग से संदेश पहुँच सके। लेकिन हाल ही में लेह की सड़कों पर हालात अचानक बिगड़ गए, और बीजेपी दफ्तर के बाहर प्रदर्शनकारियों ने वाहनों में आग लगा दी, उसके बाद पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों ने हालात संभालने के लिए आंसू गैस के गोले दाग दिए। आपको बता दें इस भीड़ ने कई सरकारी दफ़्तरों और एक पुलिस वाहन में भी आग लगा दी। देखते ही देखते लेह में आग और धुएँ के गुबार फैल गए।
इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने देर रात एक बयान जारी कर इस हिंसा के लिए सीधे तौर पर सोनम वांगचुक को ज़िम्मेदार ठहराया। मंत्रालय ने कहा कि वांगचुक ने अपने भाषणों में अरब स्प्रिंग और नेपाल के Gen-Z आंदोलन जैसे उदाहरण देकर युवाओं को भड़काया गया है। उनके मुताबिक, 24 सितंबर को सुबह लगभग 11:30 बजे वांगचुक के उकसाने वाले भाषण के बाद ही भीड़ ने हिंसा की शुरुआत की।
सरकार ने दावा किया कि लद्दाख की मांगों पर पहले से सकारात्मक बातचीत चल रही थी, और हाई पावर कमिटी और उप-समिति के साथ कई बैठकें हो चुकी थीं। इसके बाद अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण 45% से बढ़ाकर 84% कर दिया गया, और स्थानीय भाषाओं भोटी और पुर्गी को आधिकारिक दर्जा मिला फिर 1,800 नौकरियों की भर्ती भी शुरू हुई थी। लेकिन सरकार का आरोप है कि कुछ "राजनीतिक (Politics) रूप से प्रेरित लोग" इस प्रगति से खुश नहीं थे और उन्होंने बातचीत को पटरी से उतारने की कोशिश की।
हिंसा (Violence) के दौरान पुलिस और सुरक्षाबलों पर जमकर पथराव हुआ, और करीब 30 पुलिस और सीआरपीएफ जवान घायल भी हो गए। हालात बेकाबू होते देख पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। इस गोलीबारी में पाँच लोगों की मौत हो गई, आपको बता दें सूत्रों का कहना है कि मृतकों की संख्या और भी बढ़ सकती है क्योंकि कुछ घायलों की हालत बेहद गंभीर होती जा रही है। इसके बाद हिंसा के तुरंत बाद प्रशासन ने लेह में कर्फ़्यू लागू कर दिया और इंटरनेट सेवाएँ भी बंद कर दी।
हिंसा के बाद सोनम वांगचुक ने अपनी भूख हड़ताल ख़त्म कर दी और एक बयान जारी करके युवाओं से शांति बनाए रखने की अपील की। उन्होंने कहा, कि "युवाओं से मेरा अनुरोध है कि हिंसा बंद करें, क्योंकि इससे आंदोलन को ही नुकसान पहुँच सकता है। पिछले पाँच साल से हमने जो भी कदम उठाए हैं, वो हमेशा शांतिपूर्ण रहे हैं। लेकिन आज जो हुआ है, वह बेहद दुखद है।" यह बिलकुल सत्य है जो हुआ है इसका कल्पना भी शायद कभी किसी ने कभी नहीं किया होगा, उन्होंने साफ़ कर किया कि आंदोलन का मकसद सरकार को जगाना था, न कि हिंसा फैलाना। हालांकि गृह मंत्रालय का कहना है कि वांगचुक ने हिंसा को रोकने की कोई खास कोशिश भी नहीं की थी।
इस पूरी घटना पर राजनीति (Politics) भी गरमा गई है, और बीजेपी ने हिंसा (Violence) के पीछे कांग्रेस की "साज़िश" बताई है, पार्टी का आरोप है कि कांग्रेस देश में अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर रही है और लद्दाख को "नेपाल और बांग्लादेश जैसी स्थिति' में धकेलना चाहती है। वहीं कांग्रेस और विपक्षी दलों का कहना है कि केंद्र सरकार लोगों की वैध मांगों को दबाने के लिए आंदोलनकारियों को बदनाम कर रही है।
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यह घटना लद्दाख (Ladakh) के इतिहास में पहले भी घट चुकी है और यह घटना इतिहास में घटी उस हिंसा की याद दिलाती है। साल 1989 में केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मांगने वाले आंदोलन के दौरान पुलिस फायरिंग में तीन लोगों की मौत हुई थी, और अब 2025 में फिर से वही कहानी और ज़्यादा खतरनाक रूप में दोहराते नजर आ रही है। उसके बाद सरकार ने 25 और 26 सितंबर को लद्दाख के नेताओं से बैठकें तय की हैं और 6 अक्टूबर को हाई पावर कमिटी की बैठक होगी। लेकिन इस हिंसा ने लोगों और सरकार के बीच विश्वास की खाई और गहरी कर दी है। लोग अब सवाल उठा रहे हैं कि क्या उनकी आवाज़ सिर्फ शांतिपूर्ण तरीक़े से सुनी जाएगी या फिर ऐसी हिंसा और बढ़ेगी ?
निष्कर्ष
लद्दाख (Ladakh) की आग अब सिर्फ़ बर्फ़ीली वादियों तक सीमित नहीं रही, बल्कि देशभर में गूँज रही है। सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) पर हिंसा (Violence) भड़काने का आरोप गंभीर है, लेकिन उनके समर्थकों का कहना है कि यह आंदोलन हमेशा शांतिपूर्ण रहा है। अब देखने वाली बात यह होगी कि आने वाले दिनों में सरकार और जनता के बीच संवाद से समाधान निकलता है या फिर यह टकराव और गहरा होता है। लद्दाख का सवाल अब सिर्फ़ राज्य का दर्जा नहीं, बल्कि लोगों के भरोसे, पहचान और अस्तित्व से जुड़ गया है। [Rh/PS]