भारत का ऐसा समाज जहां सत्ता, संपत्ति और सम्मान सब कुछ है महिलाओं के नाम!

कल्पना करिए एक ऐसा समाज जहां महिलाओं का राज चलता है। महिलाओं के आदेश उनके, डिसीजंस उनके विचार और उनके द्वारा तय की गई शर्तों से ही घर और समाज आगे बढ़ता है। हालांकि भारत जैसे पितृसत्तात्मक देश में एक महिला का मुख्य होना थोड़ी अजीब सी बात लगती है क्योंकि हमेशा से हमें पितृसत्तात्मकता के साए में पाला पोसा और बड़ा किया गया है लेकिन सोचिए अगर घर के सभी बड़े डिसीजन घर की महिलाएं करें तो वह समाज कैसा होगा?
कल्पना करिए एक ऐसा समाज जहां महिलाओं का राज चलता है। [SORA AI]
कल्पना करिए एक ऐसा समाज जहां महिलाओं का राज चलता है। [SORA AI]
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कल्पना करिए एक ऐसा समाज जहां महिलाओं का राज चलता है। महिलाओं के आदेश उनके, डिसीजंस उनके विचार और उनके द्वारा तय की गई शर्तों से ही घर और समाज आगे बढ़ता है। हालांकि भारत जैसे पितृसत्तात्मक देश (Patriarchal country) में एक महिला का मुख्य होना थोड़ी अजीब सी बात लगती है क्योंकि हमेशा से हमें पितृसत्तात्मकता के साए में पाला पोसा और बड़ा किया गया है लेकिन सोचिए अगर घर के सभी बड़े डिसीजन घर की महिलाएं करें तो वह समाज कैसा होगा? वैसे महिलाओं का मुख्य होना यह किसी कल्पना की बात नहीं है क्योंकि भारत में एक जाति ऐसी है जो पूरी तरह से मातृ सत्तात्मक (Matriarchal Society) है यानी जहां महिलाओं का राज चलता है महिलाओं के द्वारा ही मुख्य आदेश और सभी बड़े निर्णय लिए जाते हैं। तो चलिए मेघालय की ऊंची पहाड़ियों में बसी इस जाति के बारे में जानते और समझते हैं।

भारत में एक जाति ऐसी है जो पूरी तरह से मातृ सत्तात्मक है यानी जहां महिलाओं का राज चलता है [Pixabay]
भारत में एक जाति ऐसी है जो पूरी तरह से मातृ सत्तात्मक है यानी जहां महिलाओं का राज चलता है [Pixabay]

कौन हैं ये महिलाएं जिनका चलता है राज?

हम बात कर रहें है खासी समुदाय (Khasi Community) की। भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय (Khasi Community Of Meghalaya) में मुख्य रूप से पाई जाने वाली यह समुदाय भारत के अन्य समुदायों से बिल्कुल अलग है। यह समुदाय आस-पास के आसाम (Khasi Community Of Assam) और बांग्लादेश (Khasi Community Of Bangladesh) के सीमावर्ती इलाकों में भी पाए जाते हैं। आपको बता दें कि ये लोग तिबेटो-हिमालयन-बुरमानी नस्ल से ताल्लुक रखते हैं और भाषाई रूप से मों-जर्मन परिवार की भाषा बोलते हैं। इनकी पौराणिक कथाओं में 'सात झोपड़ियाँ' और ‘स्वर्ग की सीढ़ी’ जैसे तत्व शामिल हैं, जो उनके सांस्कृतिक मूल को दर्शाते है।

भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय में मुख्य रूप से पाई जाने वाली यह समुदाय भारत के अन्य समुदायों से बिल्कुल अलग है। [X]
भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय में मुख्य रूप से पाई जाने वाली यह समुदाय भारत के अन्य समुदायों से बिल्कुल अलग है। [X]

अंग्रेज़ों के शासन के बाद, खासी पहाड़ी कई रियासतों में बंट गईं, लेकिन इनकी पहचान आज भी उसी लोकविश्वास और भाषा पर आधारित है। खासी लोगों (Khasi Community) की संख्या तकरीबन 9 लाख के करीब है। इनकी ज्यादातर आबादी मेघालय (Meghalaya) में रहती है। इनकी आबादी का कुछ हिस्सा असम, मणिपुर और पश्चिम बंगाल (West Bengal) में रहता है। यह समुदाय झूम खेती करके अपनी आजीविका चलाता है। संगीत के साथ इसका एक गहरा जुड़ाव है। ये विभिन्न तरह के वाद्य यंत्रों जैसे गिटार, बांसूरी, ड्रम आदी को गाते बजाते हैं।

एक ऐसा समाज जहां मिलता है महिलाओं को कई अधिकार

मेघालय की ऊंची पहाड़ियों पर पाए जाने वाली खांसी समुदाय (Khasi Community) एक काफी महत्वपूर्ण जाति है। यह एक ऐसा समाज है जहां की महिलाएं घर के साथ-साथ बाहरी काम भी संभालती हैं बाजार हो या फिर खेत हर जगह केवल महिलाएं ही नजर आते हैं यहां तक की पुरुष इन महिलाओं को देखकर सम्मान के साथ सर झुकाते हैं जैसे यह कोई रानी हो। खासी जनजाती (Khasi Community) के अलावा मेघालय की अन्य दो जनजातियों (गारो और जयंतिया) में भी यही प्रथा है। इन दोनों जनजातियों में यही व्यवस्थाएं चलती है। आइए जानतें है इनकी प्रथाओं को।

महिलाएं घर के साथ-साथ बाहरी काम भी संभालती हैं बाजार हो या फिर खेत हर जगह केवल महिलाएं ही नजर आते हैं [X]
महिलाएं घर के साथ-साथ बाहरी काम भी संभालती हैं बाजार हो या फिर खेत हर जगह केवल महिलाएं ही नजर आते हैं [X]

मातृ-वंशानुक्रम (Matrilineal System)

खासी समाज (Khasi Society) दुनिया के सबसे जीवित मातृ-विषयक सामाजिक ढाँचों में शामिल है। यहां परिवार की विरासत सबसे छोटी बेटी को मिलती है, जिसे ‘का खद्दू’ कहा जाता है । यही बेटियाँ कूल (वंश) का नाम, जमीनी संपत्ति, और घर की जिम्मेदारी संभालती हैं। अगर परिवार में कोई बेटी न हो, तो बेटी-दामाद या बेटी-दामाद-वाला को गोद लेकर संपत्ति की जिम्मेदारी सौंपी जाती है।

खासी समाज दुनिया के सबसे जीवित मातृ-विषयक सामाजिक ढाँचों में शामिल है। [Pixabay]
खासी समाज दुनिया के सबसे जीवित मातृ-विषयक सामाजिक ढाँचों में शामिल है। [Pixabay]

मातृ-स्थानिक आरक्षण (Matrilocal Residence)

मातृ-स्थानिक निवास वह व्यवस्था है जिसमें विवाह के बाद पति, पत्नी के घर में आकर रहता है। खासी समाज में यह परंपरा बहुत मजबूत है। यहां बेटियां सिर्फ घर की देखरेख ही नहीं करतीं, बल्कि विरासत, ज़िम्मेदारी और सामाजिक मान्यता की असली वाहक होती हैं। खासकर सबसे छोटी बेटी (Khun Khadduh) को संपत्ति और घर की ज़िम्मेदारी दी जाती है। जब खासी (Khasi Tribe Marriage) लड़कियों की शादी होती है, तो लड़का दुल्हन के घर में ही जाकर बसता है। यहां तक कि उनके बच्चों की भी पहचान मां के कुल नाम से होती है, पिता का नाम सिर्फ एक सामाजिक पहचान तक सीमित रह जाता है। पुरुष, पत्नी के घर में रहते हैं और उनके मायके में लौटने की अनुमति होती है, लेकिन उन्हें अपने बच्चों पर कोई अधिकार नहीं होता जब तक कि वे पत्नी के साथ न रहें।

सामाजिक-आर्थिक भूमिका

किसान से लेकर दुकानदार तक, बाजार की बड़ी हिस्सेदारी महिलाओं के पास होती है। जैसे शिलांग के इवडूह मार्केट में महिलाएं अपनी दुकानें खुद चलाती हैं। वे आर्थिक निर्णय भी लेती हैं, धन संभालती हैं, और परिवार की सेवर होती हैं।वे खेती, व्यापार, हस्तशिल्प, और छोटे उद्योगों में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं। इस तरह, खासी महिलाएं (Khasi Women) न केवल घर की जिम्मेदारी संभालती हैं, बल्कि आर्थिक निर्णयों और सामाजिक व्यवस्था में भी मुख्य भूमिका निभाती हैं।

किसान से लेकर दुकानदार तक, बाजार की बड़ी हिस्सेदारी महिलाओं के पास होती है। [X]
किसान से लेकर दुकानदार तक, बाजार की बड़ी हिस्सेदारी महिलाओं के पास होती है। [X]

हालांकि पारंपरिक ग्राम सभा (Dorbar Shnong) में पुरुषों की भागीदारी अधिक रही है, फिर भी महिलाओं का प्रभाव सामाजिक ढांचे में अत्यंत गहरा और सशक्त है। यह सामाजिक संरचना खासी समाज को भारत के अन्य समाजों से अलग और प्रेरणादायक बनाती है।

पुरखों की परम्परा और धार्मिक अधिकार

खासी पौराणिक कथाओं के अनुसार, समाज ने धीरे-धीरे यह परंपरा इसलिए अपनाई क्योंकि पुरुष अक्सर युद्ध में चले जाते थे या प्राण त्याग देते थे। तब महिलाओं को ही परिवार की दीवार खड़ी करनी पड़ी, और समाज ने इसे स्वीकृति दी। इसके साथ ही धार्मिक, सामाजिक उत्तरदायित्व भी उनके कंधों पर आए।

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खासी समाज हमें यह सिखाता है कि जब महिलाएं मोलिकाधिकार (inheritance), सम्मान और आर्थिक स्वतंत्रता संभालती हैं, तब पूरे समाज में संरचना पटरी पर रहती है। यह न सिर्फ महिलाओं को मजबूत बनाता है, बल्कि सत्यापित करता है कि पितृसत्ता के उलट महिला-सत्ता भी एक स्थिर, सम्मानजनक व्यवस्था बन सकती है। आज, जब दुनिया जेंडर इक्वैलिटी और महिला सशक्तिकरण पर जोर दे रही है, खासी समाज पहले ही इस दिशा में एक जीवित नमूना प्रस्तुत करता है। उनका संभवित भविष्य यह हो सकता है कि आधुनिकता के बीच महिला-मूलक सांस्कृतिक पहचान बची रहे और पुरुष भी इस समन्वय का सम्मान बनाए रखें। [Rh/SP]

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