छोटे गांव से उठी बड़ी सोच: पूजा का आविष्कार पहुंचा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव की छात्रा पूजा ने 'धूल रहित थ्रैशर' मशीन बनाकर राष्ट्रीय प्रतियोगिता में बाज़ी मारी। पूरे भारत से 60 विजेताओं में वह यूपी की इकलौती चयनित प्रतिभागी थीं। अब विज्ञान मंत्रालय उनके मॉडल को पेटेंट कराने की प्रक्रिया में जुटा है।
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले की छात्रा पूजा ने 'धूल रहित थ्रैशर' मशीन का मॉडल बनाया। [SORA AI]
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उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले की छात्रा पूजा ने 'धूल रहित थ्रैशर' मशीन का मॉडल बनाया। [SORA AI] (Sora AI)
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उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के एक छोटे से गांव की 17 वर्षीय पूजा ने वो कर दिखाया, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। खेतों में काम आने वाली एक आम मशीन को, जिसने किसान और मजदूरों की आंखों में धूल भर दी थी, उसी को पूजा एक ने ऐसा रूप दे दिया कि अब धूल नहीं उड़ेगी, बल्कि एक जगह जमा हो जाएगी।

यह "धूल रहित थ्रैशर" (Dust-free Thresher) न केवल पर्यावरण के लिए मददगार है, बल्कि खेतों में काम करने वाले मजदूरों के स्वास्थ्य को भी सुरक्षित बनाता है। पूजा के इस अनोखे आविष्कार को जब राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में प्रदर्शित किया गया, तो सभी दंग रह गए। और अब, इसी मॉडल को लेकर पूजा जापान के विज्ञान मेले में भारत का प्रतिनिधित्व करने जा रही हैं।

पूजा जब आठवीं कक्षा में तब उसने धूल रहित थ्रैशर बनाया था। साल 2023 में यह मॉडल राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए चुना गया, इस राष्ट्रीय प्रतियोगिता में पूरे भारत से कुल 60 प्रतिभागियों को विजेता चुना गया, लेकिन उत्तर प्रदेश से सिर्फ पूजा ही अकेली थीं, जिन्होंने अपना स्थान बनाया। पूजा के बनाए मॉडल को अब विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा पेटेंट कराया जा रहा है, ताकि इसका अधिकार सुरक्षित रहे और भविष्य में इसे बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया जा सके।

यह मॉडल राष्ट्रीय प्रतियोगिता में चुना गया, जहां पूरे भारत से केवल 60 प्रतिभागी विजेता बने।      (Sora AI)
यह मॉडल राष्ट्रीय प्रतियोगिता में चुना गया, जहां पूरे भारत से केवल 60 प्रतिभागी विजेता बने। (Sora AI)

सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस 'धूल रहित थ्रैशर' मशीन को बनाने का आइडिया पूजा को अचानक तब आया, जब उन्होंने खेतों में काम कर रही महिलाओं को थ्रैशिंग के दौरान उड़ती धूल से परेशान होते देखा। उसके बाद पूजा बताती हैं कि उनके गांव में जब भी थ्रैशिंग का काम होता था, तो उनके पिता और खेतों में काम करने वाले मज़दूर धूल के गुबार से परेशान हो जाते थे। आंखों में जलन, सांस की तकलीफ़ और कपड़ों में जमी गंदगी, ये सब आम बातें थीं।

एक दिन उन्होंने सोचा कि अगर यह धूल किसी डिब्बे में जमा हो जाए, तो कैसा रहेगा ? उसी समय उनके मन में यह विचार आया कि क्यों न ऐसी मशीन बनाई जाए, जो अनाज को साफ़-सुथरे ढंग से निकाले और धूल को एक जगह इकट्ठा कर ले। फिर एक दिन पूजा ने स्कूल की विज्ञान प्रदर्शनी के लिए एक छोटा सा मॉडल तैयार किया जिसमें एक ऐसा यंत्र लगाया गया जो थ्रैशिंग के दौरान उड़ने वाली धूल को एकत्र करने का काम करता है। इस मॉडल को देखकर पहले तो लोग चौंके, फिर तारीफें करने लगे।

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पूजा के माता-पिता खेती-किसानी करते हैं और आर्थिक रूप से बहुत साधारण स्थिति में हैं। लेकिन उन्होंने कभी अपनी बेटी के सपनों को छोटा नहीं समझा। पूजा खुद कहती हैं कि विज्ञान उनके लिए सिर्फ एक विषय नहीं, बल्कि बदलाव का जरिया है। गांव के शिक्षक भी गर्व से कहते हैं, “पूजा अब न केवल अपने गांव की, बल्कि पूरे देश की बेटियों के लिए एक मिसाल बन गई है।”

पूजा अकेली थीं जो उत्तर प्रदेश से विजेता बनीं, अब उनके मॉडल को विज्ञान मंत्रालय पेटेंट करवा रहा है।       (Sora AI)
पूजा अकेली थीं जो उत्तर प्रदेश से विजेता बनीं, अब उनके मॉडल को विज्ञान मंत्रालय पेटेंट करवा रहा है। (Sora AI)

एक सोच, जो धूल को भी समेट ले

पूजा की यह कहानी यह बताती है कि जुगाड़ और हिम्मत से बड़े-बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं। जहां बड़े-बड़े वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में बैठकर समस्याओं के हल ढूंढते हैं, वहीं एक छोटी सी लड़की, मिट्टी से लथपथ खेतों से उठकर ऐसा समाधान लेकर आती है जो सीधे आम लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाता है।

इस कहानी में सिर्फ विज्ञान नहीं, एक सपना भी है, जो अब उड़ान भर चुका है, जापान की ओर। [Rh/PS]

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