क्लास में इंसुलिन और ग्लूकोमीटर लेकर जा सकेंगे छात्र

बच्चों में टाइप-1 डायबिटीज(Diabetes) के खतरों को देखते हुए योगी सरकार ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण, भारत सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों को प्रदेश में लागू करने का निर्णय लिया है। इस संबंध में बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा सभी मंडलीय शिक्षा निदेशकों (Basic) एवं जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को निर्देशित किया गया है।
क्लास में इंसुलिन और ग्लूकोमीटर लेकर जा सकेंगे छात्र।(Wikimedia Commons)
क्लास में इंसुलिन और ग्लूकोमीटर लेकर जा सकेंगे छात्र।(Wikimedia Commons)

बच्चों में टाइप-1 डायबिटीज(Diabetes) के खतरों को देखते हुए योगी सरकार(Yogi Government) ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण, भारत सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों को प्रदेश में लागू करने का निर्णय लिया है। इस संबंध में बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा सभी मंडलीय शिक्षा निदेशकों (Basic) एवं जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को निर्देशित किया गया है।

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष द्वारा 0 से 19 वर्ष के छात्रों में टाइप-1 डायबिटीज रोग के नियंत्रण के लिए प्रदेश सरकार से कार्रवाई सुनिश्चित करने की अपील की गई थी। इसके बाद योगी सरकार ने बाल संरक्षण एवं सुरक्षा के संबंध में दिशानिर्देश जारी किए हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पत्र को योगी सरकार ने गंभीरता से लेते हुए बेसिक शिक्षा विभाग पर इस पर कार्रवाई सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।

महानिदेशक स्कूल शिक्षा विजय किरण आनंद(Vijay Kiran Anand) की ओर से संयुक्त शिक्षा निदेशक (Basic) गणेश कुमार को इस पर आवश्यक दिशा निर्देश जारी करने के लिए पत्र लिखा गया, जिसके बाद पूरे प्रदेश में बेसिक शिक्षा द्वारा संचालित विद्यालयों में इसे लागू किए जाने का निर्णय लिया गया है। इन निर्देशों के अनुसार चिकित्सक द्वारा सलाह दिए जाने पर टाइप-1 डायबिटीज वाले बच्चों को ब्लड शुगर की जांच करने, इंसुलिन(Insulin) का इंजेक्शन लगाने, मध्य सुबह या मध्य दोपहर का नाश्ता लेने या डायबिटीज एवं देखभाल गतिविधियां करने की अवश्यकता हो सकती है और शिक्षकों को परीक्षा के दौरान या अन्यथा भी कक्षा में इसे करने की अनुमति दी जानी चाहिए।

इसके अतिरिक्त, बच्चा चिकित्सीय सलाह(Doctor Advice) के अनुसार खेलों में भाग ले सकता है। अपने साथ चीनी की टैबलेट(Sugar Tablet) ले जाने की अनुमति दी जाए। दवाएं, फल, नाश्ता, पीने का पानी, कुछ बिस्किट, मूंगफली, सूखे फल परीक्षा हाल में शिक्षक के पास रखे जाएं जिससे कि आवश्यकता पड़ने पर परीक्षा के दौरान बच्चों को दिया जा सके। स्टाफ को बच्चों की परीक्षा हॉल में अपने साथ ग्लूकोमीटर(Glucometer) और ग्लूकोज परीक्षण स्ट्रिप्स(Glucose Examination Strips) ले जाने की अनुमति देनी चाहिए, जिन्हें पर्यवेक्षक(Invigilator) या शिक्षक(Teacher) के पास रखा जा सकता है। बच्चों को ब्लड शुगर(blood Sugar) का परीक्षण करने और आवश्यकतानुसार उपरोक्त वस्तुओं का सेवन करने की अनुमति दी जानी चाहिए।

क्लास में इंसुलिन और ग्लूकोमीटर लेकर जा सकेंगे छात्र।(Wikimedia Commons)
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सीजीएम (Continuous Glucose Monitoring), एफजीएम (Flash Glucose Monitoring) और इंसुलिन पंप(Insulin Pump) का उपयोग करने वाले बच्चों को परीक्षा के दौरान इन उपकरणों को रखने की अनुमति दी जानी चाहिए, क्योंकि वे बच्चों के शरीर से जुड़े होते हैं। यदि इनकी रीडिंग के लिए स्मार्टफोन की आवश्यकता पड़ती है तो यह स्मार्टफोन शिक्षक या पर्यवेक्षक को ब्लड शुगर के लेवल की मॉनिटरिंग के लिए दिया जा सकता है।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (IDF) के डायबिटीज एटलस 2021 के डेटा के अनुसार दुनियाभर में सर्वाधिक टाइप-1 डायबिटीज से पीड़ित बच्चों की संख्या भारत में है। साउथ ईस्ट एशिया(South East Asia) में 0 से 19 वर्ष के बीच इस बीमारी से जूझ रहे बच्चों की यह संख्या 2.4 लाख से अधिक हो सकती है। भारत में कुल 8.75 लाख लोग इससे जूझ रहे हैं।

टाइप-1 डायबिटीज से जूझ रहे लोगों को प्रतिदिन 3-5 बार इंसुलिन इंजेक्शन(Insulin Injection) लेने व 3-5 बार शुगर टेस्ट की आवश्यकता होती है। इसमें लापरवाही फिजिकल एवं मेंटल हेल्थ(Physical and Mental Health) के साथ ही अन्य चुनौतियों का कारक बन सकती है। बच्चे अपने एक तिहाई समय स्कूलों में बिताते हैं, ऐसे में स्कूलों की ड्यूटी बनती है कि टाइप-1 डायबिटीज से जूझ रहे बच्चों की स्पेशल केयर सुनिश्चित की जाए।(IANS/RR)

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