केदारनाथ मंदिर का इतिहास: भगवान शिव के स्वयंभू शिवलिंग और पावन धरा की रचना की कहानी !

केदारनाथ मंदिर और स्थल हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व रखता है। केदारनाथ मंदिर से हिंदुओं की आस्था जुड़ी हुई है। आइए केदारनाथ मंदिर का इतिहास और उससे जुड़ी अन्य बातें जानते हैं।
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केदारनाथ मंदिर का इतिहास: केदारनाथ मंदिर में स्थित स्वयंभू शिवलिंग बहुत ही पुराना एवं लोकप्रिय है। WiKimedia common
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Summary
  • केदारनाथ मंदिर का निर्माण 80वीं शताब्दी में द्वापर युग के काल में हुआ था।

  • इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली से किया गया है और इसके निर्माता पांडव वंश जनमेजय है।

  • केदारनाथ मंदिर में स्थित स्वयंभू शिवलिंग बहुत ही पुराना एवं लोकप्रिय है।

पांडव वंश से जुड़ा है केदारनाथ मंदिर का इतिहास

केदारनाथ मंदिर हिंदू धर्म में प्रचलित है तथा यह मंदिर भारत के राज्य उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। केदारनाथ मंदिर हिमालय पर्वत की गोद में स्थित 12 ज्योतिर्लिंग में शामिल है। इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली से किया गया है और इसके निर्माता पांडव वंश जनमेजय है। केदारनाथ मंदिर का निर्माण द्वापर युग में हुआ था। केदारनाथ मंदिर में स्थित स्वयंभू शिवलिंग बहुत ही पुराना एवं लोकप्रिय है।

केदारनाथ मंदिर का इतिहास

केदारनाथ मंदिर के इतिहास की बात की जाए तो यह मंदिर काफी ही पुराना है और विद्वानों एवं ऋषियों के अनुसार केदारनाथ मंदिर का निर्माण 80वीं शताब्दी में द्वापर युग के काल में हुआ था। यह मंदिर हिमालय के लगभग 6 फुट ऊंचे स्थान पर बनाया गया है। इस मंदिर के चारों ओर बर्फ के पहाड़ हैं। केदारनाथ मंदिर मुख्य रूप से पांच नदियों के संगम का मुख्य धाम माना जाता है और यह नदियां मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी है। आदि गुरु शंकराचार्य के समय काल से यहां के पुरोहित और ब्राह्मण स्वयंभू शिवलिंग की पूजा और आराधना करते आ रहे हैं। मंदिर के सामने मंदिर के पंडितों तथा यजमानों एवं तीर्थ यात्रियों के लिए धर्मशाला उपस्थित है। मंदिर के मुख्य पुरोहित के लिए मंदिर के आसपास भवन बना हुआ है।

केदारनाथ मंदिर वास्तु शिल्प

दीपक की ज्योति का रखरखाव मंदिर के पुरोहित सालों से करते आ रहे हैं ताकि यह अखंड दीपक की ज्योति सदैव मंदिर के भाग में और पूरे केदारनाथ धाम में अपने प्रकाश को बनाए रखें। मंदिर की दीवारों पर सुंदर एवं भव्य फूलों की आकृति को हस्तकला द्वारा उकेर कर चित्रित किया गया है।

रोजाना मंदिर के ज्योतिर्लिंग को प्राकृतिक रूप से स्नान कराया जाता है तथा उसके पश्चात घी का लेपन किया जाता है‌ एवं धूप अगरबत्ती और दीपक जलाकर आरती को आरंभ किया जाता है। संध्या काल के वक्त भगवान का श्रृंगार किया जाता है। भगवान तथा ज्योतिर्लिंग की पूजा के दौरान भक्त लोग केवल दूर से ही आरती का लाभ उठा सकते हैं।

केदारनाथ मंदिर की ऐतिहासिक कथा

केदारनाथ मंदिर के ऐतिहासिक कथा के बारे में अपनी ही मान्यताएं हैं। यहां पर सालों से शिव की आराधना करने वाले पुरोहित एवं विद्वान केदारनाथ मंदिर की ऐतिहासिक कथा का गुणगान करते हैं।

कहा जाता है कि केदारनाथ ज्योतिर्लिंग (Kedarnath Jyotirlinga) की स्थापना का ऐतिहासिक आधार तब निर्मित हुआ जब एक दिन हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार एवं महातपस्वी नर और नारायण तप कर रहे थे। उनकी तपस्या से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए तथा उनकी प्रार्थना के फल स्वरूप उन्हें आशीर्वाद दिया कि वह ज्योतिर्लिंग के रूप में सदैव यहां वास करेंगे।

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ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शंकर नंदी बैल के रूप में प्रकट हुए थे तो उनका धड़ से ऊपरी भाग काठमांडू में प्रदर्शित हुआ था तथा वहां अब पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर स्थापित है।Wikimedia common

केदारनाथ मंदिर के बाहरी भाग में स्थित नंदी बैल के वाहन के रूप में विराजमान एवं स्थापित होने का आधार तब बना जब द्वापर युग में महाभारत के युद्ध के दौरान पांडवों की विजय पर तथा भातर हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शंकर के दर्शन करना चाहते थे। इसके फलस्वरूप वह भगवान शंकर के पास जाना चाहते और उनका आशीर्वाद पाना चाहते थे परंतु भगवान शंकर उनसे नाराज थे। पांडव भगवान शंकर के दर्शन के लिए काशी पहुंचे परंतु भगवान शंकर ने उन्हें वहां दर्शन नहीं दिए।

इसके पश्चात पांडवों ने हिमालय जाने का फैसला किया और हिमालय तक पहुंच गए परंतु भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे इसलिए भगवान शंकर वहां से भी अंतर्ध्यान हो गए और केदार में वास किया। पांडव भी भगवान शंकर का आशीर्वाद पाने के लिए एकजुटता से और लगन से भगवान शंकर को ढूंढते ढूंढते केदार पहुंच गए। भगवान शंकर ने केदार पहुंचकर बैल का रूप धारण कर लिया था। केदार पर बहुत सारी बैल उपस्थित थी।

पांडवों को कुछ संदेह हुआ इसीलिए भीम ने अपना विशाल रूप धारण किया और दो पहाड़ों पर अपने पैर रख दिए भीम के इस रूप से भयभीत होकर बैल भीम के पैर के नीचे से दोनों पैरों में से होते हुए भागने लगे परंतु एक बैल भीम के पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं थी। भीम बलपूर्वक उस बैल पर हावी होने लगे परंतु वेल धीरे-धीरे अंतर्ध्यान होते हुए भूमि में सम्मिलित होने लगा परंतु भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। पांडवों के इस दृढ़ संकल्प और एकजुटता से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और तत्काल ही उन्हें दर्शन दिए। भगवान शंकर ने आशीर्वाद रूप में उन्हें पापों से मुक्ति का वरदान दिया। तब से ही नंदी बैल के रूप में भगवान शंकर की पूजा की जाती है।

ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शंकर नंदी बैल के रूप में प्रकट हुए थे तो उनका धड़ से ऊपरी भाग काठमांडू में प्रदर्शित हुआ था तथा वहां अब पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर स्थापित है। भगवान शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, भगवान शिव का मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में तथा भगवान शंकर की जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट हुई थी। इन्हीं विशेषताओं के फलस्वरुप श्री केदारनाथ को पंचकेदार भी कहा जाता है।

केदारनाथ मंदिर की यात्रा कैसे करें?

यदि आप केदारनाथ मंदिर के दर्शन करना चाहते हैं तो आपको उत्तराखंड में हर साल आयोजित होने वाली छोटा चार धाम यात्रा में शामिल होना होगा। छोटा चार धाम यात्रा में 4 मंदिरों की यात्रा कराई जाती है जिसमें विशेष रूप से केदारनाथ मंदिर भी शामिल है। केदारनाथ मंदिर के अलावा अन्य तीन मंदिर बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री है। हर वर्ष मंदिर के दर्शन करने की तिथि तय की जाती है और यह हिंदू पंचांग के अनुसार ओंकारेश्वर मंदिर के पुरोहितों द्वारा तय की जाती है।

केदारनाथ मंदिर के दर्शन की तिथि हर साल अक्षय तृतीया पर तथा महाशिवरात्रि के पर्व के दिन घोषित की जाती है तथा केदारनाथ मंदिर के दर्शन की अंतिम तिथि नवंबर दिवाली के बाद भाई दूज के दिन घोषित की जाती है। इसके फलस्वरूप केदारनाथ मंदिर के दर्शन अप्रैल से लेकर नवंबर माह तक किए जाते हैं।

केदारनाथ मंदिर में दर्शन का समय क्या है?

  1. केदारनाथ मंदिर के द्वार आम भक्तों के दर्शन के लिए सुबह 6:00 बजे खुलते हैं।

  2. मंदिर में दोपहर 3 से लेकर 5 बजे के बीच एक खास पूजा होती है तथा इसके बाद भगवान के विश्राम के लिए मंदिर के कपाट को बंद कर दिया जाता है।

  3. मंदिर के द्वार को पुनः सायं 5:00 बजे खुल जाते हैं जिसके फलस्वरूप आम जनता मंदिर में दर्शन कर सकती हैं। ‌

  4. सायंकाल में मंदिर में पांच मुख वाले भगवान शिव की प्रतिमा का साज सिंगार किया जाता है और संध्या काल की आरती का समय जो कि 7:30 से लेकर 8:30 बजे के बीच तय है जिसमें भगवान शिव की आरती की जाती है।

  5. आरती के पश्चात 8:30 बजे मंदिर के कपाट को बंद कर दिया जाता है।

  6. शीतकाल में केदारनाथ घाटी बर्फ से लग जाती है इसीलिए पुरोहितों द्वारा नवंबर 15 से लेकर शीतकाल के अंत यानी 14 या 15 अप्रैल तक केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।

  7. शीतकाल के दौरान भगवान शंकर की पांच मुख वाली प्रतिमा को उखीमठ में स्थापित किया जाता है।

  8. केदारनाथ मंदिर के दर्शन के लिए जनता शुल्क अदा करती है तथा इस रसीद के फलस्वरूप वह मंदिर में पूजा-अर्चना और भोग को चढ़ाती है।‌

भगवान शंकर की पूजा में मुख्य रूप से प्रातः कालिक पूजा, महाभिषेक पूजा, अभिषेक, रुद्राभिषेक षोडशोपचार पूजन, अष्टोंपाचार पूजन‌, संपूर्ण आरती, पांडव पूजा, गणेश पूजा, श्री भैरव पूजा, शिव सहस्त्रनाम आदि शामिल हैं।

निष्कर्ष

इस आर्टिकल में हमने आपको केदारनाथ मंदिर का इतिहास, ऐतिहासिक कथा, दर्शन का समय केदारनाथ मंदिर की वास्तुशिल्प आदि के बारे में जानकारी दी है।‌

OG

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