

1979 का ईरान मुल्क आज के ईरानी औरतो के लिए मात्र एक सपना बन कर रह गया है। एक ऐसा देश जो न केवल औरतो को मनपसंद कपडे पहनने की आज़ादी देता था बल्कि यह एक ऐसा दौर था जहाँ औरतो की पहुंच दफ्तरों से लेकर अदालतों तक थी, जहाँ औरतें अपने मूल अधिकारो से वंचित नहीं थी। यह ईरान का वह वक़्त था जहाँऔरतो और मर्दो के बीच कुछ ख़ास फर्क नहीं था।
ईरान हमेशा से एक इस्लामिक मुल्क नहीं था बल्कि यहाँ पर दुनिया का सबसे पुराना धर्म ज़ोरोस्ट्रियनिस्म (Zoroastrianism) का महत्व था, जिसमे अग्नि शुद्धता (Cleansing by Fire) और दिव्य प्रकाश को प्रतीक माना जाता है इसलिए अरब सेनाओ द्वारा ईरान पर विजय के बाद भी अग्नि से संबधित मंदिरो को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया गया । 651 ईस्वी में समय के साथ-साथ अरब मुस्लिम सेनाओ ने ईरान पर जीत हासिल करना शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप ईरान में इस्लाम का फैलाव धीरे-धीरे शुरू होने लगा। 1501 में सफ़विद एम्पायर (Safavid Empire) ने ईरान में शिया को राज्य का आधिकारिक धर्म घोषित किया।
अब तक भी ईरान में इस्लामिक कानूनों के आधार पर मुल्क को नहीं चलाया जा रहा था। 1925 से 1979 तक ईरान में शाह शासनकाल था जिसमे राजतन्त्र को अपनाने के साथ-साथ पश्चिमवाद से प्रेरित होकर आधुनिकीकरण को भी अपनाने की बात शामिल थी।
1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद अयातुल्ला ने अपने आप को ईरान का "सुपर लीडर" घोषित कर इस्लामिक गणतंत्र की स्थापना की। अयातुल्ला खुमैनी के सत्ता में आने के बाद एक नए ईरान की स्थापना हुई जहाँ स्वतंत्रता और मानवाधिकार की जगह इस्लाम धर्म को सर्वोपरि माना गया और यहाँ से शुरुआत हुई एक नए “इस्लामी देश” ईरान की।
जहाँ रज़ा शाह ने अपने शासनकाल में महिलाओ के अधिकार और उनके स्वंत्रता की बात की और उसको लागू करने के लिए कड़े से कड़े नियम लागू किये वही अयातुल्ला के शासनकाल में "शरिया (Sharia)" पर जोर दे कर हर नीति एवं कानून इस्लामी उसूलो (Islamic Laws) के तहत तय होने लगे और इस्लामी धर्म के अनुसार देश को चलाने की बात पर जोर दिया गया।
1979 में हुए इस्लामिक क्रांति (Islamic revolution) से सबसे ज्यादा असर महिलाओ के जीवन पर पड़ा है, महिलाओ ने शाह के शासनकाल में अपने आप को एक पश्चिमवादी समाज के अनुसार ढालना शुरू ही किया था की तब ही उनके मूल अधिकारों पर भी इस्लाम का दावा देकर पाबंदी लगाना शुरू कर दिया गया। 1963 में हुए शेवत क्रान्ति में आधुनिकीकरण की बात की गई । रज़ा शाह धर्म और शासन को अलग रखने की धारणा पर विश्वास रखते थे जिससे वह एक ऐसे नेता के रूप में उभरे जिन्होंने औरतो को हिजाब और बुरखा से मुक्त किया, वह पाबन्द जो औरतो पर इस्लाम का नाम देकर थोपा गया था, शाह ने न सिर्फ आधुनिकीकरण के लिए बल्कि औरतो की स्थति के सुधार के लिए भी अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशो को अपना आदर्श माना।
शाह के शासनकाल में औरतें अपनी इच्छानुसार कपड़े पहनती थी, काम पर जाती थी, आदालतों में अपनी आवाज़ों को बुलंद तरीके से पेश करती थी, वह एक ऐसा युग था जहाँ ईरानी औरतें अपनी जरूरतों और आज़ादी के लिए मर्दो पर निर्भर नहीं रहती थी बल्कि मर्दो के साथ कंधे से कन्धा मिलकर चलती थी।
महिलाओ की ये सारी आज़ादी 1979 में हुए इस्लामिक क्रान्ति की वजह से रातो-रात छीन ली गयी, महिलाओ के अधिकार और आज़ादी को इस्लाम धर्म के नियम और कानूनों का नाम दे कर रद्द कर दिया गया। अयातुल्ला के शासनकाल में एक धर्म को मानवाधिकार (Human Rights) से ज्यादा महत्व दिया गया और आज उसी का नतीजा है की 2025 में भी ईरानी औरतो (Iranian Women) को बाहर निकलने से पहले सौ बार सोचना पड़ता है। जहाँ एक वक़्त पर ईरानी औरतें आसमान की खुली हवाओ में सांस लेती थी वही आज के वक़्त पर उन्हें सांस लेने में भी घुटन होती है और इन सबकी जिम्मेदार ईरानी सरकार (Iranian Government) है। ईरानी सरकार ने न केवल ईरानी औरतो का जीना मुश्किल कर रखा है बल्कि दुनियाभर में औरतो के बीच एक डर और प्रश्न भी खड़ा कर दिया है।
प्रश्न है औरतो के अस्तित्व का, प्रश्न है धर्म के नाम पर पितृसत्तातमकता (Patriarchy) को समाज में मजबूत करने का, प्रश्न है मानवाधिकार का, प्रश्न है महसा अमिनी की मृतुय का जो ईरानी पुलिस की कस्टडी में मारी गई।
महसा अमिनी (Mahsa Amini) एक २२ वर्षीय महिला थी जिनको हिजाब न पहनने के कारण ईरानी पुलिस द्वारा अरेस्ट किया गया और पुलिस कस्टडी के दौरान उनकी मृत्यु हो गयी । इस घटना ने न केवल ईरान देश में बल्कि विश्वभर में लोगो के बीच गुस्से का सबाब बना दिया । महिलाओ का क्रोध उग्र हो गया, महिलाओ ने सड़को पर उतर कर सरकार और उनके द्वारा धर्म आधारित कानूनों के खिलाफ प्रोटेस्ट करना शुरू किया। इस घटना से न केवल हिजाब की पाबन्दी पर बल्कि लिंग सामंता (Gender Equality), मनावाधिकार और धर्म के नाम पर हो रहे सामाजिक प्रतिबन्ध पर भी प्रश्न किया गया।
महसा अमिनी (Mahsa Amini )की मृत्यु के बाद लोगो में एक क्रोध उत्पन्न हुआ जिसमे सिर्फ औरतो ने ही नहीं बल्कि कई संस्था, कॉलेज विद्यार्थी और आदमियों ने भी बढ़ चढ़ कर प्रोटेस्ट में हिस्सा लिया। लोगो के द्वारा हो रहे खिलाफत को दबाने के लिए सरकार ने इंटरनेट बंद करने, मीडिया पर पाबंदी लगाने से ले कर गिरफ्तारी तक की रणनीति अपनायी।
इस प्रोटेस्ट में कई प्रोटेस्टर्स के मारे जाने और एक बड़ी तादाद में लोगो की गिरफ्तारी के आंकड़े है जिसके परिणाम स्वरुप “यूनाइटेड नेशन (united nation)” ने ईरान को अत्यधिक बल का प्रयोग न करने पर जोर दिया।
इस प्रोटेस्ट ने ईरानी लोगो के बीच “नयी जनरेशन एक्टिविज्म और महिलाओ के अधिकार” से संब्धित मूवमेंट को एक नया रास्ता दिखाया।
ईरान का इस्लामिक रिपब्लिक तब से ही हिजाब को फॉलो करती है जब से 1979 के क्रान्ति के बाद ये नियम लागू हुआ था। लोगो द्वारा अथक प्रयासो के बाद भी ईरान में हिजाब पर पाबंदी नहीं लगायी गई है हालाँकि ईरानी जनता अब पहले से काफी ज्यादा जागरूक है जिसके लिए वे सरकार के खिलाफ आयेदिन प्रोटेस्ट करते रहते है।
ईरान में लोगो के उग्र होने से हिजाब नियम को लागू करवाने के तरीके में बदलाव आये है परन्तु अभी भी इस नियम को खारिज नहीं किया गया है। ईरान के बड़े शहरो जैसे तेहरान (Tehran) में महिलाये बिना हिज़ाब के भी सड़को पर देखी गयी है जिससे सोशल मीडिया (Social Media) पर हिजाब बंद (Hijab Ban) होने की अफवाह है परन्तु सचाई यह है की अभी भी इस्लामिक धर्म ने ईरान के नियम और कानूनों पर जोर पकड़ा हुआ है।
औरतो ने अपने हक़ को धर्म से काफी अलग रखने का निर्णय लिया है। औरतो को इस्लामिक धर्म से नहीं बल्कि धर्म के नाम पर हो रहे अत्याचारों को सही ठहराने की विचारधार से आपत्ति है जिसके खिलाफ विश्वभर में औरतो ने अपनी आवाज़ को बुलंद किया है और सरकार द्वारा बनाये गए ड़र को दूर भगाने का निर्णय लिया है।