युद्ध नहीं शांति की दरकार है दुनिया को, इतिहास से सबक लेने की जरूरत

युद्ध कभी किसी समस्या का समाधान नहीं करते, बल्कि तबाही का मंजर खड़ा करते हैं। इसके बावजूद कुछ देश अन्य देशों की प्रभुसत्ता और अखंडता को कमजोर करने की कोशिश करते हैं। हाल के दशकों में हुए तमाम संघर्षों को देखें या इतिहास में हुई लड़ाइयों को, युद्ध और संघर्ष से आम नागरिकों का जीवन तबाह हो गया और उनके मानवाधिकारों का हनन हुआ। बच्चों और महिलाओं को युद्ध की विभीषिका सबसे अधिक सहनी पड़ी।
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आज दुनिया में मानवाधिकारों की रक्षा (Human Rights) करने का दावा करने वाले देशों को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए कि उन्होंने कभी दूसरे देशों को कितना नुकसान पहुंचाया और उक्त देशों के नागरिकों को बेघर होने को मजबूर किया।

अमेरिका (America), ब्रिटेन (Britain), जापान (Japan) और यूरोपीय (European) देशों के दामन बेदाग नहीं हैं, हालांकि अब वे दुनिया को सभ्य बनने और दूसरों का सम्मान करने की नसीहत देते हैं। चीन (China) और भारत (India) जैसे देशों की बात करें तो इन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों को खूब झेला है। जहां अंग्रेजों ने भारत को 200 साल तक गुलाम बनाकर रखा और अत्याचार किए, वहीं जापान ने चीन में नानचिंग नरसंहार किया और चीनी महिलाओं की आबरू को भी नहीं छोड़ा। लेकिन फासीवाद (Fascism) और जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध में चीन को जीत मिली। इस बार चीन इस ऐतिहासिक जीत की 80वीं वर्षगांठ मना रहा है। आक्रमण और युद्ध का वह दौर द्वितीय विश्व युद्ध के रूप में भी जाना जाता है। इस मौके पर 3 सितंबर को राजधानी पेइचिंग में भव्य सैन्य परेड का आयोजन होगा और इतिहास के पलों को याद किया जाएगा। यह चीनी जनता के लिए बड़ा अवसर है, क्योंकि उन्होंने 80 साल पहले जापान और उनके सहयोगियों के आतंक का खात्मा किया। इस तरह चीनी नागरिकों ने खुली हवा में सांस ली।

हाल के वर्षों में कई देश संघर्ष के जाल में फंसे हुए हैं, चाहे वह यूक्रेन-रूस (Ukraine-Russia) संघर्ष हो या फिर अर्मेनिया (America) व अजरबेजान (Azerbaijan) के बीच लड़ाई। वहीं इजराइल-फिलीस्तीन (Israel-Philippines) और इजरायल-ईरान (Israel-Iran) के संघर्ष ने भी हमें यह सोचने के लिए मजबूर किया है कि हम किस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। शांति की बात करने वाले राष्ट्र दूसरे देशों पर आक्रमण करने और उन्हें युद्ध में झोंकने के लिए तत्पर रहते हैं। ऐसे में समय की मांग है कि हम इतिहास से सबक लें और शांति कायम करने के लिए गंभीरता से प्रयास करें। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के शब्दों में जापान द्वारा छेड़े गए युद्ध के दुनिया ने विनाशकारी प्रभाव देखे। उनके मुताबिक, भले ही द्वितीय विश्व युद्ध वर्ष 1939 में शुरू हुआ हो। लेकिन जापान (Japan) द्वारा चीन (China) के खिलाफ किया गया आक्रमण ही वास्तव में युद्ध की शुरुआत था। चीनी जनता और सैनिकों के साहस के कारण ही जापान को हार का मुंह देखना पड़ा था। जापान द्वारा किए गए अत्याचारों की फेहरिस्त लंबी है, चीन के बार-बार अनुरोध और आग्रह के बाद भी जापान इतिहास को ठीक से स्वीकार नहीं करता है।

फासीवाद और जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध की विजय की 80वीं वर्षगांठ पर हमें दुनिया में अमन-चैन कायम करने की कसम खानी चाहिए। साथ ही विश्व को युद्ध की राह पर धकेलने के बजाय प्रगति और विकास के मार्ग पर ले जाना चाहिए। यही सच्चा विकास होगा और यही सच्ची मानवता।

(BA)

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