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दिल्ली का कचरा दिल्ली में, झाड़ू लगाने चलीं UN में

अगर सफ़ेद झूठ बोलने में किसी को स्नातक करना हो तो आम आदमी पार्टी के पास ऐसे व्यक्तियों के लिए भरपूर जगह है। बीते दिनों संयुक्त राष्ट्र में आप की MLA आतिशी द्वारा दिए गए जिस भाषण की प्रशंसा करते अरविन्द केजरीवाल को खाँसी तक नहीं आ रही उन्हीं की दिल्ली बदबू से घुट-घुट कर खाँस रही है। कथनी और करनी में दूर-दूर तक कोई नाता नहीं, पर आरोप और प्रत्यारोप में अव्वल रहने वाली आम आदमी पार्टी को अब अपने शीशे से धूल हटाने की ज़रुरत है। हाँ वही धूल, जिसे साफ़ करने के लिए केजरीवाल जी केंद्र के आगे कटोरा लिए हमेशा नज़र आते रहते हैं। 2015 में वादे के लॉलीपॉप तो खूब बांटे पर समय आने पर इस बात को सिद्ध करके चलता बन गए- 'अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता'।

आप की MLA आतिशी जी ने दुनिया को दिल्ली गवर्नेंस मॉडल तो दिखा दिया पर यह बताना भूल गयीं कि इस झूठ को भी बल देने के लिए उन्हें अपने लिए सप्लायर की व्यवस्था करनी पड़ेगी। हाँ, फ्री सेवा देने वाले को बताना तो पड़ेगा कि इतना दान कहाँ से मिल रहा है, क्योंकि उनका तो कहना है कि, 'हम तो आम आदमी हैं जी, हमारे पास कुछ नहीं है'।

'दिल्ली का बजट कभी घाटे में नहीं गया', ये बात कहते हुए उन्हें यह भी बताना चाहिए था कि कटोरा हाथ में सदा बनाए रखो, कुछ न कुछ तो आ ही जाएगा, कभी केंद्र से तो कभी मासूम जनता के चंदों से। केजरीवाल जी अगर द्वारका, तुग़लकाबाद, लक्ष्मी नगर इत्यादि जगहों पर अपनी टूटी-फूटी किस्मत पर रोती सड़कों का ख़याल कर लेते तो शायद उससे उठने वाली धूल से होने वाली खाँसी से निज़ात पा जाते।

दिल्ली में बेहाल यमुना [Wikimedia Commons]

भाजपा नेता रामवीर सिंह बिधूड़ी ने बताया कि दिल्ली में 72 लाख लोगों में से अधिकतर को इस माह राशन नहीं मिल सका। शायद ये वो लोग हैं जिनके आंकड़े आप के अनुसार संयुक्त राष्ट्र में जाने योग्य नहीं हैं। और शायद इनके फ्री ऑफर भंडारा में भाग लेने की पात्रता भी नहीं रखते ।

मोहल्ला क्लिनिक पर वाह-वाही लूटने में उन्हें इसका संज्ञान नहीं कि दिल्ली के ही आजादपुर और शालीमार बाग के निवासी अपनी पीड़ा स्थानीय समाचार पत्रों द्वारा बता रहे हैं। उनका कहना है की उन्हें बदबू से भरे क्लिनिक के बीच डॉक्टर का इन्तजार करना पड़ता है और उसपर भी 12 बजे के बाद लौटा दिया जाता है। कहीं-कहीं तो कम्पाउण्डर ही एमबीबीएस बन दवा दे देते हैं। एक अन्य जगह हालत इतनी ज़्यादा दूभर है कि वहां हफ्ते से बीमार महिला का बिना किसी जांच के ही दो मिनट में दवा देकर भेज दिया गया।

बिना रुके जल और बिजली आपूर्ति पर बोलते हुए उन्हें ध्यान ही नहीं है की उन्हीं के दिल्ली में कई विद्यालयों में छात्र-छात्राएं पानी के लिए छटपटा रहीं हैं। जल की बात बताते हुए वो झाग में फंसी यमुना के बारे में भूल ही गयीं, वो शायद इसलिए कि यमुना तो यमुनोत्री से आती है और वो उनके शासन सीमा से बाहर है। बिजली आपूर्ति की बात पर तो दिल्ली भी हँस रही है जहाँ बिजली संकट दरवाज़े पर खड़ा ठहाका मारकर कह रहा है, 'क्या कॉन्फिडेंस है?'

दिल्ली को सस्टनेबल शहर के रूप में विकसित करने का वादा करने वाले आप के उस बयान का इंतजार है जिसमें वो फिर से कटोरा आगे करेंगे या फिर वही रोना अलापेंगे, 'हम तो गरीब हैं जी'। दिल्ली के राजा के खांसी का हाल तो अब ठीक-ठाक दिखता है पर दिल्ली ज़रूर दमे की चपेट में आती जा रही है। ऐसी राजनीति से तो यही समझ आता है कि इनके खुद की दिल्ली कूड़े के पहाड़ पर चढ़ चुकी है जहां से कुछ दिन में क़ुतुब-मिनार भी छोटा नज़र आने लगेगा और ये संयुक्त राष्ट्र में झाड़ू लेकर पहुँच चुके हैं।

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