हाल ही में दी गार्जियन ने अपनी एक रिपोर्ट प्रकाशित करी है जिसमें कई अहम बातें कहीं गई है। रिपोर्ट में भविष्य की मांग के लिए आवश्यकता से कहीं अधिक तेल और गैस के उत्पादन के जोखिम पर प्रकाश डाला गया है , जिसमें तथाकथित संपत्तियों में 11 ट्रिलियन से 14 ट्रिलियन डॉलर की संपत्तियों के बेकार हो जाने का अनुमान है। जो देश डीकाबोर्नाइज करने में धीमे हैं, उन्हें नुकसान होगा लेकिन शुरूआती मूवर्स को लाभ होगा। अध्ययन में पाया गया है कि नवीकरणीय ऊर्जा और मुक्त निवेश वैश्विक अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान की भरपाई से कहीं अधिक होगा।
रिपोर्ट के अनुसार यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर के प्रमुख लेखक जीन-फैंकोइस मक्र्योर ने कहा," सबसे खराब स्थिति में, लोग जीवाश्म ईंधन में तब तक निवेश करते रहेंगे जब तक कि अचानक उनकी अपेक्षित मांग पूरी नहीं हो जाती और उन्हें एहसास होता है कि जो उनके पास है वह बेकार है। तब हम 2008 के पैमाने पर एक वित्तीय संकट देख सकते हैं। अमेरिकी कार उद्योग के पतन के बाद ह्यूस्टन जैसे तेल समृद्ध क्षेत्र को चेतावनी दी गई थी कि उनका हश्र डेट्रॉइट के समान ही हो सकता है जब तक कि संक्रमण को सावधानीपूर्वक प्रबंधित नहीं किया जाता है।"
ऊर्जा के नवीनीकरण का स्त्रोत नहीं है जीवाश्म ईंधन (Wikimedia commons)
इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा स्वच्छ ऊर्जा में बदलाव से विश्व अर्थव्यवस्था को समग्र रूप से लाभ होगा, लेकिन क्षेत्रीय नकारात्मकता और संभावित वैश्विक अस्थिरता को रोकने के लिए इसे सावधानी से संभालने की आवश्यकता होगी।
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो 2036 से पहले तेल और गैस की मांग में गिरावट भू-राजनीतिक परिदृश्य को बदल देगी तो वहीं 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुंचने के लिए मौजूदा निवेश प्रवाह और सरकार की प्रतिबद्धता अक्षय ऊर्जा को अधिक कुशल, सस्ता और स्थिर बना देगी, जबकि जीवाश्म ईंधन अधिक मूल्य अस्थिरता से प्रभावित होंगे। कई कार्बन संपत्तियां, जैसे कि तेल या कोयले के भंडार को बिना उपयोग किए छोड़ दिया जायेंगे, जबकि मशीनरी भी काम नहीं आएंगे और अब इसके मालिकों के लिए मूल्य का उत्पादन नहीं होगा।
Input: आईएएनएस; Edited By: Lakshya Gupta