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बच्चों तक कैसे पहुंचाएं श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान?

Shantanoo Mishra

श्रीमद्भगवद्गीता वह ज्ञान है जिसे अर्जित कर नास्तिक भी कर्म के पथ पर बिना किसी बाधा के चल पड़ता है।भगवद्गीता के ज्ञान से पापी एवं लोभी भी हर प्रकार की बुराई छोड़कर अच्छे कर्मों का हाथ थाम लेते हैं। किन्तु हमें यह ध्यान रखना होगा कि इन सभी सद्गुणों को अर्जित करने के लिए गीता के ज्ञान को अपने मस्तिक्ष एवं हृदय में समाहित करना होगा। गीता के हर भाव से अपने कर्मों को परिचित कराना होगा जिसका आरम्भ यदि बाल्यावस्था से हो, तब वह और भी लाभदायक माना जाता है।

लोभ का इस्तेमाल गीता के ज्ञान में…

आज के आधुनिक युग में बच्चों और युवाओं में कर्म का लोभ कम और पैसे या इनाम का लोभ अधिक है। वह इनाम के लिए किसी भी प्रतियोगिता के लिए हाँ! कह सकते हैं। तो क्यों न इसी लोभ का प्रयोग ज्ञान चक्षु को बढ़ाने में किया जाए। माता-पिता एवं शिक्षण संस्थान समय-समय पर बच्चों में भगवत गीता के उच्चारण की प्रतियोगिता आयोजित कर सकते हैं। जिसमें जीतने वालों को इनाम और सभी भाग लेने वाले विद्यार्थियों को प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सकती है। इससे यह होगा कि बच्चों में इनाम जीतने की ललक बढ़ेगी और गीता के श्लोक को धीरे-धीरे कंठस्त कर लेंगे साथ ही गीता पढ़ते हुए उन सभी श्लोकों के सार का मतलब भी उन्हें पता चल जाएगा। माता-पिता अपने बच्चों से घर पर भी पैतरे का प्रयोग कर बच्चों में गीता के ज्ञान बच्चों तक पहुँचाने में कर सकते हैं। और कुछ समय बाद स्वयं बच्चे में भगवद्गीता के विषय में और जानने की ललक जागृत हो जाएगी, तब लोभ नहीं केवल लाभ होगा।

इन उपायों को कुछ शिक्षण संस्थान प्रयोग में भी ला चुके हैं और इससे उन्हें अधिक से अधिक बच्चों तक गीता के ज्ञान को पहुँचाने में सहायता प्राप्त हुई है। पिछले कुछ वर्षों से हरियाणा सरकार गीता महोत्सव के जरिए इसी प्रकार से गीता के ज्ञान का प्रचार एवं प्रसार करने का प्रयास कर रही है।

श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान विश्व के सम्पूर्ण रहस्य का सत्य है।(Wikimedia Commons)

माता-पिता के द्वारा बच्चों में धर्म के विषय में जागरुकता लाना…

"धर्मो रक्षति रक्षतः"; आज के धर्मनिरपेक्ष समाज में इस कथन के भाव को अवास्तविक रूप से प्रस्तुत किया जाता है, और इसे हिंसा या घृणा से जोड़ा जाता है। जबकि, यह भाव वास्तविक रूप से न ही किसी से घृणा करने को कहा जा रहा है और न ही हिंसा फैलाने को, बल्कि इस भाव का अर्थ है कि यदि हम अपने धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म हमारी रक्षा करेगा। धर्म की रक्षा तलवार या घृणा फैलाकर नहीं अपितु हर जन में धर्म के सद्भाव को जागृत करना होगा।

इसी भाव का प्रयोग माता-पिता या घर के बड़े-बुजुर्ग, बच्चों में धर्म के विषय में सकारात्मक भावना को उतपन्न करने में कर सकते हैं। अधिकांश घरों में दादा जी या दादी अपने पोते-पोतियों को गायत्री मंत्र का उच्चारण करवाते हैं, यदि इसके साथ वे गीता के ज्ञान को भी उन तक पहुंचाएंगे तो और अधिक लाभ होगा। साथ ही वह माता-पिता जिन्हें भगवत गीता के विषय में कोई ज्ञान नहीं है वह भी अपने बच्चों के साथ मिलकर उस परम ज्ञान को अर्जित कर सकेंगे।

नियमतता ही नियम है, इस सिद्धांत को अपनाना होगा…

श्रीमद्भगवद्गीता को अपने जीवन का अभिन्न-अंश बनाना होगा। हर दिन, नियमित रूप से आधा या एक घंटा बच्चों के साथ भगवत गीता के ज्ञान और श्लोकोच्चारण को समर्पित करें। कुछ समय बाद यह कर्म भी आपके दिनचर्या का हिस्सा बन जाएगा। गीता के श्लोक एक या दो बार से नहीं कंठस्त होंगे उसके लिए आपको नियमित अभ्यास की आवश्यकता होती है और जब आप इस दिनचर्या को स्वयं पर लागू करेंगे तब बच्चों में भी इसके प्रति उत्साह एवं विचार उत्पन्न होगा।

पुस्तकों के जरिए बच्चों तक गीता को पहुँचाएं…

आज के आधुनिक युग में जहाँ छोटे से छोटा चीज ऑनलाइन उपलब्ध है वहाँ से आप कुछ ऐसी किताबें भी मंगवा सकते हैं तो आपके बच्चों को बड़े ही रोचक रूप से गीता का ज्ञान देंगे। अब तो किताबों को भी ऑनलाइन पढ़ा जा सकता है, अमेज़न किंडल आपको यह सुविधा भी प्रदान करता है। इस सुविधा का प्रयोग बच्चों तक गीता का ज्ञान पहुँचाने में कर सकते हैं।

ज्ञान, बच्चे और बड़े दोनों के लिए एक खजाने की तरह है। आप जितना उसे पाने की कोशिश करते हैं आपको उतना ही लाभ प्राप्त होता है। लाभ एवं लोभ में केवल एक मात्रा अंतर है किन्तु ज्ञान इस अंतर को सम्पूर्ण रूप से खत्म कर देता है।

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