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राष्ट्रीय शिक्षा दिवस- मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की ज़ुबानी

NewsGram Desk

"राष्ट्रीय शिक्षा का कोई भी कार्यक्रम उचित नहीं हो सकता, अगर यह समाज की आधी आबादी यानी महिलाओं की शिक्षा और उन्नति पर पूरा ध्यान न दे।" – यह बात आपने हर सज्जन इंसान, हर विद्वान के मुख से सुनी होगी। देश की मौजूदा परिस्थितियों में आपने इसकी आवश्यकता को महसूस भी किया होगा।

पर क्या आप जानते हैं कि आज़ाद भारत में इस बात को समझने वाला कौन था ? इस बात पर ज़ोर देने वाला कौन था ? मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ; जिन्होंने 1947 से 1958 तक, एक सुधारक के रूप में शिक्षा मंत्री के पद को अपनी सेवा प्रदान की।

उन्हीं की जन्म तिथि पर, हर वर्ष 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाया जाता है। मौलाना आज़ाद का असली नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन था।

आपको जान के हैरानी होगी कि 2008 से पहले राष्ट्रीय शिक्षा दिवस नाम से कोई दिन ही ना था। 11 सितंबर, 2008 को मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने यह घोषणा की, कि अब से मौलाना आज़ाद के जन्मदिन को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

1948 में मौलाना आज़ाद ने कला भवन का दौरा किया था। (Wikimedia Commons)

मौलाना आज़ाद ने अपनी शिक्षा नीतियों में संस्कृति और देश की विरासत को अहम दर्जा दिया था। उनका मानना था कि लोगों को अपनी विरासत के बारे में पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। इंसान को अपनी संस्कृति से जुड़ा रहना चाहिए। इसी की बदौलत संगीत नाटक अकादमी, ललित कला सहित कई अन्य अकादमियाँ देश में मौजूद हैं।

उर्दू, फारसी और अरबी के प्रख्यात विद्वान होने के बावजूद मौलाना ने अंग्रेजी भाषा की ज़रूरत को समझा। राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके जुड़े लाभ को भांपा। हालांकि, उनका विश्वास था कि बच्चों की शुरूआती शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए। 

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद कांग्रेस का वह अंग भी रहे जिसने उस पार्टी को बुरे से बुरे वक़्त में संभाले रखा। कहते हैं कि देश के पहले प्रधानमंत्री होने की दौड़ में इनका नाम भी शामिल था।

अपने पूरे जीवन काल में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद हमेशा ही भारत के लिए, उसकी एकता, अखंडता के लिए, किसी सिपाही की भांति जागते रहे। इस ओर अपने प्रयास करते रहे। देश के लिए उनके प्रेम और समर्पण को देखते हुए, 1992 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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