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जब ‘भारतीय’ विदेशी कला पर ताली पीटते हैं और भारतीय कला और कलाकृति को नकारते हैं, तब पश्चिमी अजेंडा जीतता दिखता है!

Shantanoo Mishra

भारत की कला ही भारतीयता की पहचान है, साथ ही यह कला भारत की प्राचीन संस्कृति एवं समृद्धि को बड़ी बारीकी से बताती है। प्राचीन भारत में अनेकों चित्रकार एवं एवं शिल्पकार जन्में जिनके कार्य को देख आज भी हमारा सीना गर्व से लालायित हो जाता है। ऐसी कई कलाकृतियां(Indian Art and culture) भारत भूखंड पर उपस्थित हैं जिन्हें देख भारत के गौरव गान करने के लिए मन उत्सुक रहता है। किन्तु भारत के अधिकांश इतिहासकारों ने न तो इस कला(Indian Art and culture) को लोगों तक पहुँचने दिया और न ही अपने किताबों में इन्हें जगह दी। आज भी विन्ची की 'मोनालिसा' के लिए भारतियों द्वारा तालियां पीटी जाती हैं, किन्तु राजा रवि वर्मा की 'शकुंतला'(Indian Art and culture) आज कुछ ही लोगों के ध्यान में है। 'ताज महल'(जो शायद हिन्दू कलाकृति है) को मुगल कारीगरी और तथाकथित प्यार की निशानी के रूप में जाना जाता है, जिसके विदेशों में भी चर्चे हैं और इसके लिए वह वाह-वाही बटोरता है। किन्तु भारत के सोमनाथ मंदिर को जिन मुगलों ने 6 बार ध्वस्त करने का प्रयास किया और वह आज भी अडिग हैं, उन्हें भारत की नई आधुनिक पीढ़ी ने ही भुला दिया है।

भारत में ऐसी कई कलाकृतियां(Indian Artand culture ) भी उपस्थित हैं जिनका इतिहास भी अनोखा है और उनमें कई रहस्य भी छुपे हैं। लेकिन इस विषय का ज्ञान आज के आधुनिक और अंग्रेजी को मातृभाषा बताने वाले युवाओं को नहीं हैं। वह इसलिए क्योंकि इन्होंने राष्ट्र-विरोधी अजेंडाधारकों को अपना सरताज मान लिया है, और इनके लिए वह नेता ही सबसे ऊपर हैं जो देश-विरोध में बात करते हैं, श्री राम को मिथ्या कहते हैं और जो चुनाव आते ही मंदिर-मंदिर भटकते हैं। इस नस्ल ने स्वयं को लिबरल या उदारवादी बताया है, किन्तु इनका निशाना केवल हिन्दू ही रहता है। भारत की प्राचीन संस्कृति को इन्होंने आधुनिकरण का नाम देकर मिटाने का षड्यंत्र रचा हुआ है। इन लिब्रलधारियों के लिए सनातन धर्म केवल एक विचारधारा है जो किसी संगठन या राजनीतिक पार्टी से प्रेरित है। इन्हे यह नहीं पता जिस संगठन को हिंदूवादी विचारधारा बता रहे हैं वह सनातन धर्म से प्रेरित है और इन सभी संगठन की स्थापना हिन्दू धर्म के वक्ता के रूप में हुई। सनातन धर्म आदिकाल से पूजा जाने वाला और पालन किया जाने वाला धर्म है।

आपको बता दें कि भारतीय कला को रूढ़िवादी ताकतों ने हर समय नीचा दिखाया है। उनके लिए हिन्दू कला या हिंदुत्व से जुड़ी कलाकृति का बखान करना कट्टरपंथी अजेंडे को फैलाने जैसा है। इन्होंने न कभी देश के मंदिरों का बखान किया और न ही कभी मंदिरों में उपस्थित कला। जिन महान शासकों के शासनकाल में में इन मंदिरों और कलाकृतियों का निर्माण हुआ उन्हें भी इन रूढ़िवादी विचारकों ने नीचा दिखाया।

अब समय बदला है!

किन्तु अब समय बदला है, और कई युवा ऐसे हैं जिन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को अपने प्राचीन संस्कृति के प्रति जागरूक करने का बीड़ा उठाया है। यह सभी सोशल मीडिया पर पर ऐसे अनोखे कलाकृतियों एवं मंदिरों को सामने ला रहे है जिनसे कुछ समय पहले शायद हम अछूते थे। भारत, कला के विषय में कितना धनी यह अब हमें इन्हीं छोटी-छोटी कोशिशों से ज्ञात हो रहा है। साथ ही भारत के वामपंथी इतिहासकारों के द्वारा भारतीय कला को हमसे किस तरह छुपाया गया, वह अब समझ में आ रहा है। सोशल मीडिया पर ऐसे कई कोशिश-कर्ता हैं जिनमें से एक का नाम हैं, Lost Temples जो फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर अपने पोस्ट के माध्यम से जनता को जागरूक करने में जुटा है। साथ ही इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया पर ऐसे कई पेज और व्यक्तिगत कार्यकर्त्ता उपस्थित हैं, जो इस जागरूकता के कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं।

भारतीय संस्कृति एवं कला को जिस प्रकार से आज भी दबाया जाता है उसमें ऐसे कुछ कोशिश कर्ता उम्मीद की किरण दिखाई देते हैं। यह विषय इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि जो धर्म और सेक्युलरिस्म पर ज्ञान बांचते हैं उन्हें इन मंदिरों के इतिहास और कला का कोई ज्ञान नहीं है, जिस वजह से अधिकांश लोग, खासकर युवा-वर्ग(जो इन्हे बड़े ध्यान से सुनता है) को सनातन धर्म के विषय एक अंश भी ज्ञान प्राप्त नहीं होता है। और अनेक कारणों में से यह भी एक कारण है कि युवा देश-विरोध में उठ रही आवाजों का भी साथ देते हैं।

'आने' वाले समय में देश की स्थिति 'आज' पर निर्भर कर रही है। बीते हुए कल को हम नहीं बदल सकते हैं, किन्तु, यदि हमने आज को बदलने के साथ भारतीयता को पुनर्स्थापित करने प्रण ले लिया, तो भविष्य भी हमें याद रखेगा और 'कम' हो रही राष्ट्रवादिता पुनः सुरक्षित होने का आश्वासन प्राप्त करेगी।

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