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किसे अपना कहें और किसे गैरों का समझें?

NewsGram Desk

ट्विटर को एक मंच या एक ऐसा जरिया कहा जाता है जहां से विश्व के पटल पर मुद्दों को रखने का मौका मिलता। ट्विटर पर ट्रेंड करते हैशटैग को देश का रुझान समझा जाता है मगर जब खुद ट्विटर ही सच को छुपाने लगे उस वक्त कौन साथ देगा?  

कुछ  यही हुआ है डॉ मुनीश रायज़ादा द्वारा निर्मित डक्यूमेंटरी सीरीज़ 'ट्रांसपेरेंसी- पारदर्शिता' के साथ, यह सीरीज़ एक ऐसी कथा है जिस में आम आदमी पार्टी के कथनी और करनी में अंतर को दर्शाया गया है। 'आप' के ही पूर्व सदस्यों ने इस सीरीज़ अपनी भागीदारी दी है। किन्तु, हाल ही में ट्विटर ने सीरीज़ के प्रमोशन को रोक दिया और ऐसा इसलिए नहीं कि उसमे कोई आपत्तिजनक दृश्य थे या उसमे अपशब्द का इस्तेमाल किया गया था, यह कदम इसलिए उठाया गया क्यूंकि एक सत्ताधारी पार्टी के काले सच को उजागर किया जा रहा था।  

क्या कुछ कहने का अधिकार एक तबके को ही है ? 

'ट्रांसपेरेंसी-पारदर्शिता' डॉक्यूमेंट्री सीरीज़

अन्ना आंदोलन या 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन मूवमेंट' के तुरंत बाद आम आदमी पार्टी की सरकार बनकर उभरी, और आज उसी पार्टी को अपने काले सच निकल आने की घबराहट हो रही है, ऐसा इसलिए कि सीरीज़ के एक प्रोमोशन पोस्ट में को किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा 'आप' के सोशल मीडिया हेड अंकित लाल को टैग करने कुछ ही समय बाद इस सीरीज़ के प्रमोशन को ट्विटर पर रोक दिया गया। 

मगर उसी पार्टी के अंकित लाल #TeamBaan जैसे हैशटैग का समर्थन करते हैं और ट्विटर मूक दर्शक बना बैठा रहता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि #TeamBaan ट्विटर पर लोगों के मत में हेरफेर करती है और यूट्यूब पर डिस लाइक देने का काम करती है। क्या ट्विटर ने इनके खिलाफ कोई कार्रवाई की, तो उसका उत्तर है नही, और शायद आगे भी नहीं करेगी। 

ट्विटर को निष्पक्ष कहा जाता है अगर यह निष्पक्षता होती है तब तानाशाही किसे कहेंगे? 

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