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भारत की खादी आज मैक्सिको में कैसे बनी ब्रांड, पढ़िए पूरी कहानी

NewsGram Desk

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जब हम लोकल के लिए वोकल हो रहे हैं तो दुनिया भी हमारे लोकल प्रोडक्ट्स की फैन (प्रशंसक) हो रही है। हमारे कई लोकल प्रोडक्ट्स में ग्लोबल होने की बहुत बड़ी शक्ति है। जैसे एक उदाहरण है-खादी का। लम्बे समय तक खादी, सादगी की पहचान रही है, लेकिन, हमारी खादी आज, इको-फ्रेंडली फैब्रिक के रूप में जानी जा रही है। स्वास्थ्य की दृष्टि से ये बॉडी फ्रेंडली फैब्रिक है।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में रविवार को कहा कि आज खादी फैशन स्टेटमेंट बन रही है। खादी की लोकप्रियता तो बढ़ ही रही है, साथ ही, दुनिया में कई जगह, खादी बनाई भी जा रही है। मेक्सिको में एक जगह है 'ओहाका'। इस इलाके में कई गांव ऐसे है, जहां स्थानीय ग्रामीण, खादी बुनने का काम करते हैं। आज, यहां की खादी 'ओहाका खादी' के नाम से प्रसिद्ध हो चुकी है।

प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि ओहाका में खादी कैसे पहुंची ये भी कम रोचक नहीं है।

दरअसल, मेक्सिको के एक युवा मार्क ब्राउन ने एक बार महात्मा गांधी पर एक फिल्म देखी। ये फिल्म देखकर बापू से इतना प्रभावित हुए कि वो भारत में बापू के आश्रम आये और बापू के बारे में और गहराई से जाना-समझा। तब उनको एहसास हुआ कि खादी केवल एक कपड़ा ही नहीं है बल्कि ये तो एक पूरी जीवन पद्धति है। यहीं से ब्राउन ने ठाना कि वो मेक्सिको में जाकर खादी का काम शुरू करेंगे। उन्होंने, मेक्सिको के ओहाका में ग्रामीणों को खादी का काम सिखाया, उन्हें प्रशिक्षित किया और आज 'ओहाका खादी' एक ब्रांड बन गया है।

महात्मा गाँधी ने ही भारत में खादी की लोकप्रियता को बढ़ावा दिया था। (Wikimedia Commons)

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इस प्रोजेक्ट की वेबसाइट में मार्क ब्राउन का बहुत ही दिलचस्प इंटरव्यू भी मिलेगा। वे बताते हैं कि शुरू में लोग खादी को लेकर संदेह में थे, परन्तु, आखिरकार, इसमें लोगों की दिलचस्पी बढ़ी और इसका बाजार तैयार हो गया। ये कहते हैं, ये राम-राज्य से जुड़ी बातें हैं जब आप लोगों की जरूरतों को पूरा करते है तो फिर लोग भी आपसे जुड़ने चले आते हैं। दिल्ली के कनॉट प्लेस के खादी स्टोर में इस बार गांधी जयंती पर एक ही दिन में एक करोड़ रुपये से ज्यादा की खरीदारी हुई।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जब हमें अपनी चीजों पर गर्व होता है, तो दुनिया में भी उनके प्रति जिज्ञासा बढ़ती है। जैसे हमारे आध्यात्म ने, योग ने, आयुर्वेद ने, पूरी दुनिया को आकर्षित किया है। हमारे कई खेल भी दुनिया को आकर्षित कर रहे हैं। आजकल, हमारा मलखम्ब भी, अनेकों देशों में प्रचलित हो रहा है। अमेरिका में चिन्मय पाटणकर और प्रज्ञा पाटणकर ने जब अपने घर से ही मलखम्ब सिखाना शुरू किया था, तो, उन्हें भी अंदाजा नहीं था, कि इसे इतनी सफलता मिलेगी। अमेरिका में आज, कई स्थानों पर, मलखम्ब ट्रेनिंग सेंटर्स चल रहे हैं।(आईएएनएस)

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