आमिर ख़ान की वापसी
करीब तीन साल के लंबे अंतराल के बाद आमिर ख़ान एक बार फिर बड़े पर्दे पर लौटे हैं, और इस बार उनकी फ़िल्म ‘सितारे ज़मीन पर’ (‘Sitar Zameen Par’) को ‘कमबैक फिल्म’ के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन इस वापसी को सिर्फ एक नई फिल्म के रूप में नहीं देखा जा रहा, बल्कि इसे आमिर ख़ान की साख, उनकी प्रतिष्ठा और बॉलीवुड के भविष्य के साथ जोड़कर देखा जा रहा है।
आमिर ख़ान एक ऐसे अभिनेता रहे हैं जिन्होंने पिछले तीन दशकों में इंडस्ट्री को कई ऐतिहासिक और यादगार फिल्में दी हैं। लेकिन हाल ही के वर्षों में उनकी पिछली दो फिल्में ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ (‘Thugs of Hindostan’) और ‘लाल सिंह चड्ढा’ (‘Lal Singh Chaddha’) बुरी तरह फ्लॉप हो गईं। खासकर 'लाल सिंह चड्ढा' (‘Lal Singh Chaddha’) की असफलता ने उनके भावनाओं और मानसिक रूप को झकझोर कर रख दिया। अब सवाल यह है कि क्या ‘सितारे ज़मीन पर’ (‘Sitar Zameen Par’) आमिर के करियर की नई शुरुआत होगी या फिर यह उनके स्टारडम की आखिरी चुनौती बन जाएगी ?
शाहरुख़ ख़ान ने भी एक समय लंबा संघर्ष झेला। उनकी कई फिल्में जैसे ‘फैन’, (‘Fan’) ‘जब हैरी मेट सेजल’, ‘ज़ीरो’ (‘Zero’) बुरी तरह से फ्लॉप हुईं। लेकिन उन्होंने 'पठान' (‘Pathan’) और 'जवान' (‘Jawan’) जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों से दमदार वापसी की। अब दर्शकों की नज़र आमिर पर है कि क्या वो भी वैसी ही वापसी कर पाएंगे ? शाहरुख़ ने बिना किसी इंटरव्यू और प्रमोशन के सिर्फ सोशल मीडिया के ज़रिए अपनी फिल्मों को हिट बना दिया। वहीं आमिर 'सितारे ज़मीन पर' के लिए लगातार इंटरव्यू दे रहे हैं, सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर से लेकर टीवी चैनलों तक हर जगह जाकर फिल्म का प्रचार कर रहे हैं। अब सवाल उठता है, कि क्या यह ज़रूरत से ज़्यादा प्रचार ‘ओवरकिल’ है ?
1988 में 'क़यामत से क़यामत तक' से बॉलीवुड में कदम रखने के बाद आमिर की कई फिल्में फ्लॉप रहीं, जैसे 'लव लव लव', (‘Love Love Love’) 'तुम मेरे हो', (‘Tum Mere Ho’) 'जवानी ज़िंदाबाद' (‘Jawani Zindabad’) । लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। 'दिल', (‘Dil’) 'रंगीला'(‘Rangeela’), 'ग़ुलाम' (‘Ghulam’) और 'सरफ़रोश' (‘Sarfarosh’) जैसी फिल्मों से उन्होंने अपनी जगह बनाई। 2001 में 'लगान' (‘Lagaan’) और 'दिल चाहता है' (‘Dil Chahta Hai’) के साथ उन्होंने बॉलीवुड को एक नई दिशा दी। फिर आमिर ने एक फैसला किया वो एक समय में सिर्फ एक फिल्म करेंगे। आमिर की ख़ास बात सिर्फ अभिनय करना नहीं है , बल्कि उनकी सोच और मार्केटिंग स्ट्रेटेजी भी रही है। उन्होंने 'ग़जनी' (‘Ghajini’) के प्रचार के लिए दर्शकों के बाल तक खुद काटे। 'थ्री इडियट्स' (‘Three Idiots’) के प्रचार के लिए कॉलेजों में छात्रों के बीच गए। 'पीके' (‘PK’) में वो रेडियो जॉकी बन गए। इन सभी कोशिशों ने फिल्मों को सफल बनाया।उनकी फिल्में सिर्फ मनोरंजन ही नहीं, बल्कि सामाजिक संदेश भी देती थीं 'तारे ज़मीन पर', 'पीपली लाइव', 'दंगल' ये सभी इसके उदाहरण हैं।
क्यों नाकाम रहे आमिर ?
2018 के बाद आमिर के करियर ने एक नकारात्मक मोड़ लिया। 'ठग्स ऑफ हिंदोस्तान' (‘Thugs of Hindostan’) की भारी बजट और प्रचार के बावजूद बुरी तरह फ्लॉप हो गई। इसके बाद 'लाल सिंह चड्ढा' (‘Lal Singh Chaddha’) से काफी उम्मीदें थीं, लेकिन वह भी दर्शकों को नहीं भा सकी।इस असफलता ने आमिर को डिप्रेशन में धकेल दिया। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि वो फिल्में छोड़ने का सोच चुके थे। इस दौर में उन्होंने खुद को फिर से खोजना शुरू किया अपने परिवार के साथ समय बिताया, जीवन के बारे में सोचा और अब वो 'सितारे ज़मीन पर' के साथ लौटे हैं।
इस बार आमिर सिर्फ एक अच्छी फिल्म के सहारे नहीं लौट रहे है , बल्कि उन्होंने एक बड़ा दांव भी खेला है। आमतौर पर बड़ी फिल्में थिएटर रिलीज़ के 8 हफ्तों के अंदर ओटीटी पर आ जाती हैं, लेकिन आमिर ने ‘सितारे ज़मीन पर’ के लिए 120 करोड़ की ओटीटी डील ठुकरा दी है।उनका कहना है कि फिल्मों को थिएटर में ज्यादा समय तक टिके रहने का मौका मिलना चाहिए, ताकि जो दर्शक फिल्म को दुवारा देखना चाहे तो वो दुवारा भी सिनेमाघरों में देख सकें। वो चाहते हैं कि थिएटर रिलीज़ के 6 महीने बाद ही फिल्म ओटीटी पर आए। यह साहसी निर्णय है, लेकिन इसके सफल होने की गारंटी नहीं है। आज के दर्शकों को ओटीटी की आदत हो गई है, वो इंतज़ार करने के बजाय घर पर ही फिल्म देखना पसंद करते हैं। अब देखना यह है कि क्या आमिर का यह फैसला फिल्म उद्योग में कोई नया ट्रेंड शुरू कर पाएगा ?
बदलता फिल्म प्रचार: नई दुनिया, नई चुनौतियाँ
एक समय था जब फिल्म के प्रचार के लिए बड़े स्टार्स टीवी स्टूडियो, अखबार और रेडियो के दफ्तरों में जाकर इंटरव्यू देते थे। लेकिन कोविड के बाद यह तरीका बदल गया है।अब सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म प्रचार का सबसे बड़ा साधन बन चूका है। शाहरुख़ ने इस बदलाव को समझा और अपनालिया, जबकि आमिर अब भी पुराने तरीके पर भरोसा करते दिख रहे हैं। हालांकि आमिर की ईमानदारी और अपनी गलतियों को स्वीकार करने की आदत दर्शकों को पसंद आती है, लेकिन जब वही बात बार-बार की जाए, तो यह ‘दिखावटी’ भी लगने लगती है। क्योंकी आज के समय में दिखावटी सच्चाई लगता है और सच्चाई दिखावटी लगता है I'दंगल' (‘Dangal’) आमिर के करियर की सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर रही, जिसने देश और विदेश में अपार सफलता पाई। उसके बाद ऐसी कोई फिल्म नहीं आई जो उस स्तर को छू सके। अब ‘सितारे ज़मीन पर’ से उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं। आमिर इसे एक संवेदनशील, इमोशनल कहानी बता रहे हैं, जो आज के दौर की मुश्किलों और बच्चों की भावनाओं को छूती है। लेकिन क्या यह फिल्म दर्शकों को सिनेमाघर तक खींच पाएगी ?
आमिर की विरासत और बॉलीवुड का भविष्य
आमिर ख़ान सिर्फ एक अभिनेता नहीं हैं, बल्कि एक ट्रेंडसेटर यानि एक नया फैशन शुरू करने वाला रहे हैं। उन्होंने इंडस्ट्री को बताया कि कम फिल्में करके भी बड़ा प्रभाव डाला जा सकता है। उन्होंने यह भी साबित किया कि दर्शक सिर्फ मसाला नहीं, बल्कि गहराई वाली कहानियाँ भी देखना चाहते हैं। जबकि के समय में हिंदी सिनेमा संकट के दौर से गुजर रहा है,आमिर की यह फिल्म और उनकी रणनीति पूरे बॉलीवुड के लिए एक संकेत हो सकती है या तो सभी इससे प्रेरणा लेंगे या फिर इसे एक ‘जोखिम’ मानकर इससे बचना चाहेंग।
निष्कर्ष:
‘सितारे ज़मीन पर’ (‘Sitar Zameen Par’) सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि आमिर की वर्षों की मेहनत, सोच और साख का नतीजा है। यह फिल्म तय करेगी कि क्या आमिर एक बार फिर ‘मिस्टर परफेक्शनिस्ट’ बनकर उभरेंगे या फिर यह उनकी सबसे बड़ी हार साबित होगी। एक तरफ उनके पास अनुभव, भावनात्मक गहराई और समझदारी है, दूसरी तरफ एक नई दुनिया है जो तेजी से बदल रही है जहां दर्शक जल्दी बोर हो जाते हैं, जहां दर्शकों को ओटीटी की आदत दाल चुके हैं, और प्रचार की भाषा भी बदल चुकी है। आमिर का यह ‘बड़ा दांव’ क्या रंग लाएगा ? इसका जवाब आने वाले समय में मिल जाएगा, लेकिन इतना तय है कि यह सिर्फ एक अभिनेता की वापसी नहीं, बल्कि बॉलीवुड के आत्मनिरीक्षण का भी एक अहम मोड़ है।