मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार जिनका अनुभव फिल्म 'गंगा जमना' बतौर प्रोड्यूसर काफी खराब रहा। इसके बाद उन्होंने फिल्म बनाने से ही मुंह मोड़ लिया।
फिल्म 'गंगा जमना' के समय सूचना एवं प्रसारण मंत्री केसकर हुआ करते थे। उन्हीं के हाथों में सेंसर बोर्ड की कमान थी। 'गंगा जमना' के रिलीज़ के पहले, बोर्ड को फिल्म दिखाई गई। बोर्ड ने फिल्म में अश्लीलता और हिंसा का हवाला देकर फिल्म से 250 सीन हटाने को कहा। इसके बाद दिलीप कुमार ने फिल्म को लेकर स्पष्टीकरण दिया, साथ ही सेंसर बोर्ड को 120 पन्नों का ज्ञापन भी सौंपा लेकिन बोर्ड ने अपना फ़ैसला नहीं बदला और ज्ञापन को पढ़ना तक ठीक नहीं समझा।
मेघनाद देसाई ने दिलीप कुमार की जीवनी में लिखा है कि, "सेंसर बोर्ड को फिल्म के अश्लील और हिंसा वाले सीन से आपत्ति नहीं थी बल्कि फिल्म में कहे गए डकैत के द्वारा उन शब्दों से थी जो नाथूराम गोडसे से गोली खाने के बाद महात्मा गांधी ने कहे थे।" दिलीप कुमार ने फिल्म को लेकर खूब सफाई दी लेकिन सेंसर बोर्ड की ओर से कोई जवाब नहीं आया। तब दिलीप कुमार को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मदद लेने के अलावा कोई और रास्ता नहीं दिखाई दिया।
दिलीप कुमार की गुज़ारिश पर इंदिरा गांधी ने उनकी बैठक नेहरु के साथ तय करवाई। बैठक का समय केवल 15 मिनट रखा गया। 15 मिनट की इस मुलाकात में दिलीप कुमार ने नेहरू को अपनी परेशानी बताई साथ ही सेंसर बोर्ड पर कई बड़े सवाल उठाए।
उन्होंने बताया कि सेंसर बोर्ड अपनी मर्जी कर रहा हैं और अपने फैसले के अलावा कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं है।
इन्हीं बातों के चलते नेहरू के साथ दिलीप कुमार की 15 मिनट की बैठक डेढ़ घंटे में बदल गई।
नेहरू ने इस पर अपनी सहमति जताई और हस्तक्षेप कर फिल्म को पास कराया। कुछ समय बाद नेहरू ने केसकर को अपने मंत्रीमंडल से भी हटा दिया। केसकर के हटने के बाद उनके द्वारा लगे आकाशवाणी पर फिल्म संगीत और क्रिकेट कमेंट्री प्रतिबंध को भी हटा दिया गया।