Doordarshan : 1990 से 2001 तक (1991 को छोड़कर) यह शो 10 साल चला और इसके 415 एपिसोड्स प्रसारित हुए।(Wikimedia Commons) 
मनोरंजन

दूरदर्शन के इस शो के होस्ट को 14 लाख से अधिक चिट्ठियां भेजते थे दर्शक

टीवी पर एक ऐसा शो आया, जिसने देश की अलग-अलग संस्कृतियों को एकजुट करने का काम किया, इस शो का नाम 'सुरभि' था, जिसे रेणुका शहाणे और सिद्धार्थ काक होस्ट करते थे

न्यूज़ग्राम डेस्क

Doordarshan : आज हमारे मनोरंजन के लिए बहुत कुछ उपलब्ध है जैसे - फिल्म, टीवी, सोशल मीडिया इत्यादि। लेकिन नब्बे के दशक में ऐसा नहीं था, उस दौर में घर में केवल टीवी का बोलबाला था। उस समय पूरा परिवार एकसाथ बैठकर टीवी पर 'रामायण' से लेकर 'महाभारत' देखता था। 'चित्रहार' और 'रंगोली' जैसे शोज में गाने सुनकर झूमता था। तब एकमात्र दूरदर्शन चैनल था और उसकी पॉपुलैरिटी चरम पर थी। उसी समय टीवी पर एक ऐसा शो आया, जिसने देश की अलग-अलग संस्कृतियों को एकजुट करने का काम किया, इस शो का नाम 'सुरभि' था, जिसे रेणुका शहाणे और सिद्धार्थ काक होस्ट करते थे। सबसे हैरान कर देने वाली बात यह है कि इस शो को देखने वाले दर्शक हर हफ्ते रेणुका और सिद्धार्थ को 14 लाख से अधिक चिट्ठियां भेजते थे।

इस शो के 415 एपिसोड्स

'सुरभि' के निर्माता इसके को-होस्ट सिद्धार्थ काक ही थे। इसका थीम भारतीय संस्कृति था, इस शो में देश की अलग-अलग खूबियों और आश्चर्य भरी चीजों के बारे में बताया जाता था। इस कार्यक्रम के अंत में दर्शकों की भेजी चिट्ठियां पढ़ी जाती थीं और उनके जनरल नॉलेज के सवालों का जवाब दिया जाता था। 1990 से 2001 तक (1991 को छोड़कर) यह शो 10 साल चला और इसके 415 एपिसोड्स प्रसारित हुए।

दर्शक भारतीय डाक से 15 पैसे वाले पोस्टकार्ड के जरिए अपने सवाल भेजते थे (Wikimedia Commons)

लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में है शामिल

यह शो देश में सबसे लंबे समय तक प्रसारित होने वाला कल्चरल टीवी शो रहा है। इसकी पॉपुलैरिटी का एक बड़ा कारण इसमें दर्शकों की भागीदारी थी, जहां उनके सवालों का जवाब दिया जाता था। उस समय देश में मोबाइल फोन और इंटरनेट नहीं था। ऐसे में दर्शक भारतीय डाक से 15 पैसे वाले पोस्टकार्ड के जरिए अपने सवाल भेजते थे। एक ही सप्ताह में इन्हें 14 लाख से अधिक पोस्ट कार्ड मिलने के कारण इस शो का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल है।

भारतीय डाक विभाग भी हो गया परेशान

इस शो के लिए पोस्टकार्ड भेजने का चलन ऐसा बढ़ गया था कि भारतीय डाक विभाग इससे परेशान हो गया। मजबूरी में विभाग ने 15 पैसे के पोस्टकार्ड की जगह 2 रुपये की कीमत पर एक 'कंपीटिशन पोस्टकार्ड' जारी किया। ताकि ऐसे कार्यक्रमों में हिस्सेदारी के लिए लोग उसी का इस्तेमाल करे। कीमत बढ़ाने के पीछे कारण यही था कि इस तरह पोस्टकार्ड भेजने वालों की संख्या कम होगी।

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