ओ. पी. नैयर: जिसने सुरों को अपना जुनून और आशा भोसले को अपना प्यार बनाया AI Generated
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ओ. पी. नैयर: जिसने सुरों को अपना जुनून और आशा भोसले को अपना प्यार बनाया

ओ. पी. नैयर वो संगीतकार थे जिन्होंने अपने अलग अंदाज़ से हिंदी फिल्म संगीत को नई पहचान दी। लता मंगेशकर से दूरी और आशा भोसले से गहरा जुड़ाव रखने वाले नैयर ने ताल, जज़्बात और बगावत को सुरों में ढालकर एक नया दौर रचा जो आज भी अमर है।

Priyanka Singh

ओंकार प्रसाद नैयर (O. P. Nayyar) यह हिंदी सिनेमा का वो नाम है, जिसने संगीत को सिर्फ सुरों में ही नहीं, बल्कि जज़्बातों में भी ढाला है। आपको बता दें इनका जन्म 16 जनवरी 1926 को अविभाजित भारत (India) के लाहौर (Lahore) में हुआ था। इसके बाद 27 जनवरी 2007 को इन्होने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। ओ. पी. नैयर का जीवन जितना सुरमय था, उतना ही तूफ़ानी भी रहा है। उन्होंने अपने संगीत से इतिहास रचा, लेकिन इनके निजी ज़िंदगी में वही संगीत उनके अकेलेपन की धुन बन गया।

कैसे हुआ इनके करियर शुरुआत 

करियर के शुरुआती दिनों में ओ. पी. नैयर (O. P. Nayyar) लाहौर के एक स्कूल में संगीत शिक्षक थे, लेकिन दिलचस्प बात तो यह है कि वहां के स्कूल की हेडमिस्ट्रेस को उनसे प्यार हो गया था इसी वजह से उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। आपको बता दें प्यार और संगीत यही दो चीज़ें उनकी ज़िंदगी की पहचान बन गई,  

वो शुरूआत के समय में फिल्मों में हीरो बनना चाहते थे, लेकिन रिजेक्ट हो गए। उसके बाद उन्हें सलाह यह मिली की उनको कुछ और करना चाहिए फिर उन्होंने हारमोनियम उठाया और संगीत को अपनी राह बना लिया। 1949 में उन्होंने पहली बार फिल्म ‘कनीज़’ के लिए बैकग्राउंड स्कोर (Background Score) दिया और 1952 में उन्हें पहली बड़ी फिल्म ‘आसमान’ (Asman) मिल गई। हालांकि पहचान तो उन्हें 1954 की फिल्म ‘आरपार’ से भी मिली जो की गुरु दत्त की फिल्म है।

 गुरु दत्त और गीता दत्त से मिला मौका

ओ. पी. नैयर के संगीत के सफर की असली उड़ान गीता दत्त और गुरु दत्त से शुरू हुई थी। आपको बता दें गीता ने ही अपने पति गुरु दत्त से नैयर के बारे में कहा था, की "ये लड़का एक दिन बहुत बड़ा संगीतकार बनेगा।" इसके बाद उन्हें आरपार, मिस्टर एंड मिसेज 55 (Mr. and Mrs. 55) सी.आई.डी. और तुमसा नहीं देखा जैसी फिल्मों में काम करने का मौका मिला। इसके बाद ‘कभी आर कभी पार लागा तीरे नज़र’, ‘बाबूजी धीरे चलना’, और ‘ऐ लो मैं हारी पिया’ जैसे गीतों ने हिंदी सिनेमा में तहलका मचा दिया।

ओ. पी. नैयर (O. P. Nayyar) का संगीत सिर्फ सुरीला नहीं था, बल्कि उसमें एक खास बात थी, घोड़े की टाप, तालियों की गूंज और सीटियों की झंकार। उनका संगीत पश्चिमी और देसी धुनों का एक ऐसा संगम था, जिसे सुनते ही लोग झूम उठते थे। उनके कुछ गीतों ने जैसे "मांग के साथ तुम्हारा" और "ज़रा होले-होले चलो मेरे साजना"  इन गीतों में घोड़े की टाप की थाप जादू पैदा करती थी। कहा जाता है कि 1950 में ऑल इंडिया रेडि (AIR) यो (ने उनके गाने "बहुत वेस्टर्न" बताकर बैन कर दिए थे, लेकिन आपको बता दें यही तो उनकी असली पहचान थी, "सबसे अलग हटकर।"

लता मंगेशकर से जिद और दूरी

नैयर साहब जितने संवेदनशील थे, उतने ही जिद्दी भी थे। उनका लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) के साथ विवाद बहुत मशहूर है। जिस्ज्का कारण है,1952 की फिल्म ‘आसमान’ के दौरान, जब लता ने सह-नायिका पर फिल्माए जाने वाले गीत को गाने से मना किया, तो ओ. पी. नैयर (O. P. Nayyar) को यह बात बहुत ज्यादा चुभ गई। इसके बाद उन्होंने उसी पल तय कर लिया की "अब कभी लता से गाना नहीं गवाऊंगा।" आपको बता दें उन्होंने अपनी इस कसम को ज़िंदगी भर निभाया। यही कारण है कि उन्होंने कभी लता मंगेशकर के साथ काम नहीं किया, जबकि उस दौर में हर संगीतकार लता के साथ काम करने का सपना देखता था। इतना ही नहीं, जब 1990 के दशक में मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) सरकार ने उन्हें "लता मंगेशकर अवॉर्ड" देने का फैसला किया, तो उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया, उन्होंने कहा की "जिस गायिका को मैंने कभी गवाया नहीं, उसके नाम पर पुरस्कार कैसे ले सकता हूं ?" उस वक्त उनकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी, लेकिन उन्हों सम्मान के आगे झुकना मंजूर नहीं था। यही था ओ. पी. नैयर का स्वाभिमान, जिसे कई बार लोग घमंड समझ लेते हैं। 

1950 के दशक में जब लता से दूरी बनी, तब ओ. पी. नैयर की मुलाकात हुई आशा भोंसले से और यही मुलाकात एक नया इतिहास बन गया।

आशा भोंसले (Asha Bhosle) से प्यार और बर्बादी

1950 के दशक में जब लता से दूरी बनी, तब ओ. पी. नैयर की मुलाकात हुई आशा भोंसले से और यही मुलाकात एक नया इतिहास बन गया।

उन्होंने आशा की आवाज़ में वो शोखी, वो नटखटपन पहचाना, जो उनके संगीत में उन्हें चाहिए था। उन्होंने कहा था, की "लता की आवाज़ पाकीजा है, लेकिन मुझे शोखी आवाज़ चाहिए जो आशा में है।" ओ. पी. नैयर ने आशा को न सिर्फ मौका दिया, बल्कि उन्हें नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया भी, आपको बता दें एक के बाद एक नैयर ने आशा के साथ मिलकर हिट गाने दिए जैसे - "इशारों इशारों में दिल लेने वाले…", "लेके पहला पहला प्यार…", “जाने कहां मेरा जिगर गया जी…"।

इसके बाद इन दोनों का यह रिश्ता धीरे-धीरे सिर्फ संगीत का नहीं रहा बल्कि प्रेम के रिश्ते में बदल गया। आपको बता दें एक शादीशुदा पुरुष, जिसके चार बच्चे थे, और एक तलाकशुदा महिला, यानी आशा भोंसले ये दोनों खुलेआम लोगों को साथ दिखने लगे। उसके बाद 1958 से 1972 तक यह रिश्ता चला यानी पुरे 14 साल दोनों का यह प्यार का रिश्ता चला।1972 में इस प्रेम कहानी के बिखर जाने के बाद, "प्राण जाए पर वचन न जाए" के लिए उन्होंने आख़िरी बार साथ काम किया। इस गाने को फ़िल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला, लेकिन जब ट्रॉफी ओ. पी. नैयर ने ली, तो घर लौटते वक्त उन्होंने वह ट्रॉफी कार से सड़क पर फेंक दी। आशा के जाने के बाद ओ. पी. नैयर professionally और emotionally दोनों तरह से टूट गए।

अंत का अकेलापन

आशा (Asha) के बाद ओ. पी. नैयर की ज़िंदगी में सबकुछ बदल गया। परिवार ने भी उनसे दूरी बना ली थी। उन्होंने अपने घर, कार और बैंक अकाउंट तक छोड़ दिए।

जीवन के अंतिम वर्षों में वो एक अनजान परिवार के घर "पेइंग गेस्ट" बनकर रहने लगे। कभी सबसे ज़्यादा फीस लेने वाले संगीतकार, जो कभी एक गाने के ₹12 से शुरुआत की थी और बाद में ₹1 लाख तक चार्ज करते थे, वही नैयर आख़िर में गुमनामी में खो गए। 28 जनवरी 2007 को, 81 वर्ष की आयु में ओ. पी. नैयर ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

ओ. पी. नैयर (O. P. Nayyar) का संगीत आज भी ज़िंदा है वो हर गली, हर रेडियो पर, हर नॉस्टैल्जिक के दिल में हैं। उनके गीतों में नशा, जुनून और बाग़ीपना था, कुछ ऐसा था जो की समय के साथ भी फीका नहीं पड़ता है। उन्होंने कहा था की "मैंने अपनी शर्तों पर जिया, इसलिए शायद सब कुछ खो दिया, लेकिन मैंने संगीत कभी नहीं खोया।" और सच भी यही है, की ओ. पी. नैयर चले गए, लेकिन उनका संगीत अब भी लोगों के दिलों में जिन्दा है "उड़े जब-जब जुल्फें तेरी, ख़ुशबू के झोंके आते हैं…" यह गीत को हर बार सुनकर यही लगता है, की जैसे वो आज भी कहीं पास ही हैं।

निष्कर्ष 

ओ. पी. नैयर सिर्फ एक संगीतकार नहीं हैं, बल्कि वो विद्रोही आत्मा थे जिन्होंने सुरों को अपनी पहचान बनाया। उन्होंने लता से दूरी, आशा से मोहब्बत, और जीवन से जंग यह सब कुछ अपनी शर्तों पर लड़ी। उनका संगीत आज भी सबूत है कि असली कलाकार मरता नहीं है, बल्कि वह सुरों में अमर रहता है।

(Rh/PS)

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